लोकसभा चुनाव: खजुराहो सीट पर बीजेपी और सपा में दिलचस्प मुकाबला
खजुराहो प्रदेश की खजुराहो लोकसभा सीट पर बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से नहीं बल्कि सपा...
खजुराहो
प्रदेश की खजुराहो लोकसभा सीट पर बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से नहीं बल्कि सपा से होगा. सपा ने डॉ मनोज यादव को चुनावी रण में उतारा है. इंडिया गठबंधन में हुए समझौते के तहत खजुराहो की सीट सपा को मिली थी.
राजनीतिक पंडितों का आकलन है कि अब बीजेपी और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी. बीजेपी ने एक बार फिर विष्णु दत्त शर्मा पर खजुराहो से भरोसा जताया है. खजुराहो की भौगोलिक स्थिति में लगातार बदलाव आया है.
14 लोकसभा चुनाव का मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच
अब तक लोकसभा के कुल 14 चुनाव हुए हैं. पांच बार कांग्रेस प्रत्याशी को जीत मिली. नौ बार बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. खजुराह संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्य कांग्रेस की ओर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सहाय तिवारी, दिग्गज नेता विद्यावती चतुर्वेदी और पुत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी कर चुके हैं.
वरिष्ठ समाजवादी नेता लक्ष्मी नारायण नायक, बीजेपी की उमा भारती और विष्णु दत्त शर्मा लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. बीते चार चुनाव में पहली बार बीजेपी ने वर्तमान सांसद को दोबारा चुनावी मैदान में उतारा है. शर्मा ने पिछला चुनाव लगभग पांच लाख वोटो के अंतर से जीता था.
सपा ने मनोज यादव को रण में उतारा
बहुजन समाज पार्टी ने कमलेश पटेल को भी खजुराहो से उम्मीदवार बनाया है. खजुराहो संसदीय क्षेत्र तीन जिलों छतरपुर, पन्ना और कटनी में फैला हुआ है. जिले की 8 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.
खजुराहो में अब तक बीजेपी की प्रतिद्वंदि कांग्रेस रही है. मगर इस बार समाजवादी पार्टी से बीजेपी का मुकाबला है. राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और सपा के बीच समझौते का एक गुट विरोधी है. कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता खुश नहीं हैं. कांग्रेस कार्यकर्ता सपा प्रत्याशी के लिए प्रचार करेंगे.
संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली तीन विधानसभा सीटें राजनगर, पवई और बड़वारा पर कभी सपा से जुड़े लोग निर्वाचित हुए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खजुराहो में वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच करीब का मुकाबला हुआ था . उससे पहले तो कांग्रेस के उम्मीदवार निर्वाचित भी हुए हैं. अब कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के हवाले खजुराहो सीट कर दी है. फैसले का असर आगामी चुनाव में साफ नजर आएगा. कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता सपा का प्रचार करने को दिली तौर पर तैयार नहीं . इसका लाभ बीजेपी को मिलना तय माना जा रहा है.