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छत्तीसगढ़ में कई तरह की भाजी को साग के रूप में खाया जाता है। इसी में से एक है अमाड़ी , आमाड़ी या फिर अम्बाड़ी। इसका स्वाद थोड़ा खट्टापन लिए होता है। पत्तियों का खट्टापन अलग - अलग क्षेत्र के साग में अलग - अलग होता है। इसकी ताज़ी पत्तियों का साग बनाया जाता है। इसके अलावा मटन करी, तुअर दाल और अचार बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पत्तियों को भाजी के रूप में खाया जाता है, तो इसके लाल-लाल फलों की स्वादिष्ट चटनी बनाई जाती है। इसकी पत्तियों की भी इमली के साथ स्वादिष्ट चटनी और अचार बनता है जिसे साल भर तक रखा जा सकता है। इसकी पत्तियों और फल के काफी फायदे हैं। इसकी खासियत है कि इसे मॉनसून में भी खाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में इसे खास तौर से खाया जाता है।
अमाड़ी हरे और लाल तने वाली एक हरी सब्जी है, जो कि अम्बाडी हिबिस्कस परिवार से संबंधित है। यह एक जंगली सब्जी है, जो लगभग भारत के हर कोने में होती है।
ज्वार की रोटी और आमाड़ी की भाजी निमाड़ का एक पारंपरिक पाक व्यंजन है। यह मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में प्राय: हर घर में बनाई जाती है। अम्बाडी इस सब्जी का मराठी नाम है। तेलुगू में इसे गोंगुरा, मराठी में अम्बाड़ी, तमिल में पुलिचा किराइ, कन्नड़ में पुंडी, हिंदी में पितवा, उडिय़ा में खाता पलंगा, असमिया में टेंगा मोरा और बंगाली में मेस्तापत नाम से जाना जाता है। इससे पता चलता है कि देश के ज्य़ादातर हिस्सों में ये साग खाया जाता है।
क्या हैं इसके फायदे
यह विटामिन ए, विटामिन बी और विटामिन सी से भरपूर होती है। इस वजह से यह आंखों और त्वचा के लिए काफी अच्छी होती हैं। पोटैशियम और मैग्नीशियम से भरपूर होने की वजह से इसका नियमित सेवन करने से यह बीपी को कंट्रोल में रखती है। अमाड़ी दो तरह की होती है- एक हरी डंथल वाली और दूसरी लाल डंथल वाली। लाल रंग की अमाड़ी में हरी गोंगुरा की तुलना में ज्यादा खटास होती है। इसलिए लाल अमाड़ीका इस्तेमाल चटनी-अचार में ज्यादा किया जाता है। लाल अमाड़ी ज्यादा पौष्टिक भी होती है। चूंकि यह धीरे-धीरे पचता है, यह आंत के पारिस्थितिकी तंत्र को भी पोषण करने में मदद करता है जो शारीरिक कार्यों के लिए आवश्यक है।
इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाने में सहायक
ऐसा माना जाता है कि अमाड़ी में ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के इम्युन सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में मदद करते हैं। अमाड़ी में विटामिन सी होता है, जो इम्युनिटी को बूस्ट करने और शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स को बढ़ाने में मददगार होता है।
फोलिक एसिड और आयरन का स्त्रोत
ऐसा माना जाता है कि अम्बाडी आयरन और फोलिक एसिड का एक अच्छा स्त्रोत है। यह शरीर में एनिमिया का खतरा कम करता है।
पेट को स्वस्थ रखे
अमाड़ी का सेवन पेट को स्वस्थ रखने में मदद करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें धीरे-धीरे पचने वाले स्टार्च होते हैं, जिससे कि यह पेट के इकोसिस्टम को बनाए रखने में मदद करते हैं। यह भाजी पेट में स्वस्थ बैक्टीरिया को बनाए रखने में मददगार होती है। यह कब्ज की समस्या भी दूर करती है।
हड्डियों के लिए फायदेमंद
अमाड़ी के पत्ते हड्डियों को मजबूत बनाए रखने का एक सुरक्षित और शानदार उपाय है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस की प्रचुर मात्रा होती है। यह हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में मददगार होते हैं। इस सब्जी का नियमित सेवन करने से ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है। -
नई दिल्ली। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्ल्यूसीडी) ने लोगों से अपील की है कि वे उच्च पोषण गुणवत्ता वाले स्वदेशी व्यंजनों के डेटाबेस के लिए अपने इलाके एवं परिवार से संबंधित पारंपरिक पकवानों को साझा करें।
महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सितंबर में मनाए जा रहे पोषण माह के मौके पर यह अपील की है। उन्होंने ट्वीट किया, उच्च पोषण गुणवत्ता वाले स्वदेशी व्यंजनों का डेटाबेस तैयार करने के क्रम में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश के लोगों से सहयोग चाहता है। अपने क्षेत्र एवं परिवार के पारंपरिक पकवानों को शेयर करके 'भारतीय पोषण कृषि कोष के लिए योगदान करिए। श्रीमती ईरानी ने कहा कि सरकार हर क्षेत्र और जिले की स्वदेशी फसलों का भंडार भारतीय पोषण कृषि कोष तैयार कर रही है। उन्होंने कहा, हमारा लक्ष्य देश के हर कोने के स्वदेशी पकवानों का डेटाबेस तैयार करने का भी है।
मंत्री ने कहा कि पोषण माह के दौरान सरकार गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए एक अभियान आरंभ करेगी और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बच्चों को उचित पोषण और देखभाल मिले। हर साल सितंबर में पोषण माह मनाया जाता है। इस महीने सरकार कुपोषण, एनीमिया और संबंधित विकारों से जुड़े मुद्दों पर जागरुकता फैलाने के लिए देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती है। -
बेंगलुरु, 8 सितम्बर (आईएएनएस)| कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु स्थित 10,100 बेड की सुविधा वाला भारत का सबसे बड़ा कोविड केयर सेंटर (सीसीसी) बैंगलोर इंटरनेशनल एग्जीबिशन सेंटर (बीआईईसी) मरीजों की कमी के कारण 15 सितंबर से बंद हो जाएगा। बेंगलुरु 'सिविक बॉडी' ने यह फैसला कोविड केयर सेंटर के टास्कफोर्स के प्रमुख राजेंद्र कुमार कटारिया द्वारा इस तरह के कदम उठाने का सुझाव देने के बाद किया। इसके पहले, उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के साथ चर्चा की थी।
बहुत जोरशोर के साथ शुरू हुई इस सुविधा में पुलिस निगरानी के तहत लॉकडाउन के दौरान कुछ समय के लिए प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन में रखा गया था।
बड़े कन्वेंशन के लिए खरीदे गए फर्नीचर और बेड, सरकार और यूनिवर्सिटी के छात्रावासों को दिए जाएंगे।
समाज कल्याण विभाग को अपने छात्रावासों के लिए 2,500 सेट फर्नीचर मिलेंगे और बागलकोट हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी के छात्रावास, अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के छात्रावास और जीकेवीके को 1,000-1,0000 फर्नीचर सेट मिलेंगे।
बीआईईसी कई वैश्विक कार्यक्रमों जैसे कि सेबिट और अन्य की मेजबानी के लिए प्रसिद्ध है।
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कोयंबटूर। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय नारियल के गुणवत्तापूर्ण पौधों की मांग को पूरा करने के लिये टिश्यू कल्चर (ऊतक संवधन) प्रौद्योगिकी के जरिए भारी संख्या में अच्छी पौध तैयार करने का अभिनव प्रयास कर रहा है। विश्वविद्यालय ने रविवार को एक बयान में कहा कि इस प्रयास को राज्य योजना आयोग की तमिलनाडु नवोन्मेष मुहिम का समर्थन प्राप्त है। इसके तहत विश्वविद्यालय के आण्विक जीवविज्ञान एवं बायोप्रौद्योगिकी पौध केंद्र ने विच्छेदित भ्रूण के ऊतकों से पौध तैयार करने में सफलता हासिल की है। बयान में कहा गया कि टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों को विश्व नारियल दिवस के अवसर पर दो सितंबर को ला कर विश्वविद्यालय के बाग में रोपा गया। उसने कहा कि पिछले एक दशक में नारियल की मांग 500 प्रतिशत बढ़ गयी है। इसने मांग और आपूर्ति की खाई को गहरा कर दिया है। नये प्रयास से मांग पूरा करने में मदद मिलेगी।
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आप आलू और शकरकंद तो खाते ही होंगे! लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों में से कौन सा अधिक फायदेमंद है? आलू व शकरकंद दोनों ही खाने में स्वादिष्ट लगते हैं और स्वादिष्ट होने के साथ साथ यह कुछ हद तक स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं। सामान्य तौर से आलुओं में केले से भी ज्यादा पोटेशियम होता है और वह फाइबर से भी भरपूर होते हैं।
आलू और शकरकंद में बीटा कैरोटीन नामक एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा अलग-अलग होती है। ये शकरकंद में थोड़ी ज्यादा होती है तभी इसका रंग लाल होता है। आम तौर पर बीटा कैरोटीन आप की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। जो लोग बीटा कैरोटीन को अपनी डाइट में शामिल करते हैं उनकी समय से पहले रोगों द्वारा मृत्यु बहुत कम होती है। कुछ लोग इसीलिए शकरकंद को बहुत स्वास्थ्यवर्धक मानते हैं और आलुओं से चूंकि चिप्स, फ्राईस आदि बनाये जाते हैं, इसलिए उन्हें हानिकारक माना जाता है। आइए जानते हैं दोनों के बीच क्या क्या अंतर होता है।
दोनों के बीच पोषण के आधार पर अंतर
-कैलोरी - एक सफेद आलू में 125 कैलोरी होती हैं। शकरकंद में 108 कैलोरी होती हैं।
--प्रोटीन- सफेद आलू में 1.9 ग्राम प्रोटीन होता है और शकरकंद में 1.3 ग्राम प्रोटीन होता है।
-वसा- दोनों सफेद और मीठे आलू में 4.2 ग्राम वसा होती है। यानी एक समान मात्रा।
- कार्बोहाइड्रेट- एक सफेद आलू में 20.4 ग्राम काब्र्स होते हैं और एक शकरकंद में 16.8 ग्राम काब्र्स होते हैं।
-फाइबर- सफेद आलू में 1.4 ग्राम फाइबर होता है और शकरकंद में 2.4 ग्राम होता है।
- शुगर- एक सफेद आलू में 5.5 ग्राम तो शकरकंद में 5.5 ग्राम शुगर होती है।
- पोटेशियम- एक सफेद आलू में 219 मिलीग्राम (प्रतिदिन जरूरत का 4.7 प्रतिशत ) तो शकरकंद में 372 मिलीग्राम पोटेशियम ( दैनिक जरूरत का 7.9 प्रतिशत) होता है।
- विटामिन सी- दोनों में 12.1 मिलीग्राम विटामिन सी होता है (दैनिक जरूरत का 13.4 प्रतिशत है)।
इन दोनों में अंतर के बाद पता चलता है कि आलू में बेशक कैलोरी ज्यादा होती हैं (केवल 17 कैलोरी) जो कि न के समान हैं। परंतु आलू में बाकी पोषण जैसे पोटैशियम व प्रोटीन आदि शकरकंद से बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध है। अत: आलू भी आप की सेहत के लिए स्वास्थ्यवर्धक है।
डायबिटीज के मरीज किसे खा सकते हैं
जैसा कि हम जानते हैं कि डायबिटीज के रोगियों को खान पान का विशेष ध्यान रखना होता है। तो यदि वे इनका सेवन कम मात्रा में कर रहे हैं तो दोनों में किसी से भी उन को कोई हानि नहीं पहुंचेगी। कुछ आलू छोटे साइज के होते हैं तो वह (आलू जो आप को मुठ्ठी जितने आकर के हों) उन्हें खा सकते हैं। परन्तु शकरकंद का साइज आलू से थोड़ा बड़ा होता है। इसलिए आप या तो उसे आधा करके खाएं या बिल्कुल ही न खाएं।
वजन घटने में कौन सा सहायक है
लोगों में यह भ्रम होता है कि जब वजन घटाना हो तब आलू नहीं खाना चाहिए। परन्तु इन आलुओं को कैसे खा रहे हैं, उस बात पर हमारा वजन बढऩा या घटना निर्भर करता है। यदि आप आलू को चिप्स के रूप में तल कर (फ्राई) खा रहे हैं तो उन में मौजूद तेल के कारण जाहिर है आप का वजन बढ़ेगा ही। परंतु यदि आप आलुओं को ऐसे ही खा रहे हैं तो आप का वजन नहीं बढ़ता। ज्यादा पोषण मौजूद होने के कारण यह आप के लिए हेल्दी भी है। -
चिकित्सक ज्यादा चीनी खाने से बचने की सलाह देते हैं। ऐसे में लोग चीनी के विकल्प तलाशते हैं। खासकर डायबिटीज के मरीजों को मीठे के अन्य विकल्पों को ढ़ूंढना पड़ता है। जैसे कि शुगर फ्री चीजें, ब्राउन शुगर और गुड़ आदि। ऐसे में चीनी के कुदरती विकल्प के रूप में आप नारियल से बने चीनी का इस्तेमाल कर सकते हैं। ये डायबिटीज और दिल की बीमारियों के खतरे को भी कम करता है।
नारियल चीनी कुछ और नहीं बल्कि नारियल को पीसा कर बनाई गई चीनी है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये अनप्रोसेसड है और चीनी का सबसे नेचुरल विकल्प है। वहीं ये डायबिटीज के मरीजों के लिए ही नहीं बल्कि शरीर के लिए भी कई मायनों में फायदेमंद है। तो आइए जानते हैं क्या है ये और इसके फायदे।
नारियल चीनी
नारियल चीनी को सूखा कर और पीस कर बनाया जाता है। वहीं कुछ पारंपरिक तरीकों की बात करें तो नारियल चीनी नारियल को उबाल कर भी बनाया जाता है। इस चीनी में फ्रुक्टोज की सामग्री कम होती है और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला होता है, जो डायबिटीज रोगी के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें नियमित सफेद चीनी की तुलना में कुछ खनिजों और एंटीऑक्सिडेंट की मात्रा ज्यादा होती है। ये एक अन्य कारक है, जो नारियल चीनी को और फायदेमंद बनाता है। ये दिखने में कंपाउड ब्राउन शुगर की तरह दिखता है, जिसे बेकिंग और खाना पकाने में एक प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
नारियल चीनी के फायदे
कम कैलोरी वाली है नारियल चीनी
नारियल चीनी कम कैलोरी वाली होती है। ये ब्राउन शुगर जैसी है, जिसमें कैलोरी की कमी होती है लेकिन नियमित रूप से अधिक पोषण देता है। इसके अलावा, नारियल का चीनी में आयरन, जिंक, पोटेशियम, पॉलीफेनोल, फ्लेवोनोइड और फाइबर की मात्रा अधित होती है। पांच ग्राम नियमित चीनी में लगभग 40 कैलोरी होती है। दूसरी ओर, नारियल चीनी की समान मात्रा में लगभग 20 से 25 कैलोरी होती है। इस तरह ये वजन कम करने में आपकी मदद कर सकता है।
पेट की आंत के लिए फायदेमंद
हम सभी जानते हैं कि आंत के लिए प्रीबायोटिक्स कितने अच्छे हैं। ये पाचन को दुरुस्त रखते हैं जिसके कारण हमारा शरीर अच्छे से काम करता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नारियल चीनी में प्रीबायोटिक्स भी हैं। नारियल में चीनी में इंसुलिन नामक एक फाइबर होता है जो एक आहार फाइबर है जो आंत के लिए बहुत अच्छा है। यह एक प्रीबायोटिक के रूप में कार्य करती है और आंत के बैक्टीरिया के लिए फायदेमंद है।
यह ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करता है
नारियल चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) कम है। जीआई एक माप है, जो हमारे ब्लड शुगर और ग्लूकोज के स्तर पर उनके प्रभाव के साथ-साथ कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों का मूल्यांकन करता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नियमित चीनी के मुकाबले नारियल चीनी का जीआई 35 है, वहीं रेगुलर चीनी का जीआई 60 से 65 के बीच है। साथ ही, इसमें मौजूद इंसुलिन रक्त में ग्लूकोज के अवशोषण को धीमा करने में मदद करता है जो मधुमेह जैसी समस्याओं को रोकता है।
नारियल चीनी के इस्तेमाल की भी अपनी सीमा है। एक दिन में 12 ग्राम नारियल चीनी का सेवन आदर्श मात्रा है, लेकिन, सबसे अच्छी बात ये है कि आप इस चीनी का इस्तेमाल मिठाई और घर की मध्यम मीठी चीजों को बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। -
अलग-अलग तरह के व्यंजन बनाने में धनिया पत्ता का खूब इस्तेमाल होता है। दरअसल धनिया एक शक्तिशाली औषधि है, जिससे शरीर को काफी फायदा पहुंचता है। धनिया पत्ता में थाइमाइन, विटामिन सी, राइबोफ्लाविन, फास्फोरस, कैल्सियम, आइरन, नाइसिन, सोडियम, कैरोटीन, ऑक्सलिक एसिड और पोटैशियम प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही इसमें कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, फैट, फाइबर और पानी भी बड़ी मात्रा में पाया जाता है।
इसका स्वाद हल्का तीखा होता है, जिससे यह भोजन में एक खास किस्म का फ्लेवर पैदा करता है। धनिया पत्ती भले ही ज्यादा महंगा न हो, पर स्वास्थ्य के लिए यह काफी फायदेमंद है। व्यंजनों को और भी लजीज बनाने के साथ-साथ यह कई बीमारियों को भी दूर करता है। ताजा धनिया पत्ता में विटामिन सी, विटामिन ए, एंटी ऑक्सीडेंट और फॉस्फोरस जैसे मिनरल पाए जाते हैं, जो मस्कुलर डिजेनरेशन, नेत्र शोथ और आंखों की उम्र वृद्धि को कम करता है। साथ ही इससे आंखों को आराम भी पहुंचता है। अपने एंटी-फंगल, एंटी-सेप्टिक, डिटॉक्सीफाइंग और डिसइंफेकटेंट गुणों के कारण ताजा धनिया पत्ता त्वचा से संबंधित कुछ समस्याओं से भी निजात दिलाता है
-धनिया पत्ता एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी माइक्रोबायल और एंटी इंफेक्शस का बेहतरीन स्नेत है। साथ ही इसमें पाए जाने वाला आयरन और विटामिन सी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। चेचक के दौरान इससे आराम पहुंचता है। साथ ही यह चेचक के दर्द को भी कम कर देता है।
-धनिया के सुगंधित तेल में सिटरोनेलोल पाया जाता है, जो कि एक बेहतरीन एंटी सेप्टिक है। इसके अलावा दूसरे तत्वों की बात करें तो इसमें एंटी माइक्रोबायल और उपचारात्मक गुण भी पाया जाता है, जो जख्म और मुंह के छाले के लिए फायदेमंद होता है। धनिया से सांसों में ताजगी आती है और मुंह के छाले भी ठीक होते हैं।
- ताजा धनिया का पत्ता ओलक्ष्क एसिड, निलओलक्ष्क एसिड, स्टेरिक एसिड, पलमिटिक एसिड और एस्कॉर्बिक एसिड का बेहतरीन स्रोत है। यह सारे तत्व रक्त के कोलेस्ट्रोल स्तर को घटाने में बेहद प्रभावी होते हैं। साथ ही यह शिरा और धमनी की अंदरूनी परत पर कोलेस्ट्रोल को जमा होने से रोकता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा काफी कम हो जाता है।
-ताजा धनिया पत्ता ऐपटाइजर के रूप में भी काम करता है। यह एंजाइम और पाचन के लिए जरूरी रस के स्राव में मददगार होता है। यानी धनिया पत्ता भोजन को पचाने में भी मदद करता है। धनिया पत्ता ऐनरेक्सीया से निजात पाने में भी सहायक होता है।
-धनिए में एंटी-इंफ्लेमेंट्री गुण होते हैं इसलिए धनिए का सेवन करने से सूजन कम होती है। त्वचा की सूजन कम करने हेतु धनिए के एसेशिंयल ऑयल का भी उपयोग करना लाभकारी होता है।
- हरा धनिया में फाइबर होता है। इसलिए इसका सेवन करने से सेहत पाचन तंत्र सही रहता है और पेट की बीमारियां नहीं होती है।
- धनिया खून में शर्करा के लेवल को कम करता है इसलिए इसका सेवन करने से इंसुलिन का स्तर सही बना रहता है। यही कारण है कि धनिए का सेवन करना डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है। धनिया खाने से शुगर जैसी समस्या से राहत मिलती है।
-धनिया पत्ते का जूस शरी के विषैले तत्वों को बाहर निकालता है। कैलोरी कम होने से इसके सेवन से वजन कंट्रोल रहता है। खून की कमी भी दूर होती है। आंखों की कमजोरी भी दूर होती है।
-धनिया के पत्ते में मौजूद पौटेशियम इंसान की दिल की बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है। -
भिलाई। देशी नुस्खों से बीमारियों का इलाज करने के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन रसोई में रखी हल्दी और काली मिर्च का उपयोग कर विज्ञान भी अब अल्जाइमर का इलाज खोजने में जुट गया है। हल्दी से प्रचूर मात्रा में मिलने वाले करक्यूमिन और कालीमिर्च से मिले पाइपरीन का यूज कर संतोष रूंगटा कॉलेज ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंस एंड रिचर्स की शोधार्थी मुक्ता अग्रवाल खास तरह के अल्जाइमर हर्बल ड्रग पर काम कर रही हैं, जिसको सोसाइटी फॉर फार्मास्यूटिकल डिजॉलेशन साइंस (एसपीडीएस) ने सराहा है।
सोसाइटी ने हाल ही में आइडिया शेयरिंग समिट बुलाई, जिसमें मुक्ता की ओर से अल्जाइमर के लिए बनाए जा रहे नैनो लिपिड कैरीयर को देश-दुनिया के 115 पार्टिसिपेंट के बीच प्रथम पुरस्कार मिला है। नेशनल लेवल के इस प्रोग्राम में प्रतिभागियों को चार जोन में बांटा गया था। हर जोन को अपना बेहतर आइडिया देना था, जिसमें मुक्ता ने ओवरऑल पहला मुकाम हासिल कर लिया। मुक्ता अपना शोध डॉ. अमित अलेक्जेंडर और डॉ. एजाजुद्दीन के सुपरवीजन में कर रही हैं।
खून में नहीं, सीधे मस्तिष्क में पहुंचेगी दवा
मुक्ता ने बताया कि करक्यूमिन और पाइपरीन का उपयोग कर ऐसा नैनो लिपिट कैरीयर बना रहे हैं, जिससे अल्जामइर की दवाई का डोज ब्लड से मस्तिष्क तक पहुंचाने के बजाए सीधे मस्तिष्क तक पहुंचा दिया जाए। यानी जो दवा खिलाई जाएगी, वह खून में घुलकर मस्तिष्क तक नहीं पहुंचेगी। बल्कि नाक के जरिए डोज मस्तिष्क सेल्स तक पहुंचा दिया जाएगा। फिलहाल, अल्जाइमर का इलाज उपलब्ध नहीं है, अभी सिर्फ इसकी रफ्तार को कम किया जा सकता है। यह ड्रग पूरी तरह से हर्बल होगा, इसलिए साइड इफेक्ट का भी खतरा नहीं रहेगा। नेजल रूम से दी जा रही डोज की मात्रा कम होगी, जिससे इलाज का खर्च भी कम आएगा।हर्बल ड्रग से बदलेगी तस्वीर
मुक्ता ने बताया कि छत्तीसगढ़ दशकों ने अपनी खास तरह की जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध है। इनसे कई बीमारियों का इलाज भी संभव हो पाता है। प्रदेश हर्बल ड्रग्स के नजरिए से काफी धनी है। इसलिए अब विज्ञान भी इस दिशा में अपना रुझान दिखाकर वैज्ञानिक ढंग से इनका उपयोग करने की तरफ बढ़ रहा है। मुक्ता की इस कामयाबी पर संस्थान के चेयरमैन संतोष रूंगटा और डायरेक्टर सोनल रूंगटा ने हर्ष व्यक्त किया।जानिए… क्या होता है अल्जाइमर
अल्जाइमर एक ऐसी बीमारी है जो मेमोरी को नष्ट कर देती है। शुरुआती तौर पर अल्जाइमर से ग्रसित व्यक्ति को बातें याद रखने में कठिनाई हो सकती है और फिर धीरे-धीरे व्यक्ति अपने जीवन में महत्वपूर्ण लोगों को भी भूल जाता है। अल्जाइमर रोग में, मस्तिष्क की कोशिकाएं कमजोर होकर नष्ट हो जाती हैं, जिससे स्मृति और मानसिक कार्यों में लगातार गिरावट आती है। वर्तमान समय में अल्जाइमर रोग के लक्षणों को दवाओं और मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी के द्वारा अस्थायी रूप से सुधारा जा सकता है। इससे अल्जाइमर रोग से ग्रस्त इंसान को कभी-कभी थोड़ी मदद मिलती है लेकिन, क्योंकि अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है। इसलिए दुनियाभर में इसकी पुखता दवाई इजाद करने के लिए शोध जारी है। -
बाजार में सेब की नई फसल ने दस्तक दे दी है। देश के मुख्य पहाड़ी राज्यों में सेब की फसल जुलाई के अंत तक पक जाती है तथा सेब का सीजन अगस्त के पहले माह में शुरू हो जाता है तथा अक्टूबर के अंत तक चलता है । हालांकि बाजार में सेब की बिक्री साल भर चलती है लेकिन अक्टूबर के बाद सेब बगीचों की बजाय कोल्ड स्टोर से आना शुरू होते हैं या फिर महंगे विदेशी ब्रांड के उपलब्ध होते हैं जो कि काफी महंगे होते हैं और आम आदमी की पकड़ से बाहर होते हंै। इसलिए अगर आप सेब का आनन्द उठाना चाहते है ंतो यह सबसे सही सीजन है जहां बगीचों से सीधे उचित दाम पर सेब आपकी रसोई में पहुंच रहे हैं।
इस सेब सीजन में विभिन्न प्रजातियों के रसीले , रंग बिरंगे , स्वास्थ्य बर्धक और खूबसूरत सेबों का हम सभी आनन्द लेते हैं , लेकिन क्या आप जानते हैं की सेब आपके स्वास्थ्य के अलावा आपकी खूबसूरती निखारने के भी काम आ सकते हैं । सेब अपने विभिन्न गुणों की बजह से जहां स्वास्थ्य के लिए संजीदा लोगों की पहली पसंद माने जाते हैं तो दूसरी हर्बल के माध्यम से सौन्दर्य निखारने बाले ब्यूटी सैलून और सौंदर्य विशेषज्ञों की भी पहली पसंद माने जाते हैं।
सेब पौष्टिक आहार में सबसे सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक फल माना जाता है। ताजे सेब फाईबर, विटामिन-सी, कॉपर,मिनरल तथा विटामिन ए जैसे पौषक तत्वों से भरपूर होते है जिसकी वजह से इनके नियमित सेवन से दिल, हड्डियों, आंखों और पुराने मानसिक रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। सेब को विश्वभर में स्वास्थ्यवर्धक तथा ताजे फलों के लिए जाना जाता है।
सौंदर्य निखारने के लिए सेब का ऐसे करें इस्तेमाल
-सेब को पीस कर इसमें एक चमच शहद , गुलाब जल और जई का ऑटा मिलाकर पेस्ट बना लें तथा इस पेस्ट को चेहरे तथा खुले भाग पर लगा कर आधे घण्टे बाद ताजे साफ पानी से धो डालें । इससे त्वचा की बाहरी मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद मिलेगी जिससे आपकी त्वचा साफ और निखरी निखरी नजर आएगी।
- सेब के जूस को चेहरे पर 20 मिनट तक लगाकर सादे पानी से धोने से त्वचा में चमक तथा निखार आता है। सेब का जूस त्वचा पर लगाने से त्वचा के प्रकृतिक पी एच संतुलन को बनाये रखने में मदद मिलती है। अगर आप जूस लगाने से परहेज़ करते हैं तो आप सेब का स्लाइस भी चेहरे पर रगड़ सकते हैं।
- सेब में आद्रता की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। सेब खाने से आप शरीर को हाईड्रेट कर सकते हैं जिससे आपकी त्वचा प्रकृतिक तौर पर निखरी नजऱ आएगी। आप ताजे सेब की स्लाइस काट कऱ अपने चेहरे पर लगा लीजिये तथा जब यह स्लाइस सुख जाएं तो आधे घण्टे बाद इन स्लाइस को हटा कर चेहरे को ताजे पानी से धो डालिये । सेब में विद्यमान विटामिन ई से आपके चेहरे की त्वचा मुलायम और हाईड्रेट रहेगी। सेब को आप अपने फेस पैक में नियमित रूप से शामिल करके इस फल के प्रकृतिक गुणों का लाभ उठा सकती हैं ।
-सेब के रस में बादाम तेल तथा दूध या दही मिलाकर स्क्रब के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। सेब के कदूकश को दही में मिलाकर चेहरे पर लगाने से दाग धब्बे दूर होते है। सेब के असब के सिरके को अनेक सौंदर्य समस्याओं का समाधन माना जाता है। इससे त्वचा तथा खोपड़ी के एसिड एलकाईन संतुलन बना रहता है तथा यह कील-मुहासों में काफी मददगार साबित होती है। सेब के असब के सिरके को बाहरी रूप में त्वचा तथा बालों की सौंदर्य समास्याओं के लिए प्रयोग किया जाता रहा है, इससे बाल धोने से अनेक फायदे होते है। शैम्पू के बाद दो चम्मच सेब के सत के सिरके को पानी के मग में डालकर सिर को धोने में बालों की समस्याएं खत्म होती है तथा बालों में चमक आती है।
-यदि आप बालों की रूसी की समस्या से जूझ रहे हंै तो बालों को शैम्पू करने से आधा घण्टा पहले दो चम्मच सेब के सत के सिरके को खोपड़ी पर अहिस्ता-आहिस्ता मलिए। इसके बाद बालों को शैम्पू से धोने से बालों की रूसी खत्म हो जाती है। अगर आप गम्भीर रूसी की समस्या का सामना कर रहे हंै तो सेब के सत के सिरके को रूई में डुबो कर पूरी खोपड़ी पर धीरे-धीरे लगाएं तथा इसे बालों में सोखनें दें। इसके आध घंटा बाद बालों को शैम्पू से धो ड़ाले इससे रुसी की समस्या खत्म हो जाएगी।
- सेब के सत के सिरके को पानी में मिलाकर कॉटन की मदद से चेहरे पर लगाने से चेहरे का एसिड-एलकालीन संतुलन बना रहता है तथा त्वचा की सौन्दर्य समस्याओं से निजात मिलती है। सेब के सत के सिरके से त्वचा की खारिश/खुजली में भी मदद मिलती है। अपने नहाने के पानी में सेब के सत के सिरके को डालकर पानी के नहाने में त्वचा की खाज-खुजली में राहत मिलती है। सेब के सत के सिरके से शरीर की गांठ तथा मस्सों से भी मुक्ति मिलती है। शरीर के मस्सों पर सेब के सत का सिरके के रोजाना लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं। सेब के लगातार सेवन से आप लम्बे , चमकीले बाल पा सकते हैं । सेब में परोसायना ईडन बी 2 मौजूद होते हैं जो कि बालों के स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण माने जाते हंै ।
-ताजे सेब फाईबर, विटामिन-सी, कॉपर तथा विटामिन ए जैसे पौषक तत्वों से भरपूर होते हंै तथा सेब में विद्यमान रैटीनायइस शरीर में निरोगी त्वचा के विकास तथा त्वचा केंसर के खतरे को कम करती है। सेब मात्रा एक स्वादिष्ट फल ही नहीं हैं बल्कि सुन्दरता के गुणों की खान भी है। सेब में विद्यमान मल्टी विटामिन पोषक तथा प्राकृतिक फ्रूट एसिड से त्वचा की रंगत में निखार आता है तथा टैनिंग से प्रतिरक्षा मिलती है। सेब के निरन्तर प्रयोग से शरीर में चिकनाई तथा रोगाणुओं से छुटकारा मिलता है जिससे शरीर में ताजगी स्वास्थ्यवर्धक तथा त्वचा में लालिमा आती है। सेब के निरन्तर प्रयोग से त्वचा पर काले दाग तथा कील-मुंहासे के उपचार में मदद मिलती है। सेब में मिनरल तथा विटामिन के अलावा पैकटिन तथा टैनिन विद्यमान होते हंै जिससे त्वचा की रंगत में गोरापन आता है। अत्यन्त संवेदनशील त्वचा पर पैक्टिन का अत्यन्त आरामदेह प्रभाव देखने में मिलता है। सेब को बेहतरीन स्किन टोनर फेशियल टोनर माना जाता है तथा सेब त्वचा को शान्त करता है, सिर की त्वचा सापफ करता है तथा चेहरे से झुर्रियों को मिटाता है जिससे धमनियों में रक्त संचार बढ़ता है तथा त्वचा में खिंचाव आता है। सेब में एंटी ऑक्सीडेंट गुण विद्यमान होते हैं जिससे त्वचा में यौवनता बरकरार रहती है तथा बुढ़ापे को रोकती है। नवीनतम अनुसंधान में यह पाया गया है कि हरे सेबों में पॉली पफीनाइलन तत्व विद्यमान होते हंै जिससे बालों के झडऩे को रोकने में अहम मदद मिलती है। सेब में फ्रूट एसिड विद्यमान होते हंै जो कि त्वचा को साफ करने में अहम भूमिका अदा करते हंै तथा त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाते है ंजिससे त्वचा में चमक आती है तथा काले दाग धब्बों से मुक्ति मिलती है।
-फ्रूंट एसिड से त्वचा में तैलीयपन कम होता है जिससे कील-मुंहासों को रोकने में मदद मिलती है। -
अर्जुन एक औषधीय पौधा है। इसका पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। अर्जुन की छाल में अनेक प्रकार के रासायनिक तत्व पाये जाते हैं। इसकी छाल में कैल्शियम कार्बोनेट लगभग 34 प्रतिशत व सोडियम, मैग्नीशियम व एल्युमिनियम प्रमुख क्षार मिलते हैं। कैल्शियम-सोडियम की प्रचुरता के कारण ही यह हृदय की मांसपेशियों के लिए अधिक लाभकारी होता है। अर्जुन में हरड़ और बहेड़ा की तरह औषधीय गुण होते हैं। इस वृक्ष की अंदरुनी छाल में सबसे अधिक औषधीय गुण होते हैं। यह हृदय के लिए शक्तिवर्धक मानी जाती है। ऋग्वेद में इस वृक्ष का उल्लेख किया गया है।
इसके औषधीय गुण
- अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
- अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।
-अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।
-हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।
- गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
-गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से हृदय रोग में आराम मिलता है।
-अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकाएं। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।
- अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है।
- प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
-आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।
- अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।
- अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
-अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है।
- अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।
- इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।
- अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।
- अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
- अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है। ठीक हो जाता है। अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।
(नोट- कोई भी उपाय करने से पहले योग्य चिकित्सक की सलाह अवश्य लें) -
ये बात हम अच्छी तरह से जानते हैं कि शरीर को सही तरीके से हाइड्रेट रखने के लिए पानी पीना सबसे महत्वपूर्ण होता है। साफ और शुद्ध पानी पोषक तत्वों युक्त होने के कारण यह शरीर में जरूरी खनिज पदार्थों की आपूर्ति करता है। पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से मोटापा की समस्या नहीं होती है और न ही पेट संबंधी कोई रोग होते हैं। लेकिन एक सवाल है जो हर किसी के मन में घूमता रहता है वह यह है कि, पानी को कैसे पिएं जिससे शरीर हाइड्रेटेड रहे और जरूरी फायदा पहुंचाए।
बहुत लोग पानी पीने को लेकर तमाम तरह की गलतियां करते हैं, वहीं कुछ लोगों में पानी पीने को लेकर कई प्रकार के भ्रम हैं। कुछ लोगों का मानना है कि पानी गट-गट कर पीना चाहिए तो वहीं कुछ लोग घूंट-घूंट कर पीना फायदेमंद मानते हैं। अगर इस तरह के सवाल आपके मन में भी उठते हैं तो आइए जानते हैं कि पानी पीने को सही तरीका क्या है? और हमें प्रतिदिन कितने मात्रा में पानी पीना चाहिए।
गट गट कर के या घूंट-घूंट कर के पानी पीना चाहिए?
आयुर्वेद के अनुसार, पानी कभी भी हमें गट-गट करके या एक हीं सांस में नहीं पीना चाहिए क्योंकि पानी पीने के दौरान मुंह की लार पानी के साथ मिलकर हमारे शरीर के अंदर जाती है। लार ही हमारे पाचन तंत्र को मजबूत करने का कार्य करती है। लार में कई ऐसे हेल्दी बैक्टीरिया होते हैं तो पेट के लिए फायदेमंद होते हैं। इसीलिए पानी हमेशा धीरे-धीरे या घूंट-घूंट कर के पीना सही माना गया है। इससे शरीर के सभी अंगों को पर्याप्त मात्रा पानी और पोषण मिलता रहता है। इससे पानी पीने का पूरा फायदा मिलता है।
खड़े होकर पानी पीना हो सकता है नुकसानदेह
आयुर्वेद व शोधर्तोओं के अनुसार पानी कभी भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए। अगर आप खड़े होकर पानी पीते हैं, तो पानी सीधे व तेजी से पेट के निचले हिस्से में चला जाता है। जिससे शरीर को पानी के पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। इस तरह पानी पीने से घुटनों में दर्द की समस्या हो सकती है। पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। हाइड्रेटेड रहने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
कैसा पानी है शरीर के लिए फायदेमंद
आयुर्वेद के अनुसार पानी हमेशा शरीर के तापमान से ठंडा नहीं होना चाहिए। जितना हमारे शरीर का तापमान होता है या गर्म रहता है उतना ही आपका पानी भी गर्म होना चाहिए। यानी आप नियमित रूप से गुनगुना पानी पी सकते हैं। दरअसल, गर्मियों में लोग फ्रीज का ठंडा पानी पीना पसंद करते है। लेकिन ये शरीर के लिए काफी नुकसानदेह होता है। बहुत ज्यादा ठंडा पानी पीना भी शरीर के लिए दिक्कतें पैदा करती हैं। ठंडा पानी पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। कब्ज की समस्या हो सकती है। इसलिए बहुत ज्यादा ठंडा या बर्फ वाले पानी पीने के बजाए नॉर्मल पानी या गुनगुना पानी ही पीना चाहिए। -
दुनिया भर में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स, स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। इसके विषय में हाल ही में किए एक नए शोध से पता चला है कि यह केवल बढ़ते एंटीबायोटिक दवाओं के अनावश्यक उपयोग के कारण ही नहीं हो रहा है, इसके लिए बढ़ता प्रदूषण भी जिम्मेवार है। यह शोध यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जोकि जर्नल माइक्रोबियल बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।
वैज्ञानिकों ने प्रदूषण और एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के सम्बन्ध को समझने के लिए जीनोमिक एनालेसिस की मदद ली है। जिससे पता चला है कि भारी धातु के प्रदूषण और एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के बीच एक मजबूत सम्बन्ध है। वैज्ञानिकों के अनुसार जिस मिटटी में भारी धातुओं की अधिकता थी उसमें बड़ी मात्रा में वो बैक्टीरिया मौजूद थे जिनके जीन में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स के गुण मौजूद थे।
शोधकर्ताओं के अनुसार इस मिटटी में एसिडोबैक्टीरियोसाय, ब्रैडिरिज़ोबियम और स्ट्रेप्टोमी जैसे बैक्टीरिया मौजूद थे। इन बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीन होते हैं जिन्हें एआरजी के रूप में जाना जाता है। जिसकी वजह से इनपर वैनकोमाइसिन, बेसिट्रेसिन और पोलीमैक्सिन जैसे एंटीबायोटिक का असर नहीं होता है। इन तीनों दवाओं का उपयोग मनुष्यों में संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है।
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जेसी सी थॉमस के अनुसार इन बैक्टीरिया में जो एआरजी जीन होते हैं, वो इन्हें मल्टीड्रग रेसिस्टेन्स बनाने के साथ-साथ इन भारी धातुओं से भी बचाते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार जब ये एआरजी मिट्टी में मौजूद थे, तब उन सूक्ष्मजीवों में आर्सेनिक, तांबा, कैडमियम और जस्ता सहित कई धातुओं के लिए, धातु प्रतिरोधी जीन (एमआरजी) भी मौजूद थे।
थॉमस के अनुसार वातावरण में जैसे-जैसे एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है यह सूक्ष्मजीव उतना ज्यादा इन दवावों के प्रति अपनी प्रतिरोधी क्षमता को विकसित कर रहे हैं। लेकिन इन बैक्टीरिया में मौजूद जीन केवल एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति ही रेसिस्टेंट नहीं होते इसके साथ ही यह कई अन्य यौगिकों के प्रति भी प्रतिरोध विकसित करते हैं जो सेल्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जिसमें यह हैवी मेटल्स भी शामिल हैं।
पब्लिक हेल्थ कॉलेज में प्रोफेसर ट्रेविस ग्लेन के अनुसार चूंकि एंटीबायोटिक दवाओं के विपरीत, भारी धातुएं पर्यावरण में आसानी से ख़त्म नहीं होती इसलिए वो लम्बे समय तक नुकसान पहुंचा सकती हैं। थॉमस के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग ही केवल एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स का कारण नहीं है। कृषि और जीवाश्म ईंधन, खनन जैसी गतिविधियों के कारण भी यह बढ़ रहा है।
क्या होता है एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स
एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स तब उत्पन्न होता है, जब रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों (जैसे बैक्टीरिया, कवक, वायरस, और परजीवी) में रोगाणुरोधी दवाओं के संपर्क में आने के बाद से बदलाव आ जाता हैं और वो इन दवाओं के प्रति प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। नतीजतन, यह दवाएं इन पर अप्रभावी हो जाती हैं। इसके कारण संक्रमण शरीर में बना रहता है। इन्हें कभी-कभी "सुपरबग्स" भी कहा जाता है।दुनिया में कितना बड़ा है एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट का खतरा
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दुनिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट एक बड़ा खतरा है। अनुमान है कि यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो 2050 तक इसके कारण हर साल करीब 1 करोड़ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2030 तक इसके कारण 2.4 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे। साथ ही इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।शोधकर्ताओं के अनुसार इन बैक्टीरिया के बारे में जानना जरुरी है कि समय के साथ यह कैसे विकसित हो रहे हैं। यह हमारे भोजन, पानी के जरिए हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए सही समय पर इनसे निपटना जरुरी है। (downtoearth)
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लंदन, 17 अगस्त। धुआंरहित तंबाकू के सेवन से दुनियाभर में होने वाली मौतों की संख्या सात साल में तीन गुना बढ़कर लगभग तीन लाख पचास हजार हो गई है. एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई. अध्ययन के अनुसार विश्वभर में धुआंरहित तंबाकू के प्रयोग से होने वाली बीमारियों के 70 प्रतिशत रोगी भारत में हैं. अध्ययन में ब्रिटेन के यॉर्क विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं समेत अन्य वैज्ञानिक शामिल हैं. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि यह शोध ऐसे समय हुआ है जब आमतौर पर तंबाकू चबाने और थूकने वालों की आदत से कोरोना वायरस फैलने का खतरा है.
बीएमसी मेडिसिन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में सरकारी और जन स्वास्थ्य संस्थाओं से कहा गया है कि वह धुआंरहित तंबाकू के उत्पादन और विक्रय पर लगाम लगाएं. वैज्ञानिकों के अनुसार सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर प्रतिबंध लगने से धुआंरहित तंबाकू के प्रयोग में कमी आएगी और कोविड-19 के प्रसार को कम किया जा सकता है.
यॉर्क विश्वविद्यालय के कामरान सिद्दीकी ने कहा, 'यह अध्ययन ऐसे समय में आया है जब कोविड-19 हमारे जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित कर रहा है. तंबाकू चबाने से लार अधिक बनती है और इससे थूकना लाजमी हो जाता है जिससे वायरस के फैलने का खतरा है.' अध्ययन में कहा गया है कि धुआंरहित तंबाकू के सेवन से मुंह, श्वासनली और भोजन की नली में कैंसर होने से अकेले 2017 में नब्बे हजार से अधिक लोगों की मौत हुई. इसके अतिरिक्त दिल की बीमारी से 2,58,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की 70 फीसदी की भागीदारी
सिद्दीकी ने कहा कि विश्वभर में धुआंरहित तंबाकू से होने वाली बीमारियों में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की 70 फीसदी की भागीदारी है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा पाकिस्तान की सात प्रतिशत, और बांग्लादेश की पांच प्रतिशत हिस्सेदारी है.(NEWS18)
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नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के संचालक मंडल ने कर्मचारियों और सीएपीएफ कर्मियों, निर्माण श्रमिकों और मैला साफ करने वालों जैसे अन्य लाभार्थियों के लिए केंद्रीय मंत्रालयों की स्वास्थ्य योजनाओं को आयुष्मान भारत के साथ जोडऩे के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।
एक सरकारी बयान में यह जानकारी दी गयी है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लागू करने वाले प्राधिकरण के संचालक मंडल ने इस योजना के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की अध्यक्षता में एक बैठक की। इसमें आयुष्मान भारत -पीएमजेएवाई पर कोविड-19 के प्रभावी, स्वास्थ्य आपूर्ति में इस महामारी से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के तौर तरीके, विभिन्न राज्यों में निजी स्वास्थ्य आपूर्तिकर्ताओं के प्रदर्शन पर चर्चा हुई। बयान में कहा गया है, संचालक मंडल कर्मियों (सरकारी और अनुबंधित कर्मियों समेत) तथा निर्माण श्रमिकों, मैला साफ करने वाले, सड़क हादसे के शिकार, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के कर्मियों जैसे अन्य लाभार्थी समूहों के लिए केंद्रीय मंत्रालयों की वर्तमान स्वास्थ्य योजनाओं का आयुष्मान भारत के साथ एकीकरण करने के प्रस्ताव को मंजूरी देता है। -
छोले हम सबके घरों में बनते हैं और हम सभी उसका सेवन करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है ये आपकी सेहत के लिए कितना अच्छा होता है। छोले फाइबर का एक समृद्ध स्रोत हैं, इसमें वसा, काब्र्स और कई दूसरे विटामिन मौजूद होते हैं। इसके साथ ही आपको बता दें कि ये प्रोटीन में भी काफी उच्च होते हैं, इसलिए ये शाकाहारियों के लिए एक महान डाइट के रूप में अच्छा विकल्प है। ऐसे ही इसके कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं जो आपको हैरान कर सकते हैं। आइए हम आपको इस लेख के जरिए चने से मिलने वाले कुछ स्वास्थ्य लाभों के बारे में बताते हैं, जिससे आप भी रोजाना सेवन कर खुद को स्वस्थ रख सकते हैं।
वजन कम करना
छोलों में मौजूद प्रोटीन और फाइबर पाचन को धीमा कर सकते हैं और आपके पेट को भरने की भावना दे सकते हैं। वे भूख और भोजन का सेवन कम करने में भी मदद करते हैं जिससे आप कम दिनों में ही अपने वजन को कम कर सकते हैं। अगर आप भी अपने बढ़ते वजन से परेशान हैं तो आप रोजाना छोलों का सेवन कर सकते हैं ये आपके वजन को कम करने में काफी मदद करेगा।
हड्डियों को करता है मजबूत
हड्डियों की कमजोरी हर किसी की बहुत बड़ी समस्या बन जाती है, ऐसे में छोले आपकी हड्डियों को मजबूत कर सकते हैं। छोले कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम, जिंक और विटामिन के और ए का अच्छा स्रोत माने जाते हैं। ये आपके शरीर की हड्डियों के विकास, हड्डियों के खनिज और कोलेजन के उत्पादन के लिए काफी महत्वपूर्ण होते हैं। अगर आपकी हड्डियों में दर्द या कमजोरी होती है तो आप रोजाना छोलों का सेवन जरूर करें।
त्वचा को बनाए बेहतर
छोले में मौजूद विटामिन सी, ई और के आपकी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। छोलों का सेवन करने से ये त्वचा के घावों को ठीक करने, झुर्रियों को खत्म करने, शुष्क त्वचा को रोकने और सूरज की रोशनी से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं।
ब्लड शुगर लेवल को करता है कम
छोले में फाइबर और प्रोटीन बहुत ज्यादा मात्रा में होता है, जिसके कारण ये हमारे शरीर में ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कम करने का काम करता है। इसके साथ ही खाना खाने के तुरंत बाद बढऩे वाले रक्त शर्करा के स्तर को भी रोकने में मदद करते हैं, जो मधुमेह के प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण है। छोलों का सेवन कर आप टाइप-2 मधुमेह के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
पाचन क्रिया होती है मजबूत
फाइबरयुक्त आहार आपके पेट के स्वास्थ्य को मजबूत कर उसे सक्रिय रखने में मददगार होता है, ऐसे ही छोलों में काफी मात्रा में फाइबर मौजूद होता है जो पाचन को सुधारने में काफी मदद करते हैं। इसके साथ ही इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम के खतरे को कम करने के लिए आप छोले को अपनी डाइट में जरूर शामिल करें।
बालों को बढ़ाने में भी है फायदेमंद
झड़ते बाल और बालों को स्वस्थ रखने के लिए आप छोलों को अपनी डेली डाइट में जोड़ सकते हैं। ये आपके बालों के बढऩे की प्रक्रिया को तेज कर उन्हें झडऩे से रोकते हैं। छोले में मौजूद प्रोटीन, विटामिन ए और बी, और दूसरे पोषक तत्व बालों के झडऩे को रोकने और बालों के विकास को बढ़ावा देने फायदेमंद होते हैं।
अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि आप अपनी डाइट को हेल्दी बनाएं, इसके लिए आप रोजाना छोले का सेवन कर सकते हैं जो आपकी सेहत को कई तरह से फायदा पहुंचाता है। -
नर्ई दिल्ली। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने रविवार को राज्यों / केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ ई संजीवनी और ई संजीवनी ओपीडी प्लेटफार्मों के बारे में एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की।
स्वास्थ्य मंत्रालय के टेली मेडिसिन सेवा प्लेटफॉर्मों पर 1.5 लाख टेली-परामर्श पूरे हो गए हैं। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे भी इस अवसर पर उपस्थित थे। तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री डॉ.सी. विजय भास्कर इसमेंवर्चुअल रूप से शामिल हुए।
नवम्बर 2019 के बाद बहुत कम समय में ही ई संजीवनी और ई संजीवनी ओपीडी द्वारा टेली-परामर्श 23 राज्यों (जिसमें 75 प्रतिशतआबादीरहती है) द्वारा लागू किया गया और अन्य राज्य इसको शुरू करने की प्रक्रिया में हैं। एक ऐतिहासिक उपलब्धि में राष्ट्रीय टेली-मेडिसिन सेवा ने डेढ़ लाख से अधिक टेली-परामर्शों को पूरा किया औरअपने घरों में रहते हुए ही मरीजों को डॉक्टरों के साथ परामर्श करने में सक्षम बनाया।
इस उपलब्धि की सराहना व्यक्त करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में हमने आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों पर ब्रॉडबैंड और मोबाइल फोन के माध्यम से डिजिटल इंडिया के विजन को लागू करने का काम शुरू कर दिया है। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के सहयोग से और नि:स्वार्थ तथा प्रतिभाशाली चिकित्सकों और विशेषज्ञों के एक पूल के साथ हमई संजीवनी जैसे टेली-मेडिसिन प्लेटफॉर्म के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में समर्थ हुए हैं। इससे कोविड महामारी के दौरान हमारे स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में व्यापक रूप से बढ़ोतरी हुई है।
ई संजीवनी प्लेटफॉर्म ने दो प्रकार की टेली-मेडिसिन सेवाओं को सक्षम बनाया है जैसे डॉक्टर-से-डॉक्टर (ई संजीवनी) और रोगी-से-डॉक्टर (ई संजीवनीओपीडी) टेली-परामर्श। पहली सेवा आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्र (एबी-एचडब्ल्यूसी) कार्यक्रम के तहत लागू की गई है। दिसम्बर 2022 तक हब एंड स्पोक मॉडल में सभी 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्रों में टेली-परामर्श लागू करने की योजना बनाई गई है। राज्यों ने चिकित्सा कॉलेजों और जिला अस्पतालों में स्पोक्स जैसेएसएचसी और पीएचसी को टेली-परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए समर्पित केन्द्रों की पहचान की है और उन्हें स्?थापित किया है। आज सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों और डॉक्टरों को मिलाकर 12 हजार उपयोगकर्ताओं को इस राष्ट्रीय ई-प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। वर्तमान मेंटेलीमेडिसिन 10 राज्यों में 3 हजार से अधिक एचडब्ल्यूसी के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है।
कोविड-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य मंत्रालय ने दूसरी टेली-परामर्श सेवा शुरू की है ताकि ई संजीवनी ओपीडी के माध्यम से रोगी से डॉक्टर टेली-मेडिसिन को सक्षम बनाया जा सके। -
नई दिल्ली, 7 अगस्त (आईएएनएस)| भारतीय प्राद्योगिकी संस्थान-दिल्ली और रुड़की के पूर्व छात्रों द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि लॉकडाउन के कारण दिल्ली में साइकिल उपयोग में लाने वालों की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई लेकिन इंफ्रास्टक्च र की कमी के कारण काम और फिटनेस के लिए साइकिल उपयोग में लाने वालों के लिए कई तरह की दुश्वारियां बनी हुई हैं। सर्वे 'लाइवलीहुड साइकिलिस्ट इन दिल्ली' नाम के इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में 11 लाख साइकिल सवार हैं लेकिन यहां मात्र 100 किमी साइकिल ट्रैक है। ऐसे में अलग-अलग उद्देश्यों के लिए साइकिल का उपयोग करने वालों को रोजाना अनचाहे खतरों का भय सताता रहता है।
इस सर्वे में लगभग 1400 लोगों के शामिल किया गया, जिनमें से 97 प्रतिशत ने रोजाना के आवागमन के माध्यम के रूप में साइकिल का उपयोग करने की इच्छा जतायी लेकिन साथ ही वे कई चीजों को लेकर डरे हुए भी दिखे। इसमें सबसे प्रमुख उनकी सुरक्षा है।
इस 'परसेप्शन स्टडी' में यह खुलासा हुआ कि सुरक्षित और सुविधाजनक साइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्च र का अभाव, डेडिकेटेड साइक्लिंग लाइंस का न होना, दूषित वायु और अनियंत्रित ट्रैफिक के चलते दिल्ली के अधिक लोग साइकिल की सवारी नहीं कर पा रहे हैं।
इसी कारण कई सामाजिक दिल्ली सरकार के सामने इन मुद्दों को रखने के लिए आगे आई हैं। इन संस्थाओं की मांग है कि दिल्ली सरकार जनता के लिए सुरक्षित साइक्लिंग ढांचा और स्थायी रूप से डेडिकेटेड साइकिल लेन्स स्थानपित करे।
इसके लिए हैशटैगदिल्लीधड़कनेदो कैंपेन शुरू किया गया है। यह दिल्ली में स्वच्छ वायु समाधानों और बेहतर एवं टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन साधन विशेषकर साइक्लिंग को लेकर काम कर रहे नागरिक समाज संगठनों का सामूहिक प्रयास है। यह मुहिम दिल्ली को भारत का पहला साइक्लिंग-फ्रेंड्ली शहर बनाने में सहायता करने के लिए चलाया गया है।
इसके तहत दिल्ली सरकार के पास एक याचिका दिया जाना है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में नॉन-मोटराइज्ड ट्रांसपोर्ट पॉलिसी लाई जाये, जिसमें दो पहलुओं को प्राथमिकता मिले। पहला- साइकिल के लिए लेन बनाने को प्राथमिकता दिया जाना और दूसरा-परिवहन के कोविड-प्रूफ साधन के रूप में हर किसी को साइकिल के उपयोग की अनुमति देना।
दिल्ली में लम्बे समय से पर्यावरण, शिक्षा, सामाजिक उत्थान और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के लिए काम कर रही अग्रणी गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) 'स्वच्छा' के कार्यकारी निदेशक और प्रमुख विमलेंदु झा ने कहा, ''दिल्ली में साइकिलों के माध्यम से आजीविका चलाने वाले 91 प्रतिशत लोग हर रोज साइकिल चलाकर अलग-अलग जगहों पर जाते हैं, लेकिन क्या हमारी सड़कें सुरक्षित तरीके से पैदल और साइकिल से चलने के लिए डिजाइन की गयी हैं? इसका उत्तर है, नहीं। दिल्ली के लगभग 11 लाख साइकिल चालकों के लिए मात्र 100 किमी साइकिल ट्रैक है। यही नहीं, दिल्ली कई वर्षों से वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है। दिल्ली के वायु प्रदूषण की समस्या को परंपरागत साधनों जैसे कि साइकिल इंफ्रास्ट्रक्च र से हल नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसके लिए शहर के कोने-कोने तक कनेक्टिविटी भी बेहद जरूरी है। इसलिए, पैदल चलने वालों की सुरक्षा और दिल्लीं में पैदल व साइकिल से चलने के उनके अधिकार की रक्षा हेतु मजबूत नीतियों की सख्त आवश्यमकता है।''
दिल्ली सरकार के आंकड़े बताते हैं कि शहर में लगभग 11 लाख नियमित साइकिल उपयोगकर्ता हैं। यह आंकड़ा कोविड-19 महामारी से पहले से है और रुझानों से संकेत मिलता है कि संख्या केवल बढ़ेगी। आईआईटी- दिल्ली और रुड़की के पूर्व छात्रों द्वारा किए गए अध्ययन से यह साफ है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में साइकिल चलानों की संख्या चार फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गई है।
दिल्ली में राहगिरी डे की सह-संस्थापक सारिका पांडा मानती हैं कि दिल्ली में अभी भी गतिशीलता के संकट से निपटना जरूरी है और शहर को पैदल चलने और साइकिल चलाने की योजनाओं के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
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नई दिल्ली: जिम (Gym) और योगा केंद्रों (Yoga centers) के लिए सरकार ने दिशा निर्देश जारी किए किए हैं. इन स्थानों पर 6 फ़ीट की दूरी, फेस कवर और मास्क का उपयोग करना जरूरी होगा. पांच अगस्त से जिम और योगा केंद्र खुलने वाले हैं. उसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डिटेल में गाइडलाइन जारी की है. इस गाइडलाइन को जिम, योगा केंद्र संचालकों और जिम/ योगा करने वालों को पालन करना होगा. कंटेंनमेंट जोन में जिम और योगा केंद्र नहीं खुलेंगे.
गाइडलाइन के मुताबिक 65 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति, पहले से बीमार व्यक्ति, गर्भवती महिलाएं और 10 साल से कम उम्र के बच्चों को बंद स्पेस में जिम न करने के लिए कहा गया है. जिम और योगा केंद्रों में एक दूसरे से कम से कम 6 फ़ीट की दूरी बनाकर रखना जरूरी होगा. फेक कवर और मास्क जिम और योगा केंद्रों के परिसर में जरूरी होगा. लेकिन एक्सरसाइज के समय चेहरे और आंख को बचाने के लिए वाइजर (visor) का इस्तेमाल किया जा सकेगा. एक्सरसाइज के वक्त हैंड सेनेटाइजर या साबुन का इस्तेमाल हाथ साफ करने के लिए करना होगा. साबुन का 40 से 60 सेकंड तक जबकि सेनेटाइजर का 20 सेकंड तक इस्तेमाल करना होगा.
जिम और योग केंद्रों में थूकने पर पूरी तरह पाबंदी होगी. इन स्थानों पर जाने वाले सभी लोगों के मोबाइल फोन में आरोग्य सेतु ऐप जरूरी होगा.गाइडलाइन में कहा गया है कि जिम और योग सेंटरों में एयर कंडीशनर से टेम्परेचर 24 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रखा जाना चाहिए. लॉकरों का इस्तेमाल सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए किया जा सकता है. कांटैक्ट से बचने के लिए पेमेंट के लिए कार्ड का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है.
इन स्थानों पर कवर्ड डस्टबिन होना जरूरी है. स्पा, स्टीम बाथ और स्वीमिंग पूल की जिन जगहों पर सुविधा है वो बंद रहेंगे. जिम और योगा केंद्रों के परिसर में इस्तेमाल होने वाले इक्विपमेंट से लेकर दरवाजे, खिड़की समेत दूसरी चीजें समय- समय पर डिसइन्फेक्टेड करना जरूरी होगा.एक्ससाइज के वक्त कॉमन मैट का इस्तेमाल करने के बजाय लोग खुद अपना मैट लेकर जाएं. लाफ्टर योगा एक्सरसाइज की इजाजत नहीं है.
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कोरोना वायरस कहर के बीच वैक्सीन को लेकर एक बार फिर से बड़ी उम्मीद जगी है। कोरोना वायरस को लेकर मॉडर्ना की वैक्सीन बंदरों पर हुए ट्रायल में पूरी तरह से कारगर साबित हुई है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिका की बायोटेक फर्म मॉडर्ना की कोविड-19 वैक्सीन ने बंदरों पर हुए ट्रायल में एक मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित किया है। साथ ही यह कोविड-19 वैक्सीन बंदरों की नाक और फेफड़ों में कोरोना वायरस को अपनी कॉपी बनाने से रोकने में भी सफल रही।
स्टडी के मुताबिक, वैक्सीन ने वायरस को बंदर के नाक में कॉपी करने से रोका और यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि इससे संक्रमण का दूसरों तक फैलना रुक जाता है। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि जब ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन का बंदरों पर ट्रायल हुआ था, तब ठीक इसी तरह के परिणाम सामने नहीं आए थे। हालांकि, उस वैक्सीन ने वायरस को जानवरों के फेफड़ों में प्रवेश करने और उन्हें बहुत बीमार होने से रोक दिया था।
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, मॉडर्ना एनिमल स्टडी में 8 बंदरों के तीन समहूों को या तो वैक्सीन दी गई या फिर प्लेसीबो। जिसकी डोज थी, 10 माइक्रोग्राम और 100 माइक्रोग्राम। जिन बंदरों को वैक्सीनेट किया गया, उन्होंने वायरस को मारने वाले हाइल लेवल के एंटीबॉडी का निर्माण किया जो कोशिकाओं पर आक्रमण के उपयोग के लिए सार्स-कोव-2 वायरस के एक हिस्से पर हमला करते हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों डोज वाले बंदरों में ऐंटीबॉडीज का लेवल कोविड-19 से रिकवर हो चुके इंसानों में मौजूद ऐंटीबॉडी से भी अधिक था।
इस स्टडी के ऑथर्स ने बताया कि टीके ने टी-कोशिकाओं (टी-सेल) के रूप में जानी जाने वाली एक अलग प्रतिरक्षा कोशिका (इम्यून सेल) के उत्पादन को भी प्रेरित किया है, जिससे ओवरऑल रिस्पॉन्स को बढ़ावा देने में मदद हो सकती है। हालांकि, यहां चिंता की बात यह है कि अंडर ट्रायल यह वैक्सीन वास्तव में रोग को दबाने के बजाय उल्टा असर भी कर सकती है।
अगर स्टडी की बात करें तो वैज्ञानिकों ने बंदरों को वैक्सीन का दूसरा इंजेक्शन देने के चार हफ्ते बाद उन्हें कोविड-19 वायरस के संपर्क में लाया गया। बंदरों में नाक और ट्यूब के माध्यम से सीधे फेफड़ों तक कोरोना का वायरस पहुंचाया गया। कम और अधिक डोज वाले आठ-आठ बंदरों के ग्रुप में सात-सात के फेफड़ों में दो दिन बाद कोई रेप्लिकेटिंग वायरस नहीं था। हालांकि, जिन बंदरों को प्लेसीबो वाला डोज दिया गया था, उन सबमें वायरस मौजूद था। (cgimpact.org)
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GAVI vaccine alliance के चीफ एग्जिक्युटिव सेट बर्कले जो COVAX फसिलटी को देख रहे हैं, उनका कहना है कि वर्तमान में वैक्सीन को लेकर कोई टार्गेट प्राइस नहीं रखा गया है। यह संभव है कि वैक्सीन को अलग-अलग देशों को अलग-अलग कीमत पर मिले। गरीब देशों को यह सस्ती कीमत पर मिले और अमीर देशों को इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़े।
COVAX फसिलटी क्या है?
कोवैक्स फसिलटी कोरोना वैक्सीन को लेकर एक ग्लोबल कोलैबोरेशन है। इसका मकसद वैक्सीन डिवेलपमेंट, प्रॉडक्शन और हर किसी तक इसकी पहुंच बनाने की है। इस कोलैबोरेशन का नेतृत्व Gavi की तरफ से किया जा रहा है। Gavi एपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (CEPI) और WHO का गठजोर है। WHO की वेबसाइट पर 15 जुलाई को उपलब्ध जानकारी के मुताबिक 75 देशों ने COVAX फसिलटी ज्वाइन करने के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट जमा किया है।
कोवैक्स फसिलटी का मकसद क्या है?
एकबार जब कोरोना वैक्सीन तैयार हो जाएगी, कोवैक्स फसिलटी अपने सदस्य देशों तक इसकी पहुंच का काम करेगा। इसने 2021 के अंत तक 200 करोड़ डोज अपने सदस्य देशों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।
कीमत को लेकर अभी आखिरी फैसला नहीं
सेट बर्कले ने यूरोपियन यूनियन की उस खबर का खंडन किया जिसमें कहा गया कि कोवैक्स फसिलटी अमीर देशों के लिए कोरोना वैक्सीन की कीमत मैक्सिमम 40 डॉलर तय किया है। यूरोपियन यूनियन की तरफ से कहा गया था कि वह कोवैक्स फसिलटी के अलावा सस्ती कीमत पर वैक्सीन मिलने की संभावना तलाशेगा।
वैक्सीन की दिशा में फिलहाल आंशिक सफलता
बर्कले ने यह भी कहा कि कोरोना वैक्सीन की दिशा में अभी जो सफलता मिली है वह आंशिक है। ऐसे में हम यह नहीं जानते हैं कि इसकी कीमत कितनी हो सकती है। कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है कि किस वैक्सीन को आशातीत सफलता मिली है। ऐसे में हम अभी संभावनाओं के आधार पर कीमत को लेकर नतीजों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। असल में कीमत का पता तभी लग पाएगा जब कोई वैक्सीन पूरी तरह तैयार हो जाएगी और कारगर होगी।(navbharat)
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भोपाल. कहावत है कि अगर हौसला बुलंद है तो पूरी दुनिया जीती जा सकती है. इसे सच कर दिखाया है 26 वर्षीय असद ने जिसके मजबूत हौसले ने कोरोना वायरस जैसी गंभीर बीमारी को भी मात दे दी है. किसी कोरोना मरीज के दो बार वेंटिलेटर पर जाने के बाद ठीक हो कर डिस्चार्ज होने का देश में यह पहला मामला है. असद अस्पताल में 28 दिन तक कोरोना संक्रमण से जंग लड़ता रहा. इस दौरान डॉक्टरों ने उसे दो बार वेंटिलेटर पर भी रखा. लेकिन वेंटिलेटर पर रखे जाने के बाद भी असद ने कोरोना वायरस को मात दे दी और स्वस्थ होकर वापस घर लौट आया.
डॉ. शर्मा के मुताबिक किसी मरीज को दो बार वेंटिलेटर सपोर्ट देने जैसे मामले तो होते हैं लेकिन कोरेाना के मामले में संभवत: (शायद) यह पहला मामला है. उन्होंने बताया कि असद की हालत को देखते हुए 28 दिन तक डॉ. मनिराम, डॉ. एन श्रीवास्तव, डॉ. प्रणय धुर्वे और डॉ. रुचि टंडन की टीम 24 घंटे निगरानी करते थे. हर एक घंटे के ऑक्सीजन सैचुरेशन को काउंट कर ट्रीटमेंट लाइन तय होती थी.
कोरोना पेशेंट की हालत बिगड़ने पर उसे दोबारा वेटिंलेटर पर रखना पड़ा
जानकारी के मुताबिक टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद असद को बीते 23 जून को हमीदिया अस्पताल में लाया गया. कोविड वार्ड इंजार्च डॉ. पराग शर्मा ने बताया कि असद को सर्दी-जुकाम के साथ थर्ड ग्रेड कोरोना संक्रमण था. साथ ही ऑक्सीजन सैचुरेशन भी 50 फीसदी तक रह गया था. दो दिन बाद हालत बिगड़ने पर 25 जून को असद को वेंटिलेटर पर रखा गया. लगभग पांच दिन के ट्रीटमेंट के बाद 30 जून को असद को वेंटिलेटर से हटाकर एनआईवी सपोर्ट यानी नॉन इनवेजिव वेंटिलेटर पर रखा गया.
कुछ दिन तबियत सामान्य रहने के बाद पांच जुलाई को असद को दोबारा सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो सात जुलाई को उसे फिर से वेंटिलेटर सपोर्ट दिया गया. अगले दिन यानी आठ जुलाई को असद स्टेबल हुआ तो उसे वेंटिलेटर से हटाकर एनआईवी सपोर्ट दिया गया. बाद में तबियत में सुधार होने पर असद को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया
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समाजवादी समागम, वर्कर्स यूनिटी, जनता वीकली, पैगाम, बहुजन संवाद द्वारा कोरोना के बाद का भारत विषय पर आयोजित 4 दिवसीय वेवनार के अंतिम दिन योगेंद्र यादव, हरभजन सिंह सिद्धू और नीरज जैन ने अपने विचार साझा किये।
स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं जय किसान आंदोलन के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया में जब कोई आपदा होती है, तब उस समाज की जितनी भी कमियां होती हैं, वह सब बाहर आ जाती हैं। संकट, समाज की व्यवस्था को नए रूप में पेश करता है। जिनके पास ताकत है वह संकट से उबर सकता है और प्रबल होता हैं। गरीब सुविधा के अभाव में कमजोर होता जाता है। हर संकट एक अवसर होता है यूरोप के तमाम देशों में वेल्थ टैक्स, इन्हेरेटन्स टैक्स पर चर्चा शुरू हो गई है पांच बड़ी बातें जिन्हें 19वीं सदी से मान लिया गया था जिसे 21वीं सदी में भी दोहराया जा रहा है। उन्होंने 7 बातें बनाई बताई जिन पर विचार किया जाना चाहिए।
सेल्फ रूल यानी स्वराज आज लोकतंत्र लोगों पर हावी हो गया है, भावनात्मक लगाव- आज समुदाय जाति धर्म राष्ट्र द्वारा इंसान को इंसान से अलग किया जा रहा है, खुशहाली- पूंजीवाद से आर्थिक विकास तो होता है लेकिन इसकी कई कमियां भी है। समाजवादियों ने पहले ही पूंजीवाद का विरोध कर उसकी कमियां गिनाई थी। कुछ लोगों के लिए खुशहाली तो कुछ लोगों के लिए बदहाली लाती है, विज्ञान -जो जितना ज्ञान देता है वह अहंकार वश दूसरे के ज्ञान को दबाता है। अपने आप से जुड़े- मन की शांति के लिए कोविड-19 के बहाने लोकतंत्र का बचा खुचा खाका को नेस्तनाबूद करने काम किया जा रहा है। लोकतंत्र की हत्या धीरे-धीरे की जा रही है 19वीं सदी का नंगा नाच पूंजीवाद लाओ और धन कमाओ को बढ़ावा दिया जा रहा है।
सरकारों ने कोरोना महामारी के सामने घुटने टेक दिए हैं। उन्होंने जनता को अपने हाल पर छोड़ दिया है । अब हमें ही कोरोना संकट से बचने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए इसके लिए हमें लोगों में कोरोना की हकीकत पेश करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि वे राष्ट्र निर्माण हेतु टीम बनाकर अन्याय के खिलाफ लोगों के बीच जाकर कार्य करेंगे। यह अभूतपूर्व संकट है सरकार मुकाबला करने में असफल है स्वयं को लोगों की बात सुनकर सच उनतक पहुंचाना है उन्हें विकल्प बताना है। हमारी सरकार से मांग है कि सभी को फ्री इलाज मिले क्योंकि यह हमारा अधिकार है। सब को 3 माह तक हर माह प्रति व्यक्ति को मुफ्त राशन मिले जिसमे 10 किलो अनाज, आधा किलो तेल, डेढ़ किलो दाल, आधा किलो शक्कर शामिल हो, हर व्यक्ति को लॉकडाउन के दौरान हुए नुकसान से बचने के लिए 10 हजार रुपये एकमुश्त रकम दी जाए, मनरेगा में 200 दिन का रोजगार दिया जाए। जिन वर्कर्स की छटनी कर निकाला जा रहा है उनके नुकसान की भरपाई की जाए। सैलरी पर सब्सिडी दी जाए। लोन पर ब्याज की अदायगी से मुक्ति। इन कामों के लिए सरकार कोई कमी ना होने दें।
92 लाख की सदस्यता वाली जे पी के द्वारा स्थापित हिन्द मज़दूर सभा के राष्ट्रीय महामंत्री हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि हमारे देश में 54 करोड़ श्रमिक में से 7% श्रमिक संगठित है 93% असंगठित है। सरकार ने कंपनियों को खुली लूट की अनुमति दे दी है। वर्करों को व्हीआरएस और सीआरएस के नाम से बाहर निकाला जा रहा है। पहले श्रमिकों ने लंबा संघर्ष कर पूंजीवादी गठजोड़ को बाहर किया था ।
अब वर्तमान सरकार ने कोरोना काल में 44 श्रम कानून बनाकर 4 कोड लागू किया है। जिसमें आठ घंटे के काम को 12 घंटे कर श्रमिकों का शोषण किया जाएगा तथा श्रमिकों के हित की कोई जिम्मेदारी नियोक्ता यानी रोजगार देने वाले अर्थात कारखाने के मालिक की नहीं होगी।
उन्होंने कहा केंद्र श्रमिक संगठनों ने 10 सूत्रीय मांगपत्र को लेकर 3 जुलाई को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिरोध किया है। कोयला उद्योग को निजीकरण से बचाने के लिए तीन दिन की हड़ताल की, डिफेंस के श्रमिक भी आंदोलनरत हैं। हम रेलवे के निजीकरण को भी गंभीर चुनौती देंगे ।
आल इण्डिया रेलवे मेंस फेडरेशन की हड़ताल ने इंदिरा गांधी की तानाशाही को चुनौती दी थी, अब हम फिर चुनौती देने के लिए कमर कस चुके हैं।
देश के प्रमुख अर्थशास्त्री एवं लोकायत के प्रमुख नीरज कुमार जैन ने कहा कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था वैसे ही खराब है, भारत को बीमारी की राजधानी कहा जाता है। परन्तु सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है वह केवल कारपोरेट के मुनाफे को पुनः पटरी पर लाने के लिए काम कर रही है। गरीब भले ही मरे लेकिन कारखाने चलने चाहिए। सरकार ने अब यह भी कहना बंद कर दिया है कि हमारे देश में कोरोना के मरीज कम है। कोरोना के मामले में हम नंबर तीन पर पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री ने भी कोरोना पर बोलना अब बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार कोरोना पर नियंत्रण कर सकती थी। यूरोप और अमेरिका की यदि बात की जाए तो वहां भी लोग मर रहे हैं और हमारे यहां भी। लेकिन हमारे यहां मृत्यु दर कुछ कम है क्या इतने से संतोष किया जा सकता है?
जिन देशों ने इस बीमारी में सफलतापूर्वक संघर्ष किया है और नियंत्रित किया है उन देशों की चर्चा ही नहीं की जा रही है । जैसे क्यूबा, वेनेजुएला ने बहुत संघर्ष से शानदार सफलता प्राप्त की है आज दुनिया में 5 लाख से ज्यादा लोग मरे हैं। यदि मृत्यु दर दुनिया में क्यूबा, वेनेजुएला की दर पर होती तो आज मुश्किल से 30 से 40 हजार लोग ही मरे होते। पूंजीवादी व्यवस्था कंपनियों के नफे की चिंता करती है लोगों के स्वास्थ्य पर खर्चा कम से कम करना चाहती हैं। इसके चलते भारत बीमारी की रोकथाम के लिए कदम उठाने की बजाय लॉकडाउन में विलंब किया गया। अचानक 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया। उन देशों ने जिन्होंने सफलता प्राप्त की उन्होंने जैसे ही मौत की खबरें आना शुरू हुई, डब्ल्यूएचओ ने सचेत किया उन देशों ने बाहरी लोगों के आने पर प्रतिबंध लगा दिया और टेस्टिंग शुरू कर दी। हमारे देश में बिना तैयारी के लॉकडाउन लगा दिया। भारत में डायबिटीज टीबी से लाखों लोग इलाज के अभाव में मर जाते हैं। सीएचसी का सरकारी आंकड़ा बताता है कि जितने होना चाहिए उनमें से 20% ही डॉक्टर है भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कम है। हम स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का 2% ही खर्च करते हैं यूरोप के देश 5 से 8% खर्च करते हैं विकासशील देशों में अपना जीडीपी का 32% खर्च करते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति इलाज खर्च 1100 है यूरोप के देश में प्रति व्यक्ति 3 लाख प्रतिवर्ष खर्च करते हैं। भारत सरकार नहीं के बराबर खर्च करती है। वहीं प्राइवेट अस्पतालों को सब्सिडी देकर बढ़ावा दिया जा रहा है । कुल इलाज पर लोग अपनी जेब से लगभग 65% खर्च करते हैं । विदेशों में सरकारी प्राइवेट अस्पतालों पर कम, सरकारी अस्पतालों पर ज्यादा खर्च करती है। डेढ़ प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च को बढ़ाकर दोगुना करना हो तो सरकार को लगभग साढे तीन लाख करोड़ रुपए खर्च करना होगा । भारत सरकार अमीरों को जो टैक्स में छूट देती है वह साढ़े छह लाख करोड़ है और जो लोन माफी दी जाती है वह भी सालाना दो से तीन लाख करोड़ है इसके अलावा अमीरों को कई छूट दी जाती है। यदि सरकार इन अमीरों पर 2% टैक्स लगाए तो भारत सरकार लगभग साढ़े नौ लाख करोड़ आमदनी कर सकती है। यदि अमीरों पर वारसान टैक्स लगाए तो सरकार के पास पांच से छह लाख करोड़ जमा हो सकते हैं इस तरह सरकार 20 से 25 लाख करोड रुपए की आमदनी बढ़ा सकती है इससे स्वास्थ्य सुविधाओं पर डबल या तिगुना खर्च किया जा सकता है।
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इस समय इम्यूनिटी बढ़ाने की बातें की जा रही हैं जिससे वायरस, फ्लू और आम सर्दी-खांसी से बचा जा सके. इम्यूनिटी के लिए आयुर्वेदिक (Ayurvedic Remedies For Immunity) पर लोग ज्यादा विश्वास करते हैं क्योंकि इम्यूनिटी बढ़ाने हर्ब्स (Herbs For Increase Immunity) कारगर हो सकती हैं. हमारे आसपास ऐसी कई औषधियां हैं जिनका आयुर्वेद में काफी इस्तेमाल किया जाता है.
ये न सिर्फ हमारी इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकती हैं बल्कि हमें एंटॉ ऑक्सीडेंट्स और एंटी इंफ्लेमेट्री गुए भी प्रदान कर सकती हैं. इन्हीं में से एक ही तुलसी. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए तुलसी (Basil To Increase Immunity) को काफी फायदेमंद माना जाता है. तुलसी में कई तरह के गुण होते हैं. जो हमारे स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाती है. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए तुलसी का सेवन करने के तरीके कई हैं. साथ ही दूध (Milk) को भी इम्यूनिटी के एक प्रमुख पेय माना जाता है. दूध में कुछ चीजें मिलाकर इसका सेवन करने की भी सलाह दी जा रही है. तुलसी के फायदे (Benefits Of Basil) कई हैं. साथ दूध भी आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. लेकिन क्या दूध और तुलसी (Milk And Tulsi) का सेवन एक साथ किया जा सकता है. क्या इन दोनों का संयोजन हानिकारक हो सकता है?
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शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने अनानास के बारे में न सुना हो यह स्वादिष्ट और रसदार फल दक्षिण अमेरिका से आया है, लेकिन इसका नाम यूरोपियनों द्वारा मिला। क्रिस्टोफर कोलंबस ने इसे “अनानास” नाम दिया क्योंकि यह एक पाइनकोन जैसा दिखता है। इन तथ्यों की तरइसमें उपस्थित उच्च विटामिन सी स्वस्थ हड्डियों का समर्थन करने और ऑस्टियोपोरोसिस के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, अनानास कई पोषक तत्व शरीर को प्रदान करता है।
यहां हम बात करेगें अनानास के उन वास्तविक लाभ के बारें में जो विज्ञान आधारित सच्चाई पर आधारित है।ह, ही अनानास के कई ऐसे लाभ अज्ञात लाभ हैं जो आपने नहीं सुने होगें।
अनानास के पोषक तत्व
एक कप ताजे अनानास क्यूब्स खाने से, आप 82 कैलोरी और लगभग 0 वसा और कोलेस्ट्रॉल प्राप्त कर सकते हैं। तो, यह आपके दिल के लिए अच्छा है और वजन घटाने में भी सहायक है। इसके अलावा, इसमें
- 2 मिलीग्राम सोडियम
- प्रोटीन का 0.89 ग्राम
- 21.65 कार्ब्स
- विटामिन सी
- विटामिन ए
- कैल्शियम
- आयरन
- थाईमिन
- पैंटोथैनिक एसिड
- मैग्नीशियम
- बीटा कैरोटीन
- फोलेट
- विटामिन बी 6
- राइबोफ्लेविन
- पोटैशियम
ब्रोमेलैन के अलावा, अनानास के अन्य लाभ बीटा-कैरोटीन और विटामिन सी जैसे एंटीऑक्सिडेंट से आते हैं। ये पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रजनन क्षमता में सुधार करते हैं।
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भारत में, इसकी खेती मुख्य रूप से हिमाचल और राजस्थान में की जाती है। बथुया के अलावा इसके कई अलग-अलग नाम जैसे पिगवेड, फैट-हेन, मेलडे, मेमने का क्वार्टर और गोसेफूट भी हैं।हालांकि यह पालक के पत्तों से मिलता जुलता है लेकिन इसके पत्तों के अतुलनीय और अदभुद लाभ हैं।
बथुआ के फायदे
यह विटामिन ए, बी, सी और अमीनो एसिड का अच्छा स्रोत है। से सभी पोषक तत्व मिलकर इसे पेट की समस्याओं का इलाज करने, पाचन को बढ़ावा देने और अन्य लाभों को प्राप्त करने की क्षमता प्रदान करते हैं।बथुआ के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभों में से एक यह है कि यह यकृत को स्वस्थ रखता है। इनके अलावा, आप निम्नलिखित कारणों से बथुआ खा सकते हैं:
- पत्ते कैलोरी में कम हैं इसका मतलब है कि यह आपके वजन घटाने के आहार में बाधा नहीं है। इस विंटरग्रीन सब्जी के 100 ग्राम से आपको केवल 43 कैलोरी मिलती है।
- यह पाचन समस्याओं जैसे कब्ज और अन्य पेट के मुद्दों को ठीक कर सकता है क्योंकि यह फाइबर में उच्च है।
- बथुआ में अमीनो एसिड प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है इसलिए यह कोशिका की मरम्मत और निर्माण में मदद करता है।
- बथुआ में कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भरे होते हैं। तो, आपके शरीर को वह सब कुछ मिल जाता है, जो इन नन्हे पत्तों से चाहिए।
- बालों के लिए अच्छा है क्योंकि इसमें आयरन, फॉस्फोरस और विटामिन ए होता है जो आपके बालों के लिए अच्छा होता है। साथ ही जूँ से छुटकारा पाने के लिए आप अपने बालों को बथुआ के पानी से धो सकते हैं।
- बथुआ के पत्तों को कच्चा खाने से सांसों की बदबू और दांतों की अन्य समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।
सर्दियों के दौरान अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए, अपने आहार में बथुआ शामिल करना चाहिए। वैसे, इसके आनंद लेने के कुछ सरल तरीके हैं।
साग सर्दियों में बथुआ का आनंद लेने का एक लोकप्रिय तरीका इसका साग है। प्रक्रिया वही है जो सरसो के साग की है।
इन व्यंजनों में से कोई भी बनाते समय हमेशा ताजे बथुआ के पत्तों का उपयोग करें। आप पूरे सर्दियों में इसका आनंद ले सकते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में सेवन न करें। इसलिए, एक मध्यम मात्रा में खाएं और इसके लाभों को प्राप्त करें।