वृन्दावन स्थित अलौकिक श्री प्रेम मंदिर की ऐसी है विलक्षणता

-जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त प्रेमोपहार
विश्व में पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम के पद से विभूषित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज से आज कौन परिचित नहीं है!! समस्त विश्व जहाँ उनके द्वारा प्रकटित अलौकिक वैदिक दर्शन को पाकर धन्य हो रहा है, वहीं उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये सामाजिक सेवाओं के द्वारा भी लाभान्वित हो रहा है। भक्तियोग रस के अवतार तथा निखिल दर्शनों के समन्वयाचार्य श्री कृपालु जी महाराज का व्यक्तित्व विश्व के लिए आश्चर्यजनक ही रहा है, उन्होंने ज्ञान, कर्म तथा भक्ति - इन सभी क्षेत्रों में सर्वोच्चता प्राप्त की थी। उन्होंने अपने भीतर छिपे ज्ञान तथा प्रेम के अथाह समुद्र से समस्त चराचर को परिप्लुत कर दिया। सनातन वैदिक परम्परा के अद्वितीय स्तम्भ स्वरुप उन्होंने कुछ प्रेमोपहार इस विश्व को दिये हैं। यथा प्रेम मंदिर, कीर्ति मंदिर तथा भक्ति मंदिर। आज हम इसी कड़ी में श्रीवृन्दावन धाम स्थित प्रेम मंदिर के विषय में जानेंगे जो कि स्वयं मूर्तिमान प्रेम का ही मानो साकार स्वरुप है। यह मंदिर युगों-युगों तक भक्ति तथा प्रेम की ध्रुव-ध्वजा रहेगा::::::::

श्री प्रेम मंदिर, श्रीधाम वृन्दावन
(जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त प्रेमोपहार)

0 शिलान्यास समारोह - 14 जनवरी 2001
0 कलश स्थापना - 15 सितंबर 2010
0 उद्घाटन समारोह - 15-17 फरवरी 2012
प्रेम मंदिर के उदघाटन समारोह पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इसके नाम के सम्बन्ध में यह कहा था -
...अधिकांश मंदिरों का नाम भगवान् के विभिन्न स्वरूपों पर आधारित होता है, जैसे - श्री राधाकृष्ण मंदिर, श्री राम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, हनुमान मंदिर इत्यादि। किन्तु मैंने इसका नाम प्रेम मंदिर इसलिए रखा है कि यद्यपि भगवान सबसे बड़े हैं लेकिन प्रेम ऐसा तत्व है जिसके आधीन भगवान् हो जाते हैं, इसलिए मुख्य द्वार पर मैंने यह दोहा लिखवा दिया -

प्रेमाधीन ब्रम्ह श्याम वेद ने बताया, याते याय नाम प्रेम मंदिर धराया'...

प्रेम मंदिर से संबंधित कुछ बातें -

(1) प्रेम मंदिर का सम्पूर्ण परिसर 54 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है जो मनमोहक उद्यानों, फव्वारों, श्री राधाकृष्ण की मनोहर झांकियों; यथा श्री गोवर्धनधारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीला आदि से सुसज्जित है।

(2) नागरादि शैली में निर्मित दो मंजिला प्रेम मंदिर गोलोक और साकेत लोक, वृन्दावन और अयोध्या का सुनहरा संगम है अर्थात् मंदिर भूतल पर जहाँ वृन्दावन बिहारी श्री यादवेन्द्र सरकार श्रीकृष्ण अपनी ह्लादिनी शक्ति प्रेमतत्व की सारभूत स्वरूपा नित्य निकुंजेश्वरी वृषभानुनंदिनी श्री राधिका एवं परमप्रिय अष्ट-महासखियों के साथ नित्य निवास करते हैं। ये अष्ट महासखियां प्रत्येक जीव को प्रेरित करती हैं कि वो अपने नित्य दासत्व को पाने के लिए दासानुदास बनकर प्रेम याचना करे। दूसरी ओर प्रथम तल पर साकेत बिहारी श्री राघवेंद्र सरकार जगज्जननी जनकनंदिनी माँ सीता सहित भक्तों को दर्शन प्रदान करती हैं।

(3) मंदिर के भूतल पर निर्मित भव्य मंडप के दक्षिण दिशा में निर्मित एक छोटे आकर्षक मंदिर में भक्तों के विशेष आग्रह पर, अत्यधिक विनय करने पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने स्वरुप को प्रतिष्ठापित करने की अनुमति प्रदान की। उत्तर दिशा में निर्मित मंदिर में श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रवक्ता श्री शुकदेव परमहंस विराजमान हैं। दूसरी ओर दक्षिण दिशा में श्री कृपालु जी महाराज को भागवत के विस्तृत अर्थों को लिखते हुए चलमूर्ति के रुप में दर्शाया गया है। श्री कृपालु जी महाराज का सम्पूर्ण साहित्य श्रीमद्भागवत महापुराण की सरलातिसरल व्याख्या ही है।

(4) प्रथम तल पर मंडप के उत्तर दिशा में चारों पूर्ववर्ती जगद्गुरुओं एवं ब्रजरस रसिकों यथा श्री वल्लभाचार्य जी, श्री जीवगोस्वामी जी, स्वामी श्री हरिदास जी एवं श्री हितहरिवंश जी विद्यमान हैं। दक्षिण दिशा में प्रेमावतार श्री गौरांग महाप्रभु जी की लीलाओं का सुन्दर चित्रण किया गया है।

(5) सम्पूर्ण मंदिर की भव्यता, सुंदरता, पच्चीकारी, नक्काशी, स्तंभों पर गढ़ी मूर्तियाँ, दीवारों पर उभारी गई विभिन्न झाँकियों व लीलाओं के दृश्य हैं। स्थान स्थान पर दीवारों पर मूल्यवान पत्थर से उकारे गए श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित प्रेम रस मदिरा के विभिन्न पद, रसिया व राधा गोविंद गीत आदि ग्रंथों के दोहे, श्यामा श्याम की रागानुगा भक्ति का मूर्तिमान स्वरुप दर्शाते हैं।

(6) सम्पूर्ण वैदिक दर्शन का ज्ञान कराने वाली जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा विरचित कृपालु त्रयोदशी एवं ब्रजरस त्रयोदशी को मूल्यवान जड़ाऊ पत्थरों की पच्चीकारी द्वारा गर्भगृह द्वार के दोनों ओर की दीवारों पर उकेरा गया है।

(7) अन्य निर्माण विशेषताओं की बात करें तो प्रेम मंदिर के निर्माण में 30 हजार टन आयातीत इटालियन करारा मार्बल का प्रयोग किया गया है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण में ठोस इटालियन मार्बल का प्रयोग किया गया है।

(8) 4 फुट ऊंचे, 190 फुट लम्बे व 128 फुट चौड़े विशाल सिंहासन पर विराजमान है - शुभ्र वर्ण प्रेम मंदिर। इसका 20 फुट ऊंचा भूमितल, 18 फुट ऊँचा प्रथम तल, 115 फुट ऊंचा शिखर है। ध्वजा सहित प्रेम मंदिर की ऊंचाई 125 फुट है। गर्भगृह की दीवारें 8 फुट चौड़ी हैं जिसके कारण यह विशाल मंदिर शिखर, स्वर्ण कलश व ध्वजा का भार सरलता से वहन कर रही है।

(9) प्रेम मंदिर के 54 नक्काशीदार स्तम्भ मानों भुजा उठाकर भक्ति, भक्त व भगवान् की निरंतर जय जयकार करते रहते हैं। इन कला मंडित स्तंभों पर किंकरी और मंजरी सखियों के विग्रह बनाये गए हैं।

(10) मंदिर परिसर पर दूर से ही प्रथम दृष्टि पड़ते ही ध्वजा सहित 125 फुट ऊंचे शिखर के दर्शन होते हैं उसके नीचे 53 फुट ऊंचा गुम्बदाकार मंडप सामरन, उसके दोनों ओर दो बड़े व चार छोटे गुम्बदाकार सामरन हैं तथा भूमि तल व प्रथम तल के दो सामरन मिलकर एक नक्काशीदार उज्ज्वल दिव्य पर्वत श्रृंखला का आभास देते हैं। मंदिर के निर्माण में कहीं भी लोहे या इस्पात का प्रयोग नहीं किया गया है।

मंदिर निर्माण के कारीगर यद्यपि मंदिर निर्माण की शिल्पकला, वास्तुकला, कारीगरी, नक्काशी के मर्मज्ञ रहे हैं किन्तु प्रेम मंदिर निर्माण के समय यही अनुभव हुआ कि श्री राधा रानी की कृपा शक्ति ही स्वयं कार्य करा रही है। कितनी समस्याएं आईं किन्तु जब श्री कृपालु जी महाराज के पास कोई भी समस्या जाती वह प्रत्युत्तर में केवल मुस्कुरा देते। लेकिन उस मुस्कान से ही उन्हें ऐसी शक्ति मिल जाती कि तुरंत समस्याओं का समाधान तो हो ही जाता, साथ ही ऐसा लगता वे स्वयं हमारे मस्तिष्क में बैठकर ड्राइंग बनवा रहे हैं और युक्ति सुझा रहे हैं।

दिव्य प्रेम तत्व को प्रकाशित करने के लिए जिन्होंने 'प्रेम मंदिर' नाम से भव्यातिभव्य दिव्योपहार श्री वृन्दावन धाम की समर्पित किया है ऐसे श्री प्रिया प्रियतम के प्रेम रस रसिक गुरुवर कृपावतार जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु को कोटि कोटि प्रणाम !!

(लेख संदर्भ/स्त्रोत -साधन-साध्य पत्रिका, प्रेम-मंदिर विशेषांक
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।) 

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