अच्छी योजना के पीछे अच्छी मंशा भी हो,  खराब जगह न बनाएं दो करोड़ का मांगलिक भवन

Manglik Bhavan

अच्छी योजना के पीछे अच्छी मंशा भी हो,  खराब जगह न बनाएं दो करोड़ का मांगलिक भवन

दुर्ग। परसों 27 सितंबर को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय दुर्ग आयेंगे। वे 22 करोड़ रु के निर्माण कार्यों का सौगात दुर्ग को देंगे। इसी में दो करोड़ रुपए सें ज्यादा लागत से बनने वाले मांगलिक भवन की मुख्यमंत्री श्री साय आधारशिला रखेंगे। 
शहर के जानकार लोग मांगलिक भवन के लिए गयानगर वार्ड–4 में तय की गई जगह को निरर्थक बता रहे हैं। प्रस्तावित जगह पर पार्किंग, सड़क, सिवरेज जैसी मूलभूत सुविधा जुटाना मुश्किल है। इस जगह पर  मांगलिक भवन बनाया गया तो समझो जनता के टैक्स के दो करोड़ रुपए जिसका सार्थक निर्माण कार्य होना था, वह बेफजूल खर्च कर दिया गया। 

जनता जानती है कि कितनी संख्या में एक दो कमरों के सैकड़ो सामुदायिक भवन खंडहर होते पड़े हैं। अकेले उरला वार्ड में ही 30 से 40 के बीच विभिन्न समाजों के भवन निरूपयोगी पड़े है। ऐसे भवन आज भी बनाए जा रहे हैं। जनता के मन में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह सब क्या है। सरकारी पैसों का इतना दुरुपयोग देखकर आमजन आहत होते है। 

मांगलिक भवन निर्माण की योजना तो अच्छी है, पर जगह गलत चयन कर लिया गया है। गया नगर के जिस स्थान पर भवन बनाने की योजना है, वह पुराना मुक्तिधाम है। उक्त भूमि स्व. दशरथ भारतीय के स्व. पिता प्रेम भारतीय ने मुक्तिधाम के लिए दान किया था। वैसे भी  यह जगह अपराध के लिए शहर का संवेदनशील प्वाइंट है। वहां हत्या सहित कई अन्य वारदात हो चुके है। इसी कैंपस में सरकारी राशन की एक दुकान भी है, वहां भी कई बार चोरी हो चुकी है। वह ऐसी जगह है, जहां कोई मांगलिक आयोजन करने नही जायेगा। 
जबकि, नए बनने वाले मांगलिक भवन का स्थान ऐसा हो कि उसका लाभ शहर की सारी जनता को मिलना चाहिए। यह किसी एक वार्ड के लिए बनने वाला भवन नही हैं। सही योजना के पीछे छुपी मंशा ठीक नही लग रही है। कई पार्षद भी स्थल को लेकर सवाल उठा रहे हैं।

मालूम हो कि, सरोज पांडे के महापौर कार्यकाल में 15 साल पहले यहां गयानगर एवम  रामनगर में एक अन्नपूर्णा भवन, दाई दीदी भवन भी बनाया गया था, जिसका न कोई उपयोग हुआ और न रख रखाव। यह अन्नपूर्णा भवन खंडहर होते अनुपयोगी बन चुका है तथा इस भवन का लाभ भी क्षेत्र के नागरिकों को नही मिल रहा है। सरकारी राशि के बंदरबाट के ऐसे सैकड़ों उदाहरण शहर में भरे पड़े हैं।
पूरे शहर में कई भवन ऐसे हैं जो निर्माण के बाद से ही अनुपयोगी पड़े हैं। इसी दुर्ग शहर में सामुदायिक भवन के नाम पर एक-एक दो कमरों के सैकड़ो भवन कई जातियों के नाम पर बनाए गए हैं, लेकिन उपयोग नहीं हो रहा है । इन पर आसामाजिक तत्वों का कब्जा हो चुका है । अभी 2 करोड़ के लागत से प्रस्तावित मांगलिक भवन इतना कोने में है कि वहां कोई जाना नहीं चाहेगा। वहां ना पार्किंग है न सड़क, न सुरक्षा का इंतजाम। 
कुशाभाऊ ठाकरे भवन आदित्य नगर और विवेका नंद भवन पदमनाभपुर अच्छे मांगलिक भवन निर्माण के उदाहरण है। नया भवन किसी एक क्षेत्र विशेष के लिए न बनाया जाए, बल्कि सारे शहर का ध्यान रखा जाए।

वे देते गए, ये लेते गए..

गांवों में भी बड़ी संख्या में छोटे छोटे सामाजिक भवन बनाए गए है और अभी भी तेजी से बनते ही जा रहा है। ऐसे सामाजिक भवनों की उपादेयता पर किसी सरकार ने ज्यादा  विचार नही किया। वे देते गए और ये लेते गए। लेकिन आम जनता के लिए उक्त सामुदायिक भवन ज्यादा काम के नहीं। इसीलिए जनता को निजी भवनों का सहारा लेना पड़ता है, जिसके लाखो रुपए हर दिन का किराया रहता है।