चैती छठ: व्रतियों ने डूबते सूर्य को दिया अघ्र्य, परिवार की खुशहाली की कामना

घुनघुट्टा नदी और शंकर घाट में पूजा-अर्चना छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 14 अप्रैल। रविवार को छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अघ्र्य देकर परिवार की खुशहाली एवं संतान के स्वास्थ्य लाभ, सफलता और दीर्घायु के लिए वरदान मांगा। नगर के शंकर घाट, घुनघुट्टा नदी के तट पर एवं नगर के अन्य तालाबों में सैकड़ों की संख्या में छठ व्रतियों ने भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की। इस दौरान छठ घाटों में भक्तिमय माहौल रहा। छठ पर्व को लेकर पूरे नगर में भी उत्साह देखा गया। छठ व्रतियां सोमवार को उगते हुए भगवान भास्कर को अघ्र्य देकर पारण करेंगी एवं 36 घंटे के निर्जला उपवास को प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत तोड़ेंगी। चैती छठ नवरात्रि के छठवें दिन मनाया जाता और इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। जबकि नहाय खाय के दिन देवी कुष्मांडा, खरना के दिन स्कंदमाता की पूजा की गई। छठ व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है और मान्यता है कि नियमों का पालन करते हुए जो भक्त छठ माता की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं। शुक्रवार से नहाय खाय के साथ चैती छठ के पर्व की शुरुआत हुई है। शनिवार को खरना के दिन छठ माता की पूजा के लिए प्रसाद बनाने की परंपरा है और इस पूरे दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम के समय गुड़ चावल की खीर और रोटी बनाकर खरना किया। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को व्रती महिलाएं सबसे पहले ग्रहण करती हैं और उसके बाद प्रसाद को परिजनों में बांट दिया जाता है। रविवार को छठी व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अघ्र्य दिया। सोमवार 15 अप्रैल को उदयीमान भगवान भास्कर को अघ्र्य देंगी, इसी के साथ चार दिन का छठ पर्व समापन हो जाएगा। मान्यता है कि छठी मइया का पवित्र व्रत रखने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही सारे दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं। इस व्रत से निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।

चैती छठ: व्रतियों ने डूबते सूर्य को दिया अघ्र्य, परिवार की खुशहाली की कामना
घुनघुट्टा नदी और शंकर घाट में पूजा-अर्चना छत्तीसगढ़ संवाददाता अंबिकापुर, 14 अप्रैल। रविवार को छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को पहला अघ्र्य देकर परिवार की खुशहाली एवं संतान के स्वास्थ्य लाभ, सफलता और दीर्घायु के लिए वरदान मांगा। नगर के शंकर घाट, घुनघुट्टा नदी के तट पर एवं नगर के अन्य तालाबों में सैकड़ों की संख्या में छठ व्रतियों ने भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की। इस दौरान छठ घाटों में भक्तिमय माहौल रहा। छठ पर्व को लेकर पूरे नगर में भी उत्साह देखा गया। छठ व्रतियां सोमवार को उगते हुए भगवान भास्कर को अघ्र्य देकर पारण करेंगी एवं 36 घंटे के निर्जला उपवास को प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत तोड़ेंगी। चैती छठ नवरात्रि के छठवें दिन मनाया जाता और इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। जबकि नहाय खाय के दिन देवी कुष्मांडा, खरना के दिन स्कंदमाता की पूजा की गई। छठ व्रत को सबसे कठिन व्रत माना जाता है और मान्यता है कि नियमों का पालन करते हुए जो भक्त छठ माता की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं। शुक्रवार से नहाय खाय के साथ चैती छठ के पर्व की शुरुआत हुई है। शनिवार को खरना के दिन छठ माता की पूजा के लिए प्रसाद बनाने की परंपरा है और इस पूरे दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और शाम के समय गुड़ चावल की खीर और रोटी बनाकर खरना किया। खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को व्रती महिलाएं सबसे पहले ग्रहण करती हैं और उसके बाद प्रसाद को परिजनों में बांट दिया जाता है। रविवार को छठी व्रती अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अघ्र्य दिया। सोमवार 15 अप्रैल को उदयीमान भगवान भास्कर को अघ्र्य देंगी, इसी के साथ चार दिन का छठ पर्व समापन हो जाएगा। मान्यता है कि छठी मइया का पवित्र व्रत रखने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही सारे दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं। इस व्रत से निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।