दुर्ग लोकसभा: मुद्दे गौण हो गए, और चर्चा प्रत्याशी की चेहरे पर....

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दुर्ग लोकसभा: मुद्दे गौण हो गए, और चर्चा प्रत्याशी की चेहरे पर....

-भाजपा के बड़े लीडर यहां कोई कमाल नहीं दिखा पाए
दुर्ग। मतदान का दिन आ ही गया है। दुर्ग लोकसभा में भाजपा उसी पुराने ढर्रे पर है, पर कांग्रेस अपना ग्राफ तेजी से बढ़ा रही है। मुद्दे गौण हो गए, और बात प्रत्याशी की चेहरे पर आ गई है। भाजपा के बड़े लीडर यहां कोई कमाल नहीं दिखा पाए, पर कांग्रेस प्रत्याशी का नया चेहरा मतदाताओं का ध्यान तेजी से खींचने लगा है। भाजपा के महतारी वंदन योजना के बजाए कांग्रेस की महालक्ष्मी नारी न्याय योजना पर महिलाएं ज्यादा ध्यान दे रही हैं। 
पिछले चुनाव में भाजपा सांसद विजय बघेल नया चेहरा थे। लोगो ने उन्हे हाथोहाथ लिया। पर पांच सालो की उनकी कार्यशैली ने लोगो को खासा निराश किया। बताने के लिए दुर्ग लोकसभा में उनके पास कोई ठोस उपलब्धि नहीं है। मोदी के रथ पर सवार विजय बघेल ने पिछला चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीत लिया, लेकिन इस बार मोदी का मैजिक असरहीन खुद विजय बघेल ने कर दिया है। 
कार्यकर्ताओं में कोई विशेष उत्साह नहीं दिख रहा। रथ में सवार विजय बघेल ऐसा जनसंपर्क कर रहे हैं, जैसा चुनाव जीतने का बाद किया जाता है। अतिआत्मविश्वास जनता पसंद नहीं कर रही है, और तेज ध्रुवीकृत हो रही है। हिंदू मुस्लिम, पाकिस्तान जैसे मुद्दे दुर्ग लोकसभा की जनता को लुभा नही रहे। लोग समझ गए हैं कि यह सबने मात्र कहने की बातें है, उनकी असल जिंदगी में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 
दुर्ग संसदीय क्षेत्र के लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में जनता भाजपा के प्रति निरुत्साहित है। वैशाली नगर की उम्मीदें भाजपा को अभी संबल तो दे रही है, मगर अंडर करंट का भरोसा नही।
इन पांच महीनों में छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव सरकार ने दुर्ग संसदीय क्षेत्र में ऐसा कोई काम नही दिखाया कि जनाकर्षण बना रहता। 
आम चर्चा में पता चलता है, लोगो को इससे ज्यादा वास्ता नहीं कि 2047 तक भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। दुर्ग भिलाई की शिक्षित जनता पूछती है कि इससे हमारे जीवन पर क्या फर्क पड़ने वाला। ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आय आज भी हमसे 20 गुणा है। 
आम आदमी की तकलीफ यथावत है। जीवन का संघर्ष बढ़ गया है। पिछले दस सालो में न रोजगार बढ़ा है न समृद्धि। खैरातो के दम पर सरकार बन रही है। ऐसे में आम आदमी भौंचक है। मोदी फैक्टर पर सवाल उठने लगा है। 
इसका खामियाजा भाजपा को इस चुनाव में कितना होता है, यह चुनाव का नतीजा बताएगा। जिन दो चरणों के 190 सीटों पर चुनाव हो चुका है वहां भाजपा को खुश करने वाली रिपोर्ट नही आ रही है।वही पूछ परख के अभाव में भाजपा कार्यकर्ता भी खामोश बैठने मजबूर दिख रहे है। 
जिस विजय बघेल को छत्तीसगढ़ के लोग पिछड़ा वर्ग के रहनुमा नेता के तौर पर देखना चाह रहे थे, वह तिलस्म टूट चुका है। अब आमजन कहने लगे हैं, इससे अच्छा तो भूपेश बघेल का शासन था।
-तो विजय की बढ़ जाएगी मुश्किले...
 कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र साहू के पक्ष में साहू समाज का झुकाव निर्णायक भूमिका निभा सकता है। इस बार सामाजिक लामबंदी पहले से कही तीव्र है। चार लाख से भी ज्यादा मतदाता यदि कांग्रेस को एकतरफा वोट करते हैं तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ जाएगी। 
ताराचंद साहू के बाद ताम्रध्वज साहू समाज से वास्ता रखने वाले सांसद बने।  साहू समाज के नेता अपनी संख्या के हिसाब से चाहते है कि दोबारा उनके समाज का व्यक्ति यहां का प्रतिनिधित्व करें। कांग्रेस ने साहू समाज के रुख को भांपते हुए राजेंद्र साहू पर दांव खेला है। यदि यह चल निकला तो भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल का रास्ता कठिन हो जायेगा।