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मॉस्कोः भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है लेकिन इसको सुलझाने की दिशा में अब कदम उठाए जा रहे हैं. रूस के मॉस्को में कल रात विदेश मंत्रियों की बैठक हुई जिसमें भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच दोनों देशों की सीमा पर तनाव घटाने को लेकर सहमति हो गई है. भारत और चीन सीमा विवाद घटाने के लिए राजी हुए हैं और दोनों देशों के बीच 5 सूत्रीय फॉर्मूले पर रजामंदी हो गई है.
भारत-चीन के बीच नीति पर कोई बदलाव नहीं
मॉस्को में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह साफ किया कि भारत एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुल कंट्रोल) पर जारी तनाव को और नहीं बढ़ाना चाहता है. वहीं भारत का मानना है कि चीन के लिए भारत की नीति में और भारत के प्रति चीन की नीति में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है.
दो पड़ोसी देशों के बीच असहमति स्वाभाविक-विदेश मंत्रालय
बता दें कि चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से यह भी कहा गया कि दो पड़ोसी देश होने के नाते सीमा पर चीन और भारत में कुछ मुद्दों पर असहमति है. हालांकि जरूरी बात ये है कि इनको सुलझाने के लिए सही नजरिए का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
भारत-चीन के बीच जिन पांच सूत्रीय बिंदुओं पर बनी सहमति
आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने दिया जाएगा यानी कि अगर दोनों देशों के बीच कोई असहमति होती है तो उसके विवाद में तब्दील होने का इंतजार नहीं किया जाएगा.
दोनों देशों की सेनाएं विवाद वाले क्षेत्रों से पीछे हटें यानी डिसइंगेज की प्रक्रिया को दोनों देश जल्द से जल्द शुरू करें. हाल-फिलहाल जो स्थिति बनी हुई है वो भारत और चीन दोनों के सिए अहितकारी है.
तय मैकेनिज्म के अनुसार दोनों देश बातचीत जारी रखें. इसके तहत स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव मैकेनिज्म के तहत चर्चा को टूटने न दें और एग्रीमेंट और प्रोटोकॉल का पालन करते हुए किसी भी विवाद या तनाव की स्थिति से बचेंगे.
मौजूदा संधियों और प्रोटोकॉल्स को दोनों देश मानेंगे और इन्हीं के आधार पर सीमा पर तनाव को बढ़ने नहीं देंगे.
दोनों देश ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे तनाव बढ़े. देशों के बीच आपस में भरोसा कायम रखने के लिए समय-समय पर पहल की जानी चाहिए.
दो घंटे चली विदेश मंत्रियों के बीच बैठक
विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच मॉस्को में बैठक हुई. दोनों नेताओं के बीच रात के करीब आठ बजे कांग्रेस पार्क वोलकोंस्की होटल में बैठक शुरू हुई और करीब साढ़े दस बजे खत्म हुई.(abp)
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तेहरान। ईरान की सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हरमूज जलडमरूमध्य के निकट आज से तीन दिन का सालाना नौसैनिक अभ्यास शुरू किया। सरकारी टीवी ने इसकी खबर दी है। खबर में बताया गया है कि नौसेना, वायुसेना और थल सेना की इकाइयों ने ओमान की खाड़ी में सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया।
जानकारी में यह भी बताया गया कि इस अभ्यास के दौरान पनडुब्बियों और ड्रोनों का भी इस्तेमाल किया गया। ईरान की नौसेना ओमान की खाड़ी में होने वाले सभी अभियानों का आयोजन हरमूज जलडमरूमध्य के पूर्वी हिस्से में करती है। यह क्षेत्र तेल के कारोबार के लिए बहुत अहम है। खरीदे गए तेल के 20 फीसद हिस्से का परिवहन यहां से हो कर होता है। यहां अगस्त महीने में ईरान की नौसेना के कर्मी लाइबेरिया के झंडे वाले तेल के एक टैंकर पर कुछ समय के लिए चढ़ गए थे और उसे हिरासत में ले लिया था। -
मोगादिशू। सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक रेस्तरां में हुए आत्मघाती बम हमले में एक किशोर समेत तीन लोगों की मौत हो गयी।सूचना मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल मुख्तार ने बताया कि यहां राष्ट्रपति महल के समीप एक सुरक्षा चौकी के पास रेस्तरां के बाहर आत्मघाती बम हमलावर ने विस्फोट किया, जिसमें सात अन्य घायल भी हो गये। पुलिस अधिकारी अहमद अदन ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने इलाके को घेर लिया है और वहां एंबुलेंस के आने जाने की आवाज सुनाई दे रही है। फिलहाल किसी ने भी इस विस्फोट की जिम्मेदारी नहीं ली है।
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संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। यह क्षेत्र लुप्तप्राय होती जा रही प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। संरक्षण पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखने में मदद करता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार संरक्षित क्षेत्र दुनिया के भूमि क्षेत्र का लगभग 15.4 फीसदी और वैश्विक महासागर क्षेत्र का 3.4 फीसदी है। संरक्षित निवास स्थान प्रजातियों के नुकसान को कम करने में मदद करते हैं।
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली शोध टीम ने खुलासा किया है कि कई लुप्तप्राय स्तनपायी प्रजातियां संरक्षित क्षेत्रों पर निर्भर हैं। संरक्षित क्षेत्रों के बिना ये प्रजातियां गायब हो जाएंगी।
वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वींसलैंड (यूक्यू) के प्रोफेसर जेम्स वाटसन ने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों की सफलता के बावजूद, संरक्षण करने के उपकरण के रूप में उनकी लोकप्रियता कम होने लगी है।
वाटसन ने कहा 1970 के दशक के बाद से, दुनिया भर में संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क चार गुना बढ़े हैं। इनमें से कुछ संरक्षित क्षेत्र वन्यजीव आबादी को बचाने और यहां तक कि बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि लुप्तप्राय होने वाली प्रजातियों को बनाए रखने में वैश्विक संरक्षित क्षेत्र की संपत्ति की भूमिका के बारे में चर्चा बढ़ रही है। हमारे शोध ने जो स्पष्ट रूप से दिखाया है संरक्षित क्षेत्र, जब अच्छी तरह से वित्त पोषित होते हैं और अच्छी तरह से इनकी निगरानी की जाती है, तो खतरे वाली प्रजातियों को बचाया जा सकता है। इन संरक्षित क्षेत्रों में हमने जिन 80 प्रतिशत स्तनपायी प्रजातियों की निगरानी की है। उन्होंने पिछले 50 वर्षों में कम से कम संरक्षित क्षेत्रों में विस्तार (कवरेज) को दोगुना कर दिया है।
वैज्ञानिकों ने मौजूदा 237 खतरे वाली प्रजातियों की तुलना 1970 के दशक के सीमाओं में हुए परिवर्तन को मापा, फिर उन्हें संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के साथ मिलाया हैं।
प्रोफेसर वॉटसन ने कहा इसका एक अच्छा उदाहरण यह है कि एक से अधिक सींग वाले गैंडे (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस), जिनकी संख्या अब संरक्षित क्षेत्र में 80 फीसदी है। उनकी संख्या अन्य जगहों पर कम हो गई है। पिछले 50 वर्षों में प्रजातियों को अपने विस्तार के 99 फीसदी से अधिक सीमा का नुकसान हुआ है। अब शेष 87 प्रतिशत पशु केवल दो संरक्षित क्षेत्रों में रहते हैं - भारत में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और नेपाल में चितवन राष्ट्रीय उद्यान। यह शोध कंजर्वेशन लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
प्रोफेसर वॉटसन ने कहा कि स्तनधारी संरक्षित क्षेत्रों में पीछे हट रहे हैं और दुनिया की जैव विविधता की रक्षा के लिए संरक्षित क्षेत्र पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि संरक्षित क्षेत्रों के बिना बाघ और पहाड़ी गोरिल्ला जैसी अद्भुत प्रजातियां गुम हो जाएंगी।
यह स्पष्ट रूप से दिखता है कि विलुप्त होने के संकट को समाप्त करने के लिए, हमें बेहतर वित्त पोषित और अधिक संरक्षित क्षेत्रों की आवश्यकता है। इन्हें सरकारों और अन्य भूमि प्रबंधकों द्वारा अच्छी तरह से समर्थित और प्रबंधित होना चाहिए। साथ ही, हमें उन प्रयासों को पुरस्कृत करने की आवश्यकता है जो संरक्षित क्षेत्र की सीमाओं से अलग दूसरे क्षेत्रों में वन्यजीव आबादी के पुन: विस्तार और पुनर्स्थापन को सुनिश्चित करते हैं। हमें पृथ्वी के शेष अखंड पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए, जिसमें प्रमुख संरक्षित क्षेत्र हों। (downtoearth)
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वाशिंगटन 08 सितंबर (स्पूतनिक) अमेरिका में कैलिफोर्निया की सैन डिएगो काउंटी के जंगलों में लगी आग 17000 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैल गयी है तथा सिर्फ तीन फीसदी क्षेत्र में आग पर काबू पाया जा सका है।
कैलिफोर्निया के वानिकी एवं अग्नि नियंत्रण विभाग ने सोमवार को यह जानकारी दी। विभाग ने ट्वीट कर कहा, " जंगलों में लगी आग 17345 एकड़ क्षेत्रफल में फैल चुकी है और सिर्फ तीन फीसदी क्षेत्र की आग बुझायी जा सकी है।"
विभाग के अनुसार आग के कारण आठ लोगों की मौत हो चुकी है तथा 33 से अधिक संरचनाएं नष्ट हो गयी हैं।
इससे पहले विभाग ने सोमवार सुबह जानकारी दी थी कि आग ने रात भर में और 408 एकड़ क्षेत्र को चपेट में ले लिया है और अब यह कुल 10258 एकड़ में फैल चुकी है।
आग पर काबू पाने के लिए आठ एयर टैंकर तथा 10 से अधिक हेलिकॉप्टरों को लगाया गया है। साथ ही लगभग चार सौ दमकलकर्मी आग बुझाने में जुटे हुए हैं।
विभाग ने कहा, "आज मौसम सर्द है और हल्की हवा चलने के आसार है, इसलिए आग के फैलने की रफ्तार थोड़ी कम होने की संभावना है।"
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वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मांग की है कि फॉक्स न्यूज अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा संवाददाता को नौकरी से निकाले दे क्योंकि संवाददाता ने दावा किया था कि ट्रंप ने सेना की निंदा की है और अपशब्दों का इस्तेमाल किया. अटलांटिक पत्रिका की रिपोर्ट के बाद ट्रम्प आग बबूला हो गए. दरअसल रिपोर्ट में कहा गया कि नवंबर 2018 की फ्रांस यात्रा के दौरान ट्रंप ने विश्व युद्ध में जान गंवाने वाले सैनिको की निंदा की और फ्रांस में अमेरिकी सैन्य कब्रिस्तान की यात्रा को टाल दिया था. उस समय उस यात्रा को टालने की आधिकारिक वजह खराब मौसम बताई गई थी.
फॉक्स न्यूज की संवाददाता जेनिफर ग्रिफिन ने कहा कि दो पूर्व प्रशासन अधिकारियों ने उनसे पुष्टि की थी कि राष्ट्रपति ने पेरिस के बाहर सैन्य कब्रिस्तान जाने और शहीदों का श्रद्धांजलि देने से मना कर दिया था. हालांकि मौसम खराब नहीं था जैसा कि कहा गया. एक अधिकारी ने उनसे यह भी बताया कि ट्रम्प ने सेना की निंदा की. ट्रंप ने वियतनाम युद्ध को फिजूल बताया और उसमें जाने वाले सैनिकों को भी. "जब राष्ट्रपति ट्रंप ने वियतनाम युद्ध के बारे में बात की, तो उन्होंने कहा, 'यह एक मूर्खतापूर्ण युद्ध था."
सूत्रों ने कहा, "ट्रंप समझ नहीं सकते कि कोई अपने देश के लिए क्यों मरेगा, वे इसके लायक नहीं." हालांकि ट्रम्प ने शुक्रवार देर रात ट्वीट किया: "जेनिफर ग्रिफिन को इस तरह की रिपोर्टिंग के लिए निकाल दिया जाना चाहिए. कभी भी टिप्पणी के लिए हमारे पास नहीं आएं." ट्रम्प ने द अटलांटिक में इस रिपोर्ट के मद्देनजर खुद का बचाव किया है और इस खबर को "फर्जी खबर" बताया है.
दरअसल शनिवार को पत्रिका के फ्रंट पेज पर एक खबर छपी थी: "सूत्रों का दावा है कि ट्रम्प ने सैन्य कब्रिस्तान की यात्रा को टाला और शहीदों का तिरस्कार किया." फॉक्स में ग्रिफिन के कई सहयोगियों और रिपब्लिकन कांग्रेस के अध्यक्ष एडम किंजिंगर ने सार्वजनिक रूप से ट्विटर पर पत्रकार का बचाव किया,जिन्होंने पत्रकार को "निष्पक्ष और बेखौफ" बताया.
द अटलांटिक ने अपनी खबर प्रकाशित करने से ठीक पहले मिलिट्री टाइम्स के एक सर्वेक्षण और सिरैक्यूज़ यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वेटरन्स एंड मिलिट्री फैमिलीज के एक सर्वेक्षण में पाया कि सक्रिय ड्यूटी कर्मियों में सिर्फ 37.4 प्रतिशत ट्रम्प की वापसी का समर्थन करते हैं, जबकि 43.1 प्रतिशत जो बिडेन को राष्ट्रपति देखना चाहते हैं.(ndtv)
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भारत और चीन के बीच सीमा विवाद (Border Dispute) को लेकर अमेरिकी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने शुक्रवार को मदद की पेशकश की. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अमेरिका, भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने में मदद करने के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर हालात बहुत बुरे हैं. मैं भारत और चीन की मदद करने को तैयार हूं. अगर हम कुछ कर पाए तो हम मदद करना पसंद करेंगे. राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि विवाद के मुद्दे पर हम दोनों देशों से बात भी कर रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार शाम व्हाइट हाउस में संवाददाताओं से कहा,"भारत चीन सीमा पर स्थिति "काफी खराब" है. अगर वह इसमें शामिल हो सके और मदद कर सके तो उन्हें खुशी होगी." ट्रंप ने दोहराया कि वह सीमा पर स्थिति को लेकर भारत और चीन दोनों देशों से बात कर रहे हैं.
ट्रंप से जब पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि चीन, भारत को धौंस दिखा रहा है तो उन्होंने कहा, "मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा नहीं हो... लेकिन चीन निश्चित रूप से इस ओर बढ़ रहा है... वे इस पर दृढ़ता से बढ़ रहे हैं, यहां तक कि बहुत से लोग भी इसे समझते हैं."
वहीं, भारत-चीन सीमा विवाद के बीच भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंघही के बीच रूस की राजधानी मॉस्को में बातचीत हुई. यह बैठक 2 घंटे 20 मिनट तक चली. बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले भी मदद की पेशकश कर चुके हैं.
भारत-चीन के मध्य सीमा पर तनातनी के बीच सेना की तैयारियों का जायजा लेने लद्दाख पहुंचे सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे (Army Chief General Manoj Mukund Naravane) ने शुक्रवार को कहा था कि हम हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं. उन्होंने भी कहा था कि सीमा पर हालात नाजुक है. सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाए गए हैं. समस्या का हल बातचीत से हो सकता है. (ndtv)
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- Raju Sajwan
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 सितंबर को यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम को संबोधित करेंगे। उससे पहले वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने साफ कर दिया है कि भारत, अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले या ठीक बाद व्यापारिक समझौता करने को तैयार है। ऐसे में, बहुत हद तक संभावना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अमेरिका के साथ होने वाले व्यापारिक समझौते पर अपनी राय रखेंगे। लेकिन इस व्यापारिक समझौते को लेकर किसान संगठन बहुत चितिंत हैं। किसान संगठनों का कहना है कि अगर भारत, अमेरिका के साथ होने वाले समझौते में कृषि और डेयरी व्यवसाय को भी शामिल करता है तो इसका भारत के किसानों और पशुपालकों पर बुरा असर पड़ेगा।
सात अगस्त 2020 को राष्ट्रीय किसान महासंघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को एक पत्र लिखा था कि भारत-अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की तैयारी कर रहा है। जो किसानों के साथ बहुत नुकसानदायक हो सकता है। इस बारे में संगठन ने 17 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा था, 4 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने जवाब दिया कि वाणिज्य डिपार्टमेंट द्वारा इस संबंध में सभी पक्षों से राय ली जाएगी, लेकिन अब तक (7 अगस्त) संगठन से संपर्क तक नहीं किया गया।
किसान महासंघ का कहना है कि अगर अमेरिका के साथ समझौता होता है कि भारतीय किसान अमेरिका से आने वाले उत्पादों का सामना नहीं कर पाएंगे। क्योंकि अमेरिका द्वारा अपने किसानों को बड़ी मात्रा में सब्सिडी दी जाती है। अमेरिका ने फार्म बिल 2014 में 956 बिलियन डॉलर सब्सिडी की घोषणा की थी, जो अब तक की सबसे बड़ी सब्सिडी थी, जब दूसरे देशों ने इसका विरोध किया तो अमेरिका ने कहा था कि यह केवल दस साल के लिए है, परंतु फार्म बिल 2019 में अमेरिका ने फिर से किसानों के लिए 867 बिलियन डॉलर सब्सिडी की घोषणा की है। ऐसे में इतनी ज्यादा सब्सिडी हासिल करने वाले किसानों के उत्पाद जब भारत में आएंगे तो भारत के किसान उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे। अमेरिका द्वारा किसानों को दी जा रही सब्सिडी के विरोध में विकासशील देशों के एक समूह (जी33) को भारत भी सहयोग करता है, ऐसे में यदि अमेरिका के सब्सिडी युक्त कृषि उत्पाद भारत आते हैं तो भारत को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में अपने स्टैंड से पीछे हटना पड़ेगा।
अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ग्रेन की रिपोर्ट “भारतीय किसानों के लिए भारत-अमेरिा मुक्त व्यापार समझौते के खतरे” में कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ग्रेन की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों और डेयरी किसानों के दबाव में भारत ने नवबंर 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) में शामिल होने से इंकार कर दिया था, लेकिन अब अमेरिका के साथ जो समझौता भारत करने जा रहा है, वह आरसीईपी से भी ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि भारत के करोड़ों किसानों जिनकी औसतन जोत 1 हेक्टयर या उससे कम है को अमेरिका के किसानों जिनकी औसतन जोन 176 हेक्टेयर या उससे अधिक है के साथ मुकाबला करना होगा। अमेरिका में करीबन 21 लाख खेत हैं, जिसमें वहां की 2 प्रतिशत से भी कम आबादी को रोजगार मिलता है। वहां की औसतन वार्षिक कृषि आय लगभग 18,637 डॉलर ( लगभग 14 लाख रुपए) प्रति परिवार है। यह भी केवल कृषि से होने वाली आय है। दूसरी तरफ, भारत की 130 करोड़ आबादी में आधी से ज्यादा आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। यहां एक किसान परिवार की सब कुछ मिलाकर आय 1000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 75 हजार रुपए) सालाना से अधिक नहीं है।
डेयरी किसानों पर खतरा
पत्र में कहा गया है कि अमेरिका के साथ हो रहे मुक्त व्यापार समझौते से कृषि के साथ-साथ डेयरी उत्पादों पर भी बुरा असर पड़ेगा। अभी भी अमेरिका से मिल्क पाउडर, प्रीमिट पाउडर और पनीर बड़ी मात्रा में आयात हो रहा है, जबकि इन पर 30 से 60 फीसदी आयात शुल्क लगता है। अगर आयात शुल्क हट जाता है तो डेयरी उत्पादों का आयात कई गुणा बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं, अमेरिका से मांसाहारी पनीर का आयात भी एक बड़ा मुद्दा है, जबकि भारतीय कस्टम विभाग किसी तरह से यह जांच भी नहीं कर सकते कि पनीर मांसाहारी है या नहीं, क्योंकि अमेरिका इसके लिए भी तैयार नहीं है कि पनीर के लेबल पर शाकाहारी या मांसाहारी लिखा जाए।
वहीं, ग्रेन की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका ने भारत के डेयरी बाजार में प्रवेश करने के लिए बड़े तिगड़म लगाए हैं और हमेशा उसे विरोध का सामना पड़ा। 2003 से भारत ने डेयरी आयात पर “सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी” मानक लगा रहा था, जिसके कारण भारत में अमेरिका उत्पादों का प्रवेश पूरी तरह से बंद था, लेकिन दिसंबर 2018 से कुछ कड़े व अनिवार्य प्रमाणीकरण की शर्तों के साथ अमेरिका को डेयरी उत्पादों के निर्यात की स्वीकृति दे दी गई। इस शर्त के अनुसार, अमेरिका के डेयरी उत्पादों का संबंध किसी भी ऐसे पशु से नहीं होना चाहिए, जिनके आहार में रक्त, अतरिक्त अंग या जुगाली करने वाले पशुओं के अधिशेष नहीं हों, क्योंकि ये भारतीयों के लिए सांस्कृतिक एवं धार्मिंक आधार पर अस्वीकार्य है। अभी तक अमेरिका इन शर्तों को मानने के लिए आनाकानी कर रह है। वह इसे वैज्ञानिक रूप से अनुचित ठहरा रहा है।
ग्रेन की रिपोर्ट बताती है कि भारत में करीब 15 करोड़ डेयरी किसान हैं, जो किसी भ दूसरे देश से ज्यादा दूध का उत्पादन करते हैं। इनमें से अधिकांश किसान छोटे हैं, जिनके पास दो या तीन गाय या भैंस हैं। इसलिए डेयरी क्षेत्र को ग्रामीण भारत की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। ये लोग जो भी दुग्ध उत्पादन करते हैं, वह या तो खुद ही इस्तेमाल करते हैं या ग्रामीण क्षेत्रों में दूसरे लोगों, शहरी घरों या सहकारी समितियों के नेटवर्क की मदद से बेचा जाता है। उपभोक्ताओं द्वारा किए गए भुगतान का करीब 70 प्रतिशत उत्पादकों (डेयरी किसानों) को मिल जाता है। लेकिन अमेरिका में इसका बिलकुल उल्टा है। वहां का डेयरी उद्योग कुछ बड़ी कंपनियों के हाथों में है। डेयरी फार्म की संख्या कम हो रही है, लेकिन प्रत्येक फार्म में गायों की औसत संख्या लगातार बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में करीब 35 प्रतिशत दूध उन डेयरी फाम से आता है, जहां 2,500 से ज्यादा गायें हैं और 45 प्रतिशत उन डेयरी फार्म से आता है, जहां 1,000 से कम गायें हैं। कुछ बड़ी डेयरी फार्म के पास 30,000 से भी अधिक गायें हैं। इसके बावजूद वहां कीमत कम है और अमेरिकी सरकार द्वारा डेयरी फार्म मालिकों को भारी सब्सिडी दी जाती है। 2015 में अमेरिकी सरकार ने डेयरी क्षेत्र को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 2,220 करोड़ अमेरिकी डॉलर (लगभग 1.66 लाख करोड़ रुपए) दिए।
इसके अलावा सोयाबीन, चिकन (मुर्गी), मक्का और गेहूं, बादाम और अखरोट, सेब, दाल, चीनी और सिंथेटिक रबर आदि का आयात भी बढ़ने की संभावनाएं हैं। इस तरह और भी कई उत्पाद भी अमेरिका के साथ होने वाले फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स में शामिल हैं।
अमेरिका से होने जा रहे व्यापार समझौते के चलते बीज पर अधिकार को लेकर भी शंका जताई जा रही है। ग्रेन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका के साथ समझौता करने वाले देशों को यूपोव 1991 यानी पौधों की नई किस्मों के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय यूनियन की संधि में शामिल होना अनिवार्य है। यूपोव के अंतर्गत बीजों के ऊपर पेटेंट का अधिकार दिया जाता है। हालांकि भारत हमेशा से यूपोव में शामिल होने से इंकार करता रहा है, जिससे वह लाखों छोटे किसानों और गैर कॉरपोरेट पौध प्रजनकों के हितों को सुरक्षित रख सके, लेकिन 2019 में पेप्सिको कंपनी द्वारा अपनी आलू की एक किस्म के बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन करने के आरोप गुजरात के किसानों पर लगाया था और उस मामले में पेप्सिको को दबाव झेलना पड़ा था। ऐसे में, यह पूरी तरह संभव है कि अमेरिकी बीज उद्योग इस प्रस्तावित समझौते के माध्यम से भारत में एक मजबूत बीज एकाधिकार की बात करेंगे और किसानों द्वारा बीज बचाने की संभावनाओं को खत्म करना चाहेंगे।
किसानों की इन शंकाओं को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 सितंबर को क्या कहते हैं, यह देखना बेहद अहम होगा।(downtoearth)
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वाशिंगटन। अमेरिका के कारखानों में पिछले महीने 2018 के आखिरी महीनों की तुलना में तजी से उत्पादन बढ़ा है। कोरोना वायरस से आई मंदी के बाद यह उद्योग धंधों में आ रही तेजी को दर्शाता है।
खरीद प्रबंधकों के संघ, दि इंस्टीट्यूट फार सप्पलाई मैनेजमेंट (आईएसएम) ने मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा कि उसका विनिर्माण सूचकांक अगस्त में बढ़कर 56 पर पहुंच गया जबकि जुलाई में यह 54.2 पर था। यह नवंबर 2018 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। इस सूचकांक में 50 अंक से ऊपर वृद्धि का सूचक है। इस प्रकार अमेरिका के विनिर्माण खेत्र में लगातार तीसरे महीने विस्तार हुआ है। यह आंकड़ों अर्थशास्त्रियों ने जितना अनुमान व्यक्त किया था उससे ऊंचा है। महामारी पर काबू पाने के लिये किये गये उपायों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अपंग बना दिया। सर्वेक्षण में इसका असर दिखा और मार्च, अप्रैल और मई माह के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में संकुचन हुआ वहीं जून से यह वृद्धि के रास्ते पर आगे बढऩे लगी। आईएसएम रिपोर्ट के मुताबिक अगस्ते में आर्डर, उत्पादन और निर्यात आर्डर सभी तेजी से बढ़े हैं लेकिन सर्वे के नौकरी के मानक में रोजगार में कमी आई है। यह लगातार 13वां महीना रहा जब रोजगार कम हुये हैं। अगस्त में 18 में से 15 उद्योगों में वृद्धि दर्ज की गई। इसमें लकड़ी और प्लास्टिक निर्माता उद्योग सबसे आगे रहे हैं। -
वाशिंगटन, 1 सितंबर (स्पूतनिक)। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बिडेन पर तंज कसते हुए कहा कि वह महज एक कठपुतली हैं और उनके नवंबर में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने पर अमेरिका में ‘क्रांति’ आ जाएगी।
उन्होंने कहा, ‘बिडेन चीजों को दुरुस्त नहीं करेंगे बल्कि उन पर अपना कब्जा जमा लेंगे। वह एक कमजोर इंसान के साथ ही महज एक कठपुतली हैं। इसलिए चीजें सहीं नहीं होने वाली हैं। वह आपके शहरों पर कब्जा कर लेंगे। यह एक क्रांति है जिसे आप समझते हैं। यह एक क्रांति है और देशवासी इसके साथ खड़े नहीं होंगे।’
श्री ट्रम्प के मुताबिक इस ‘क्रांति’ के लिए वित्तीय सहायता ऐसे मूर्ख लोगों से प्राप्त हो रही है जो बहुत अमीर हैं लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि अगर कभी वास्तव में श्री बिडेन विजयी हुए तो उन्हें सबसे पहले दरकिनार किया जायेगा।
श्री बिडेन ने सोमवार को आरोप लगाया कि ट्रम्प विरोध-प्रदर्शनों से त्रस्त राष्ट्र को एकजुट करने के बजाय इसे और विभाजित कर रहे हैं तथा उनके शब्द और संदेश कानून-व्यवस्था कायम करने की बजाय अराजकता का बीज बो रहे हैं।
श्री बिडेन की यह टिप्पणी श्री ट्रम्प समेत कई रिपब्लिकन नेताओं द्वारा बार-बार उनकी और डेमोक्रेटिक की आलोचना के बाद आई है। श्री ट्रम्प ने डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं पर आरोप लगाया है कि उन्होंने अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों और शहरों में तीन महीने से ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ मुद्दे पर हो रही हिंसा आधारित आंदोलन की निंदा नहीं की।
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बीजिंग. चीन (China) एक बार फिर सवालों के घेरे में है और ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना वायरस (Covid-19), टिड्डी और बाढ़ की समस्या के चलते अनाज के उत्पादन में भारी कमी आई है और भुखमरी के हालत बनने की आशंका है. पश्चिमी मीडिया में छपी कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) ने इसी भुखमरी के मद्देनज़र 'क्लीन योर प्लेट कैम्पेन' फिर से लॉन्च किया है. इस कैम्पेन में लोगों से खाना न बर्बाद करने के लिए कहा गया है. हालांकि चीनी मीडिया ने इस रिपोर्ट्स को पूरी तरह खारिज कर दिया है.
BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में साल 2013 में सबसे पहले 'क्लीन योर प्लेट कैम्पेन' शुरू किया गया था. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज़ (CASS) के रुरल डेवेलपमेंट इंस्टिट्यूट और चाइना सोशल साइंसेज़ प्रेस की ओर से 17 अगस्त को संयुक्त रूप से जारी 'द रुरल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2020' में यह भी कहा गया है कि गेहूं, चावल और मक्के की घरेलू आपूर्ति भी 2025 तक मांग से 25 मिलियन टन कम रहेगी. हालांकि चीन का कहना है कि इस रिपोर्ट को गलत तरीके से प्रचारित किया जा रहा है. चीन के सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, शी ज़िनपिंग ने खाने की बर्बादी को 'हैरान करने वाला और निराशाजनक' बताते हुए इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाने को कहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा सामाजिक वातावरण तैयार किया जाए जिसमें खाना बर्बाद करने को 'शर्मिंदगी के नज़रिए' से देखा जाए. कोरोना महामारी के चलते प्रभावित हुआ उत्पादन
चाइना ग्लोबल टेलिविज़न नेटवर्क (सीजीटीएन) ने ज़िनपिंग के हवाले से कहा है, ''हालांकि चीन ने कई सालों से बम्पर पैदावार की है लेकिन अब भी खाद्य सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है. कोविड-19 का असर हमारे लिए अलार्म की तरह है." चीनी कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि चीन में 2019 में कुल अनाज की पैदावर 664 मिलियन टन हुई है. चीनी टीवी चैनल सीजीटीएन के मुताबिक़, इसमें 210 मिलियन टन चावल और 134 मिलियन टन गेहूं है जबकि अभी देश में चावल की खपत 143 मिलियन टन और गेहूं की खपत 125 मिलियन टन है. ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि चीन के लिए महामारी या बाढ़ के कारण खाद्यान्न की कमी होने से ज़्यादा बड़ा संकट खाना बर्बाद करने से उभर सकता है.क्या भुखमरी छिपा रहा है चीन?
चीन की सरकारी मीडिया के लगातार खाना बर्बाद न करने की बातों के चलते विश्लेषकों के मन में यह आशंका पैदा कर दी है कि बर्बादी और लोगों के ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार की आड़ में चीन में खाद्य संकट की बात छिपाई तो नहीं जा रही? इसके लिए सरकारी मीडिया आंकड़ों का भी हवाला दिया. इन आंकड़ों के मुताबिक चीनी उपभोक्ताओं ने साल 2015 में बड़े शहरों में 17 से 18 टन तक खाना बर्बाद किया है. चीन कोविड-19 या फिर कई प्रांतों में प्राकृतिक आपदा के कारण फसल बर्बाद होने की वजह से किसी तरह के खाद्य संकट का सामना कर रहा है. चीन ने खाद्य उत्पादन, टिड्डियों के प्रकोप और महामारी के असर पर अच्छी तरह से नियंत्रण रखा है. -
श्रीनगर, 31 अगस्त (आईएएनएस)| श्रीनगर के बेमिना और जदीबाल क्षेत्रों में सुरक्षाबलों द्वारा मुहर्रम पर निकाले गए जुलूसों पर गोलियां चलाने और आंसू के गोले दागने के बाद कई लोगों के घायल होने की जानकारी सामने आई है। वहीं पुलिस का भी कहना है कि पत्थरबाजी में उसके 15 से अधिक कर्मी घायल हुए हैं। सोशल मीडिया पर पैलेट फायरिंग में घायल हुए कुछ लोगों की तस्वीरें काफी वायरल हो रही हैं।
बेमिना में घटित शनिवार की घटना में घायल एक व्यक्ति सुहैल ने कहा कि पुलिस ने शांतिपूर्ण जुलूस पर पैलेट फायरिंग की।
उन्होंने कहा, "जुलूस शांतिपूर्ण तरीके से निकाला गया था। मैं भी पैलेट और रबर की गोली से घायल हुआ हूं।"
इसी बीच पुलिस ने रविवार को एक बयान में कहा कि श्रीनगर में दर्जनों स्थानों पर मुहर्रम के जुलूस निकाले गए और कोविड-19 महामारी के कारण जुलूसों की अनुमति नहीं होने की बात बताए जाने पर कुछ स्थानों पर जुलूस में शामिल लोगों ने पथराव भी किया।
पुलिस के अनुसार, इस तरह के अधिकांश जुलूस शांति से पीछे हट गए, लेकिन कुछ स्थानों पर लोगों ने पुलिस को धकेलना शुरू कर दिया और पथराव भी किया।
पुलिस ने कहा, "पथराव के दौरान 15 से अधिक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए, उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया है।"
पुलिस ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और जांच की जा रही है।
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मालम. स्वीडन (Sweden) में शुक्रवार रात को सैकड़ों लोग दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के खिलाफ सड़कों पर उतर आए जिससे दंगे (Riots) पैदा हो गए. दक्षिणपंथियों ने पहले कुरान को जला दिया था जिसके बाद नाराज लोगों ने आक्रामक विरोध प्रदर्शन किया. तस्वीरों में देखा जा सकता है कि सड़कों पर टायर जालाए जा रहे हैं और मालम शहर में धुआं ही धुआं है. माना जा रहा है कि करीब 300 लोगों ने पुलिस पर भी पथराव किय जब उन्होंने हालात को काबू में करने की कोशिश की. एक दक्षिणपंथी नेता को गिरफ्तार किए जाने के बाद उनके समर्थकों ने कुरान को जला दिया था.
इसी जगह पर बाद में विरोध प्रदर्शनों के बाद हालात तनावपूर्ण हो गए. नेशनल अखबार डेली आफटनब्लेडेट की रिपोर्ट्स के मुताबिक शुक्रवार को एक पब्लिक स्क्वेयर पर इस्लाम-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान तीन लोगों को पहले कुरान की एक प्रति को पैर मारते देखा गया था. पुलिस हालात काबू करने की कोशिश में जुटी है. दरअसल, देश में प्रतिबंधित डेनमार्क की हार्ड लाइन के नेता रासमस पालुदन को मालम में मीटिंग की इजाजत नहीं दी गई थी और स्वीडन के बॉर्डर पर रोक लिया गया था. प्रशासन को शक था कि उनके आने से स्वीडन में कानून को तोड़ा जाएगा और सामाजिक शांति को नुकसान पहुंचेगा। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.
कुरान और इस्लाम का अपमान
हालांकि, उन्हें गिरफ्तार किए जाने के बाद गुस्साए समर्थकों ने रैली के दौरान कुरान को जला दिया. इसके आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है. पालुदन ने भी पिछले साल कुरान को जलाकर विवाद खड़ा कर दिया था. यही नहीं, उन्होंने मुस्लिमों में वर्जित मीट (बेकन) में घेरकर कुरान को रखा था. फेसबुक पर भी उन्होंने नफरतभरे पोस्ट किए थे.(news18)
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लंदन। नीदरलैंड की 29 वर्षीय मारिके लुकास रिजनेवेल्ड अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली सबसे कम उम्र की लेखक बन गई हैं।
यह पुरस्कार मूल बुकर पुरस्कार से अलग है और इसका लक्ष्य विश्वभर में अच्छे उपन्यास के अधिक प्रकाशन और उसे पढऩे के लिए प्रोत्साहित करना है। रिजनेवेल्ड की किताब द डिस्कम्फर्ट ऑफ इवनिंग को विजेता घोषित किया गया। यह ग्रामीण नीदरलैंड के एक कट्टर ईसाई समुदाय के एक किसान परिवार की कहानी है।
नियमों के अनुसार पुरस्कार की इनाम राशि 50 हजार पाउंड लेखक और अनुवादक मिशेल हचिसन के बीच बराबर बंटेगी। इस साल 30 भाषाओं से अनुवाद की गई 124 किताबें बुकर पुरस्कार की दौड़ में थीं। -
लंदन. यूके (Britain) के डोर्सेट के एक समुद्र तट (Sinking Swimmer at Sea Coast) पर लोगों ने मानव श्रंखला (Human Chain) बनाकर एक तैराक को बचा लिया. इस घटना की एक वीडियो देखने पर पता चलता है कि किस तरह 20 से अधिक लोगों ने हाथ जोड़कर और समुद्र में संघर्ष कर रहे तैराक को बचाने के लिए समुद्र में घुस गए. उस वक़्त समुद्र में बड़ी बड़ी लहरों के बावजूद लोग उस आदमी को सकुशल पानी से बाहर लाने में सफल हुए.
यूके के डोर्सेट में समुद्र में एक आदमी ज्वार की बड़ी लहरों में डूबने लगा. लोगों ने उसे हाथ पैर मारते हुए देखा। उसे डूबता देखकर समुद्र तट पर खड़े लोगों ने उस व्यक्ति को बचाने के लिए एक मानव श्रृंखला बनाई. इस घटना की एक वीडियो अब सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया जा रहा है.
बड़ी लहरों को देखकर तैराक तट की ओर लौटने लगा था
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार जब तैराक ने ज्वार की बड़ी बड़ी लहरोंखा तो उसने वापस समुद्र तट की तरफ तैरना शुरू कर दिया लेकिन किनारे पर वापस लौटने के उसके प्रयासों को तेज चल रही हवाओं और विशालकाय लहरों ने नाकाम कर दिया. इस वीडियो को दे में दिखाया गया कि किस तरह उस तैराक को डूबते देख 20 लोगों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर उस आदमी को बचाने के लिए समुद्र में प्रवेश किया. बड़ी लहरों द्वारा लगातार पस्त किये जाने के बावजूद बचावकर्मी उस आदमी को पानी से बाहर निकाल लाए.
ट्रंप के प्रचार अभियान में निक्की हैली ने कहा- भारतीय की बेटी हूं, मुझे इसका गर्व है
एक अखबार के अनुसार कोस्ट गार्ड ने इस घटना के बाद चेतावनी जारी की है जिसमें लोगों को उस स्थान से दूर रहने के लिए कहा है. उस स्थान पर हाल ही में कई मौतें हुई हैं. दो महीने पहले ही लगभग 20 साल का एक आदमी जो लापता बताया जा रहा था, वहां मृत पाया गया था(news18)
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ब्रसेल्स, 25 अगस्त (आईएएनएस)| यूरोपीय आयोग ने कोविड-19 के खिलाफ संभावित वैक्सीन खरीदने के लिए वैक्सीन की खोज, विकास और टेक्नॉलॉजी पर काम करने वाली अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना से बातचीत का दौर पूरा कर लिया है। आयोग ने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी है।
सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, आयोग ने यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य राज्यों की ओर से इस फार्मेसी कंपनी के साथ एक कॉन्ट्रेक्ट की घोषणा की है। इसके तहत कोविड-19 वैक्सीन के 80 मिलियन यानि कि 8 करोड़ डोज खरीदे जाएंगे, साथ ही इसमें इतने ही और डोज खरीदने का विकल्प भी रखा गया है। जैसे ही वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी साबित होगी, इसकी आपूर्ति की जाएगी।
आयोग के अध्यक्ष उसुर्ला वॉन डेर लेयेन ने कहा, "गहन चर्चा के बाद यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय लोगों को कोरोनावायरस के खिलाफ वैक्सीन को जल्द उपलब्ध कराने के लिए पांचवीं दवा कंपनी के साथ बातचीत संपन्न की है।"
इससे पहले आयोग ने सनोफी-जीएसके, जॉनसन एंड जॉनसन और क्योरवैक के साथ भी बातचीत पूरी कर ली है और वैक्सीन खरीदने के लिए एस्ट्राजेनेका के साथ एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर भी कर लिए हैं। इस बयान में कहा गया है कि वैक्सीन के अन्य उत्पादकों के साथ भी चर्चा जारी है।
ईयू ने 12 से 18 महीनों के भीतर सभी यूरोपीय नागरिकों को उच्च-गुणवत्ता वाले, सुरक्षित, प्रभावी और सस्ती वैक्सीन को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
बता दें कि 20 अगस्त तक दुनिया भर में कोविड-19 के 169 उम्मीदवार वैक्सीन विकसित कर रहे थे और उनमें से 30 के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे थे।
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1.55 करोड़ ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग रखी कई कीमत
लंदन। महाराजा दलीप सिंह के बेटे प्रिंस विक्टर अल्बर्ट जय दलीप सिंह का लंदन स्थित पूर्व पारिवारिक महल बिकने जा रहा है और इसकी कीमत 1.55 करोड़ ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग रखी गई है। महाराजा रणजीत सिंह के छोटे बेटे दलीप सिंह इंग्लैंड निर्वासित किये जाने तक और अपना साम्राज्य ब्रिटिश राज के तहत आने तक सिख साम्राज्य के अंतिम महाराजा थे। उनके साम्राज्य में 19 वीं सदी में लाहौर (पाकिस्तान) भी शामिल था। दलीप सिंह के बेटे प्रिंस विक्टर का जन्म 1866 में लंदन में हुआ था और ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया उनकी गॉडमदर के समान थी। कई साल बाद जब प्रिंस विक्टर ने नौवें अर्ल ऑफ कोवेंट्री की बेटी लेडी एनी कोवेंट्री के साथ अपने मिश्रित नस्ल की शादी से वहां के समाज में खलबली पैदा की, तब ब्रिटिश अधिकारियों ने नवविवाहित जोड़े को दक्षिण-पश्चिम केनसिंगटन के लिटिल बॉल्टन इलाके में उनके ससुराल के नये घर के रूप में एक आलीशान महल पट्टे पर दे दिया।
इस महल की बिक्री का आयोजन कर रहे बाउशैम्प एस्टेट के प्रबंध निदेशक जेरेमी गी ने कहा, लाहौर के निर्वासित क्राउन प्रिंस के इस पूर्व आलीशान महल की छत ऊंची हैं, इसके अंदर रहने के लिये विशाल जगह है और पीछे 52 फुट का एक बगीचा भी है। यह महल 1868 में बन कर तैयार हुआ था और इसे अद्र्ध सरकारी ईस्ट इंडिया कंपनी ने खरीदा था और इसे पट्टे पर देकर किराये से आय अर्जित करने के लिये एक निवेश संपत्ति के रूप में पंजीकृत कराया गया था। उस समय भारत पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी ने यह महल मामूली किराये पर निर्वासित दलीप सिंह के परिवार को दे दिया था।
उल्लेखनीय है कि महाराजा दलीप सिंह को 1849 में द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के बाद निर्वासन में लंदन भेज दिया गया था। प्रिंस विक्टर अल्बर्ट जय दलीप सिंह, महारानी बंबा मूलर से उनके सबसे बड़े बेटे थे। बंबा से उन्हें एक बेटी -सोफिया दलीप सिंह- भी थी, जो ब्रिटिश इतिहास में एक प्रमुख महिला अधिकार कार्यकर्ता के रूप में प्रसिद्ध रही। प्रिंस विक्टर जुआ खेलना, घुड़सवारी और बड़े होटलों में जश्न मनाने जैसे आलीशान जीवन शैली को लेकर जाने जाते थे। वर्ष 1902 में कुल 117,900 ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग (जो उस वक्त एक बड़ी रकम थी) के कर्ज के साथ उन्हें दिवालिया घोषित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान प्रिंस और उनकी पत्नी मोनाको में थे, जहां 51 वर्ष की आयु में प्रिंस की 1918 में मृत्यु हो गई। वर्ष 1871 की जनगणना के मुताबिक यह महला ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिकाना हक में पंजीकृत था, जहां एक बटलर और दो नौकर, अंग्रेजी भाषा सिखाने के लिये एक गर्वनेस और एक माली नियुक्त थे। एस्टेट के मुताबिक 2010 में इस महल का जीर्णोद्धार और आधुनिकीकरण कराया गया। 5,613 वर्ग फुट आकार के इतालवी शैली के विला में दो औपचारिक स्वागत कक्ष, एक अनौपचारिक परिवार कक्षा, एक पारिवारिक रसोई और एक नाश्ता कक्ष, पांच शयनकक्ष, एक जिम और दो कर्मचारी शयनकक्ष हैं। -
अमेरिका में कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना वायरस से से जूझ रहे अमेरिका में इस महामारी ने कोहराम मचा रखा है। अमेरिका में अब तक 57 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान और इंजीनियरिंग केन्द्र (सीएसएसई) की ओर से जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में कोरोना संक्रमितों की संख्या 57,00,487 हो गई है। जबकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या 1,76,797 पहुंच गई है।
अमेरिका का न्यूयार्क, न्यूजर्सी और कैलिफोर्निया प्रांत कोरोना से सबसे बुरी तरह प्रभावित है। अकेले न्यूयार्क में कोरोना संक्रमण की वजह से 32,883 लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। न्यूजर्सी में अब तक 15,946 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है। कैलिफोर्निया में कोविड-19 से अब तक 12 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। टेक्सास में इसके कारण 11,698 लोग अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं जबकि फ्लोरिडा में कोविड-19 से 10 हजार से अधिक लोगों की जान गई है। इसके अलावा मैसाचुसेट्स, इलिनॉयस और पेंसिल्वेनिया जैसे प्रांत भी कोविड-19 का प्रकोप झेल रहे हैं। इन तीनों प्रांतों में कोरोना से सात हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है।
दुनिया भर में हर रोज कोरोना संक्रमण के लाखों मामले आ रहे हैं। अब तक दुनिया भर में 2.36 करोड़ लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। इनमें से 8 लाख 12 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। वहीं कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या 1 करोड़ 60 लाख के पार पहुंच गई है। दुनिया भर में अभी भी कोरोना के 67 लाख सक्रिय मामले हैं। दुनियाम पिछले 24 घंटे में कोरोना के 2.06 लाख नए केस सामने आए हैं और 4235 लोगों की मौत हो गई है। बढ़ते कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरी दुनिया चिंतित है।(navjivan)
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भारत और चीन के बीच बिगड़ते रिश्ते इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में भले ही दोनों देशों में गर्मजोशी दिखी थी, लेकिन उनके बीच कुछ मूलभूत विवाद अभी भी बने हुए हैं.
ऐसे में दोनों देशों के आपसी रिश्तों के भविष्य को लेकर भारत की विदेश नीति की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है.
भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव कहती हैं, "पिछले 45 सालों में एलएसी पर एक भी गोली नहीं चली थी लेकिन गलवान की घटना के कारण अब सबकुछ बिखरा हुआ नज़र आ रहा है."
पिछले एक दशक में भारत का चीन के प्रति दोस्ताना रवैया रहा है, चीन ने भारत में निवेश किए हैं और व्यापार करता रहा है.
सीमा पर विवाद के बाद भी भारत का चीनी मोबाइल एप्स पर बैन लगाना भी एक सीमित क़दम था.
यूरेशिया समूह के अध्यक्ष इएन ब्रेमर मानते हैं कि भारत सीमा पर विवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहता.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "ये बहुत साफ़ है कि भारत की सेना चीनी सेना की गोलीबारी की क्षमता के आसपास भी नहीं है और वह सीमा पर चीन के साथ विवाद को बढ़ाना नहीं चाहते, लेकिन भारत के पास एक बहुत लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं और चीन के ख़िलाफ बोलकर अपनी राष्ट्रवादी छवि को निखारना उन्हें राजनीतिक फ़ायदा पहुंचाता है, इससे देश में इंडस्ट्री को भी मदद मिलती है और भारतीयों के लिए चीन के ख़िलाफ अपने पसंद के क्षेत्र में वापस आने का यह एक प्रभावी तरीका है." भारत चीन के बीच व्यापार
भारत और चीन के बीच सामानों के आपसी व्यापार के विकास की कहानी उत्साहजनक है. साल 2001 में इसकी लागत केवल 3.6 अरब डॉलर थी. साल 2019 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 90 अरब डॉलर का हो गया. चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है.
ये रिश्ता एक तरफ़ा नहीं है. अगर आज भारत सामान्य दवाओं में दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है तो इसमें चीन का भी योगदान है क्योंकि सामान्य दवाओं के लिए कच्चा माल चीन से आता है. व्यापार के अलावा दोनों देशों ने एक दूसरे के यहाँ निवेश भी क्या है लेकिन अपनी क्षमता से कहीं कम.
साल 1962 के युद्ध और लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल में सालों से जारी तनाव के बावजूद आपसी व्यापार बढ़ता आया है.
भारत की तरफ़ से ये शिकायत रहती है कि द्विपक्षीय व्यापार में चीन का निर्यात दो-तिहाई है.
भारत चीन के बीच 50 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटे को देखते हुए, इससे अधिक कठोर कदम उठाना भारते को उल्टा पड़ सकता है. भारत के ज़रुरी है कि वो संभल कर क़दम उठाए, इलाके में अपने भू राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के साथ साथ आर्थिक ज़रुरतों का भी ध्यान रखना होगा.
चीन और भारत एक दूसरे के उत्पादकों के लिए बड़े बाज़ार हैं. साथ ही अमरीका और पश्चिमी देशों के लिए भी ये दोनों देश सबसे बड़े और आकर्षक बाज़ार हैं.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के 2019 के आँकड़ों के अनुसार विश्व की सामूहिक अर्थव्यवस्था लगभग 90 खरब अमरीकी डॉलर की है, जिसमें चीन का योगदान 15.5 प्रतिशत है और भारत का योगदान 3.9 प्रतिशत है.
विश्व की अर्थव्यवस्था के 22-23 प्रतिशत हिस्से पर दुनिया की 37 प्रतिशत आबादी की देखभाल की ज़िम्मेदारी है.
बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट भारत के लिए चुनौती
इसके साथ ही चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट जिसके तहत पड़ोसी देशों में भी हाइवे, रेलवे ,पोर्ट बना रहा है, भारत के आने वाल वक्त में चुनौती साबित हो सकता है.
इयान ब्रेमर के मुताबिक , "इन देशों पर चीन का बहुत प्रभाव होगा. भारतीय अपने आप को बैकफुट पर पाते हैं. चीन एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था है जहां सरकार के इशारे पर बहुत सारे
निवेश हो रहे हैं और सरकार को राजनीतिक लाभ मिल रहा है. भारत के लिए एक बढ़ती हुई चुनौती है."
इस इलाके में स्थिरता इस बात का बहुत बड़ा योगदान होगा कि आने वाले कुछ समय में दोनों देश आपस में एक दूसरे के साथ कैसे काम करते हैं.
चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर या सीपेक भी चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बनाए जा रहे व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा है.
सीपेक के तहत पाकिस्तान में इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें चीन का 62 अरब डॉलर का निवेश है. चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की सभी परियोजनाओं में सीपेक को सबसे महत्वपूर्ण मानता है.
15 जून को गलवान में हुई थी हिंसक झड़प
15 जून को गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच संघर्ष में भारत के 20 सैनिकों की मौत हो गई थी. चीन ने हताहतों के बारे में आधिकारिक रूप से अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है. तब से सीमावर्ती इलाक़े में दोनों देशों की ओर से सैनिकों का जमावड़ा है.
दोनों देशों में सैनिक और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जारी है और तनाव कम करने की भी दावा किया जा रहा है.
हालाँकि पिछले महीने जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लद्दाख़ में कहा था कि दोनों देशों में बातचीत जारी है और समस्या का हल निकल जाना चाहिए. लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि ये मामला कहाँ तक हल होगा, इसकी गारंटी वे नहीं दे सकते.
15 जून की घटना के बाद भारत और चीन के बीच कई स्तर पर बातचीत हुई है. दोनों देशों की सेनाएँ कई इलाक़ों से पीछे भी हटी हैं, लेकिन अब भी कुछ इलाक़ों को लेकर दोनों देशों में बातचीत जारी है.(bbc)
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दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में खुदाई करने वालों की एक जोड़ी ने सोने की दो डलियां खोद निकाली हैं, जिनकी क़ीमत लगभग 250,000 अमरीकी डॉलर यानी एक करोड़ 87 लाख रूपये से कुछ अधिक बताई जा रही है.
ब्रेंट शैनॉन और एथन वेस्ट को ये सोने की डलियाँ विक्टोरिया राज्य के टार्नागुल्ला शहर के पास खुदाई के दौरान मिली.
उनकी इस खोज को चर्चित टीवी शो 'ऑस्ट्रेलियाई गोल्ड हंटर्स' पर दिखाया गया. यह कार्यक्रम गुरुवार को प्रसारित हुआ था.
इस जोड़ी ने मेटल डिटेक्टरों का इस्तेमाल कर सोने का पता लगाया और उस इलाक़े में की खुदाई कर सोना निकाला. सोना निकालने की पूरी प्रक्रिया को टीवी पर प्रसारित भी किया गया.
सीएनएन से बात करते हुए एथन वेस्ट ने कहा, "यह निश्चित रूप से हमारी सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक है. एक ही दिन में इतनी बड़ी दो डलियों की खोज, वाक़ई आश्चर्यजनक है."
इस कार्यक्रम को प्रसारित करने वाले 'डिस्कवरी चैनल' के अनुसार, एथन वेस्ट और उनके पिता ने मिलकर कुछ ही घंटों में सोने की इन डलियों को खोज निकाला जिनका वजन क़रीब साढ़े तीन किलो है.
इन दोनों का वज़न मिलाकर क़रीब साढ़े तीन किलो है
इस टीवी शो में ऑस्ट्रेलिया के सुदूर इलाक़ों में सोने की खोज करने वाली जोड़ियों का काम दर्शकों का दिखाया जाता है. कार्यक्रम में ये दिखाया जाता है कि खोजकर्ता ज़मीन में दबे सोने को कैसे ढूंढते हैं.
ऑस्ट्रेलियाई टीवी शो 'सनराइज़' से बात करते हुए ब्रेंट शैनॉन ने कहा, "हम एक मौक़ा लेकर देखना चाहते थे. वो सिर्फ़ एक खाली ग्राउंड था, जिसका मतलब यह भी था कि वहाँ पहले कोई खुदाई नहीं हुई."
एथन वेस्ट के मुताबिक़, चार साल में खुदाई करते हुए उन्हें सोने के 'शायद हज़ारों' टुकड़े मिले हैं.
डिस्कवरी चैनल ने यह भी कहा है कि सोने की खोज करने वाले अपने अनुमानित मूल्य की तुलना में सोने की डली के लिए 30 फीसदी तक अधिक भुगतान कर सकते हैं.
साल 2019 में एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति ने मेटल डिटेक्टर का उपयोग करते हुए 1.4 किलो सोना निकाला था. इसकी अनुमानित क़ीमत लगभग 69,000 अमरीकी डॉलर यानी 51 लाख रुपये से अधिक थी.
ऑस्ट्रेलिया में सोने का खनन 1850 के दशक में शुरू हुआ था और आज भी यह देश में एक महत्वपूर्ण उद्योग है.
एक स्थानीय वेबसाइट के अनुसार, टार्नागुल्ला शहर की स्थापना भी 'विक्टोरिया गोल्ड रश' के दौरान हुई थी और इसी वजह से यह एक धनी शहर है जहाँ बहुत से खोजकर्ता अपना भाग्य आज़माने के लिए पहुँचते रहे हैं.(bbc)
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बीजिंग । चीन के दक्षिण तट पर तूफान हिगोस ने बुधवार को दस्तक दी, जिससे तेज हवाएं चलने के साथ बारिश भी हुई। हालांकि बाद में यह कमजोर होकर उष्णकटिबंधीय तूफान में बदल गया।
चीन के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केन्द्र ने बताया कि तूफान गुआंग्डोंग प्रांत के झुहाई शहर के तट पर पहुंचा। इस दौरान 126 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चली। उसने बताया कि करीब तीन घंटे बाद इसके निकटवर्ती गुआंगशी क्षेत्र की ओर बढ़ते समय 108 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चली। एक बिजली कम्पनी ने बताया कि पेड़ों के तारों पर गिरने से मंगलवार रात को गुआंग्डोंग प्रांत के मैंज़होउ में बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई। चीनी मीडिया की खबरों के अनुसार 65 हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया। स्कूलों को बंद कर दिया गया है और प्रभावित तट के पास से कई मछली पकडऩे की नौकाएं भी वापस बंदरगाह लौट आईं। (फाइल फोटो) -
लंदन, 17 अगस्त। कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन के बाद ब्रिटेन (UK) अब आधिकारिक तौर पर आर्थिक मंदी की गिरफ़्त में आ गया है. अप्रैल और जून के बीच में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है. जनवरी-मार्च के मुकाबले अप्रैल-जून में ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में 20.4 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. लॉकडाउन के दौरान पाबंदियों की वजह से दुकानें बंद थीं और इसलिए घरेलू सामानों की खपत और बिक्री भी कम हुई. फ़ैक्ट्रियों में होने वाले उत्पादन और निर्माण कार्य में भी रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है.
BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी वजहों से ब्रिटेन साल 2009 के बाद अब पहली बार इतनी बुरी तरह आर्थिक मंदी की चपेट में है. ब्रिटेन के ऑफ़िस फ़ॉर नेशन स्टैटिस्टिक्स (ओएनएस) ने उम्मीद जताई है कि जून के बाद से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी क्योंकि अब लॉकडाउन की पाबंदियों में ढील दी जा चुकी है. बताया गया है कि मंदी की सबसे ज़्यादा मार हॉस्पिटैलिटी सेक्टर पर पड़ी है.
ऋषि सुनक की योजनाओं को मिल रही है तारीफ
हालांकि ब्रिटेन के वित्त मंत्री ऋषि सुनक की 'बाहर खाएं, मदद पहुंचाएं' योजना को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को बताया कि पहले सप्ताह में ही 1.05 करोड़ से अधिक बार इस योजना का लाभ उठाया जा चुका है. योजना के तहत ब्रिटेन के सभी रेस्त्रां, कैफे और पब में खाने-पीने पर सरकार की ओर से बिल में 50 प्रतिशत की छूट दी जा रही है. भारतीय मूल के मंत्री सुनक द्वारा तीन अगस्त को शुरू की गई इस योजना का मकसद कोरोना वायरस लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित देश के आतिथ्य (हॉस्पिटैलिटी) क्षेत्र में नई जान फूंकना और लोगों को अपने घर से बाहर भोजन करने के लिये प्रोत्साहित करना है. सरकार इस योजना में हिस्सा ले रहे रेस्त्रांओं में सोमवार से बुधवार तक भोजन करने पर बिल की 50 प्रतिशत राशि खुद वहन कर रही है.
सुनक ने बताया, 'हमारी बाहर खाएं, मदद पहुंचाएं योजना का सबसे पहला मकसद 18 लाख शेफ, वेटर और रेस्त्रां कर्मियों की नौकरियां बचाना है. इस योजना से मांग बढ़ने के साथ-साथ लोग बाहर खाना खाने के लिये भी प्रोत्साहित होंगे.' उन्होंने कहा, 'देशभर में 72 हजार से अधिक प्रतिष्ठान छूट के साथ भोजन परोस रहे हैं. आधे बिल का भुगतान सरकार कर रही है. इस उद्योग का हमारी अर्थव्यवस्था में बेहद अहम योगदान है. कोरोना वायरस के चलते इस क्षेत्र पर बुरा प्रभाव पड़ा है.' ब्रिटेन के वित्त विभाग के अनुसार, आतिथ्य से जुड़ी लगभग 80 प्रतिशत कंपनियों में अप्रैल से कामकाज बंद है, जिसके चलते 14 लाख कर्मचारियों को बिना वेतन छुट्टी पर जाने या नौकरी छोड़ने के लिये कहा गया है. इस सेक्टर में सबसे अधिक लोगों की नौकरियों पर तलवार लटक रही है.(NEWS18)
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अमरीकी चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन और उप-राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर हमला करते हुए कहा कि वो एक अयोग्य नेता हैं और जिन्होंने अमरीका के 'फटे हाल' बना दिया है.
मंगलवार को डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ से उप-राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के अगले ही दिन कमला हैरिस ने जो बाइडन के साथ अपना संयुक्त चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर दिया.
दोनों ने पहला चुनाव प्रचार बाइडन के गृह राज्य डेलवेयर के एक हाईस्कूल से शुरू किया.
तीन नवंबर को होने वाले चुनाव में बाइडन का मुक़ाबला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से होगा.
कैलिफ़ोर्निया से सांसद कमला हैरिस पहली काली और दक्षिण एशियाई मूल की अमरीकी महिला हैं जो इस पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं.
कोरोना महामारी के कारण इस कार्यक्रम में आम लोगों को आने की इजाज़त नहीं थी, सिर्फ़ कुछ पत्रकारों को बुलाया गया था और उन्हें भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना था.
बाइडन और हैरिस ख़ुद काले रंग का फ़ेस मास्क लगाए स्टेज पर आए. इस मौक़े पर बाइडन ने कहा, "इस नवंबर को हमलोग जो चुनाव करते हैं वो बहुत ही लंबे समय के लिए अमरीका के भविष्य का फ़ैसला करेगा."
बाइडन ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कमला हैरिस पर हमला शुरू कर दिया है और वो उनके बारे में बहुत ही घिनौनी बातें कर रहे हैं.
बाइडन ने कहा, "ये कोई आश्चर्य करने वाली बात नहीं है क्योंकि ट्रंप को शिकायत करना सबसे अच्छे से आता है, अमरीकी इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति से ज़्यादा."
बाइडन ने कहा, "क्या आपमें से कोई ये जानकर अचंभित हुआ कि डोनाल्ड ट्रंप को एक मज़बूत महिला से परेशानी हो रही है, या किसी भी मज़बूत महिला से."
बाइडन ने कोरोना महामारी, जलवायु परिवर्तन, बेरोज़गारी के मुद्दे पर और ट्रंप की 'विभाजनकारी नस्लीय राजनीति' पर जमकर हमला किया.
कमला हैरिस ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, "यह अमरीका के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण है. हमलगो जिस चीज़ की भी फ़िक्र करते हैं, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, बच्चे, किस तरह के देश में हम रहते हैं, ये सब कुछ दांव पर है."
हैरिस ने आगे कहा, "अमरीका नेतृत्व के लिए चिल्ला रहा है, लेकिन हमारे राष्ट्रपति अपनी फ़िक्र ज़्य़ादा करते हैं उन लोगों की तुलना में जिन्होंने इनको राष्टपति चुना था."
कमला हैरिस ने कहा कि ट्रंप को बराक ओबामा और जो बाइडन से इतिहास में सबसे ज़्यादा बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था मिली थी, लेकिन ट्रंप ने सब कुछ की तरह इसे भी सीधे ज़मीन पर ला दिया.
ट्रंप पर हमले जारी रखते हुए कमला हैरिस ने कहा, "जब आप किसी को चुनते हैं जो उस कुर्सी के योग्य नहीं है तो यही होता है, हमारा देश फटे हाल में है और दुनिया भर में हमारी प्रतिष्ठा भी ऐसी ही हो गई है."राष्ट्रपति ट्रंप क्या कह रहे हैं?
बाइडन और हैरिस के संबोधन से पहले ट्रंप ने बाइडन पर हमला करते हुए कहा कि वो कोरोना महामारी के कारण पूरे प्रचार के दौरान घर पर ही रहे हैं.
उन्होंने व्हाइट हाउस में जमा शिक्षकों के एक समूह से पूछा कि क्या घर में आइसोलेशन में रहकर सीखना छात्रों के लिए अच्छा रहेगा.
अब आगे क्या होगा?
अगले सप्ताह होने वाले डेमोक्रेटिक पार्टी कन्वेंशन में जो बाइडन औपचारिक तौर पर पार्टी का नामांकन स्वीकार करेंगे जो कि एक वर्चुअल इवेंट होगा कोरोना महामारी के कारण.
उसके एक हफ़्ते के बाद रिपब्लिकन पार्टी का कन्वेंशन है जहाँ ट्रंप दूसरी बार अपनी दावेदारी के लिए नामांकन स्वीकार करेंगे.
उसके बाद अगले 10 हफ़्तों तक ज़ोरदार चुनाव प्रचार होगा और फिर तीन नवंबर को वोट डाले जाएंगे.
ट्रंप और बाइडन इस बीच तीन डिबेट में हिस्सा लेंगे ओहायो के क्लिवलैंड में (29 सितंबर) और फ़्लोरिडा के मियामी में ( 15 अक्टूबर) और टेनेसी के नेशविल में 22 अक्टूबर को.
कमला हैरिस अपने प्रतिद्वंद्वी माइक पेन्स के साथ सॉल्ट लेक में सात अक्टूबर को डिबेट में हिस्सा लेंगी.(bbc)
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दिल्ली। कोरोना वैक्सीन को लेकर रूस ने बड़ा काम कर डाला है। रूस दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने कोरोना वैक्सीन बना डाली है।
रूस ने ऐलान किया कि उसने दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन तैयार कर ली है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को वैक्सीन का पहला टीका लगाया गया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान किया कि ये दुनिया की पहली सफल वैक्सीन है और रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बकायदा इसे मंजूरी दे दी है।
रूस की समाचार एजेंसी ने ट्वीट कर इस बारे में दुनियाभर को जानकारी दी है। इस वैक्सीन को मॉस्को के गामेल्या इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है। आज रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना की Gam-Covid-Vac Lyo वैक्सीन को सफल करार दिया और इसी के साथ व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया कि रूस में जल्द ही इस वैक्सीन का प्रोडक्शन शुरू किया जाएगा और बड़ी संख्या में वैक्सीन की डोज बनाई जाएगी। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को चूंकि कोरोना संक्रमण हुआ था। इसलिए उसे ये वैक्सीन दी गई है। वैक्सीन देने के बाद वह पहले से ठीक और स्वस्थ है। रूस की इस वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मंजूरी मिलने पर ये दुनियाभर के लिए किसी बड़ी राहत से कम नहीं होगी। -
वाशिंगटन: अमेरिका में व्हाइट हाउस (White House) के बाहर गोलीबारी की घटना हुई है. बताया जा रहा है कि जिस वक्त यह गोलीबारी हुई, उस वक्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रेस वार्ता कर रहे थे. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने स्वयं घटना की जानकारी पत्रकारों को दी. हालांकि, अब स्थिति नियंत्रण में बताया जा रहा है. खबरों के अनुसार सीक्रेट सर्विस के अधिकारियों ने तुरंत ही कार्रवाई की, जिससे फायरिंग करने वाले को नियंत्रण में कर लिया गया. जानकारी के अनुसार सीक्रेट सर्विस की तरफ से की गयी कार्रवाई में फायरिंग करने वाले शख्स को गोली लगी है, जिसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा , 'व्हाइट हाउस के बाहर गोलीबारी हुई थी. लेकिन अब स्थिति नियंत्रण में हैं. मैं सीक्रेट सर्विस के कर्मचारियों को उनके त्वरित और प्रभावी कार्य करने के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा. किसी शख्स को अस्पताल ले जाया गया है. लगता है कि उस शख्स को सीक्रेट सर्विस की तरफ से गोली मारी गई है.'
समाचार एजेंसी ANI के खबरों के अनुसार सीक्रेट सर्विस के लोग प्रेस वार्ता की शुरुआत होने के कुछ ही समय बात राष्ट्रपति ट्रंप को सुरक्षित स्थान पर ले कर चले गए. जिसके कुछ समय बाद ट्रंप वापस आए और उन्होंने घटना की जानकारी पत्रकारों को दी. (ndtv)