क्या हैं तीन प्रमुख भगवत्कृपाएं ?

-कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन

कृपा शब्द बहुत महत्वपूर्ण है और एक ऐसी चीज है ये कृपा जिसकी आस प्रत्येक को अपने जीवन में होती है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि 'कृपाओं' में महत्वपूर्ण कृपायें कौन सी हैं? आइये जानें विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन के द्वारा, तथा पढ़कर कुछ क्षण रुककर यह विचार भी करें कि हम कृपा के साथ न्याय करते हैं या नहीं, अगर नहीं तो निश्चय ही कृपा का मोल समझकर जीवन परिवर्तित करने की आवश्यकता है :::::::

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तीन प्रकार की भगवत्कृपा होती है। एक कृपा, एक विशेष कृपा, एक अद्भुत कृपा, ये तीन कृपायें होती हैं भगवान की। किसी का पुण्य थोड़ा है, उसके ऊपर एक कृपा हुई। किसी का पुण्य विशेष अधिक है तो दो कृपा हो गई और किसी का बहुत पुण्य है तो तीन कृपा होती है। ये तीनों दुर्लभ हैं। बहुत दुर्लभ, हज़ारो में एक ऐसा नहीं, लाखों में एक ऐसा नहीं, करोड़ो में एक ऐसा नहीं, अरबों में एक ऐसा नहीं। अनंत में एक होता है। ये ऐसी कृपा है।

पहली कृपा मानवदेह प्राप्त होना। ये मानवदेह सब देहों में श्रेष्ठ है। देवताओं के देह से भी श्रेष्ठ है।

दूसरी कृपा महापुरुष का मिलना; ये विशेष कृपा। जिसको भगवत्प्राप्ति हो गई हो, जो भगवत्प्राप्ति का सही मार्ग जानता हो, हमको बता सके ऐसा वास्तविक महापुरुष अगर किसी को मिल गया तो ये नंबर दो की कृपा हुई।

तीसरी कृपा, तीसरी चीज जो सबसे इम्पोर्टेन्ट है, जिसको अद्भुत कृपा कहते हैं, भूख कहते हैं, जिज्ञासा, वो पाने की व्याकुलता। जो हमारे ऊपर नहीं हुई या बहुत कम हुई।

बार- बार सोचो, कितनी बड़ी भगवत्कृपा मेरे ऊपर है, अगर मृत्यु के एक सेकण्ड पहले भी आपको यह बोध हो गया कि मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ, कितनी भगवत्कृपायें मेरे ऊपर हुई हैं!! देव- दुर्लभ मानव देह अनन्त जीवों में किसी-किसी भाग्यशाली को ही मिलता है, फिर मेरे जैसा सौभाग्यशाली कौन होगा, जिसको ऐसा गुरु मिला जो केवल कृपा ही करता है। जब उनका अनुग्रह प्राप्त है तो निराशा की क्या बात है? धिक्कार है मेरे जीवन को।

अपनी बुद्धि को उनके श्री चरणों में डाल दो तो निराशा हट जायेगी। और अगर हट गई और मृत्यु हो गई, तो अगले जन्म में आपको आशावाद के अनुसार ही फल मिलेगा। अगर कोई गलती हमसे हुई भी हैं तो भविष्य में अब गलती न करें, ये प्रतिज्ञापूर्वक चिन्तन के द्वारा ठीक कर लें। महापुरुष का पाया हुआ प्यार-दुलार, दर्शन, स्पर्शादि जो मिला है उसको, अगर कोई जीव उसका मूल्य आँके, तो फिर कुछ करना ही नहीं है उसको। वो चिंतन ही पर्याप्त है, अनंत भगवत्प्राप्ति की कौन कहे। और अगर मूल्यांकन न करेगा तो कितनी कृपा भगवान कर दें, कितने ही सामान ला के आपकी गोदी में रख दें और आप उसका मूल्य ही नहीं समझना चाहते तो ये आपकी कमजोरी है।

अगर कोई महापुरुष का महत्व नहीं समझता तो उसको महापुरुष के मिलने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। उसको उतने परसेन्ट ही लाभ मिलेगा जितने परसेन्ट वह उसको महापुरुष मानेगा। तो जितना अधिक महत्व समझोगे, उतना लाभ मिलेगा। महापुरुष को देख लिया एक बार, बहुत बड़ी कृपा है। कोई कर्म नहीं, कोई यज्ञ नहीं है, कोई दान नहीं, कोई तपस्या नहीं कि जो महापुरुष को सामने ला के खड़ा कर सके। भगवान को भले ही कोई देख ले, महापुरुष उससे बड़ी पॉवर है।

(प्रवचनकर्ता- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

(स्त्रोत- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली) 

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