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-जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त प्रेमोपहार
विश्व में पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम के पद से विभूषित जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज से आज कौन परिचित नहीं है!! समस्त विश्व जहाँ उनके द्वारा प्रकटित अलौकिक वैदिक दर्शन को पाकर धन्य हो रहा है, वहीं उनके द्वारा प्रारम्भ किये गये सामाजिक सेवाओं के द्वारा भी लाभान्वित हो रहा है। भक्तियोग रस के अवतार तथा निखिल दर्शनों के समन्वयाचार्य श्री कृपालु जी महाराज का व्यक्तित्व विश्व के लिए आश्चर्यजनक ही रहा है, उन्होंने ज्ञान, कर्म तथा भक्ति - इन सभी क्षेत्रों में सर्वोच्चता प्राप्त की थी। उन्होंने अपने भीतर छिपे ज्ञान तथा प्रेम के अथाह समुद्र से समस्त चराचर को परिप्लुत कर दिया। सनातन वैदिक परम्परा के अद्वितीय स्तम्भ स्वरुप उन्होंने कुछ प्रेमोपहार इस विश्व को दिये हैं। यथा प्रेम मंदिर, कीर्ति मंदिर तथा भक्ति मंदिर। आज हम इसी कड़ी में श्रीवृन्दावन धाम स्थित प्रेम मंदिर के विषय में जानेंगे जो कि स्वयं मूर्तिमान प्रेम का ही मानो साकार स्वरुप है। यह मंदिर युगों-युगों तक भक्ति तथा प्रेम की ध्रुव-ध्वजा रहेगा::::::::
श्री प्रेम मंदिर, श्रीधाम वृन्दावन
(जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त प्रेमोपहार)
0 शिलान्यास समारोह - 14 जनवरी 2001
0 कलश स्थापना - 15 सितंबर 2010
0 उद्घाटन समारोह - 15-17 फरवरी 2012
प्रेम मंदिर के उदघाटन समारोह पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इसके नाम के सम्बन्ध में यह कहा था -
...अधिकांश मंदिरों का नाम भगवान् के विभिन्न स्वरूपों पर आधारित होता है, जैसे - श्री राधाकृष्ण मंदिर, श्री राम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, हनुमान मंदिर इत्यादि। किन्तु मैंने इसका नाम प्रेम मंदिर इसलिए रखा है कि यद्यपि भगवान सबसे बड़े हैं लेकिन प्रेम ऐसा तत्व है जिसके आधीन भगवान् हो जाते हैं, इसलिए मुख्य द्वार पर मैंने यह दोहा लिखवा दिया -प्रेमाधीन ब्रम्ह श्याम वेद ने बताया, याते याय नाम प्रेम मंदिर धराया'...
प्रेम मंदिर से संबंधित कुछ बातें -
(1) प्रेम मंदिर का सम्पूर्ण परिसर 54 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है जो मनमोहक उद्यानों, फव्वारों, श्री राधाकृष्ण की मनोहर झांकियों; यथा श्री गोवर्धनधारण लीला, कालिया नाग दमन लीला, झूलन लीला आदि से सुसज्जित है।
(2) नागरादि शैली में निर्मित दो मंजिला प्रेम मंदिर गोलोक और साकेत लोक, वृन्दावन और अयोध्या का सुनहरा संगम है अर्थात् मंदिर भूतल पर जहाँ वृन्दावन बिहारी श्री यादवेन्द्र सरकार श्रीकृष्ण अपनी ह्लादिनी शक्ति प्रेमतत्व की सारभूत स्वरूपा नित्य निकुंजेश्वरी वृषभानुनंदिनी श्री राधिका एवं परमप्रिय अष्ट-महासखियों के साथ नित्य निवास करते हैं। ये अष्ट महासखियां प्रत्येक जीव को प्रेरित करती हैं कि वो अपने नित्य दासत्व को पाने के लिए दासानुदास बनकर प्रेम याचना करे। दूसरी ओर प्रथम तल पर साकेत बिहारी श्री राघवेंद्र सरकार जगज्जननी जनकनंदिनी माँ सीता सहित भक्तों को दर्शन प्रदान करती हैं।
(3) मंदिर के भूतल पर निर्मित भव्य मंडप के दक्षिण दिशा में निर्मित एक छोटे आकर्षक मंदिर में भक्तों के विशेष आग्रह पर, अत्यधिक विनय करने पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने स्वरुप को प्रतिष्ठापित करने की अनुमति प्रदान की। उत्तर दिशा में निर्मित मंदिर में श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रवक्ता श्री शुकदेव परमहंस विराजमान हैं। दूसरी ओर दक्षिण दिशा में श्री कृपालु जी महाराज को भागवत के विस्तृत अर्थों को लिखते हुए चलमूर्ति के रुप में दर्शाया गया है। श्री कृपालु जी महाराज का सम्पूर्ण साहित्य श्रीमद्भागवत महापुराण की सरलातिसरल व्याख्या ही है।
(4) प्रथम तल पर मंडप के उत्तर दिशा में चारों पूर्ववर्ती जगद्गुरुओं एवं ब्रजरस रसिकों यथा श्री वल्लभाचार्य जी, श्री जीवगोस्वामी जी, स्वामी श्री हरिदास जी एवं श्री हितहरिवंश जी विद्यमान हैं। दक्षिण दिशा में प्रेमावतार श्री गौरांग महाप्रभु जी की लीलाओं का सुन्दर चित्रण किया गया है।
(5) सम्पूर्ण मंदिर की भव्यता, सुंदरता, पच्चीकारी, नक्काशी, स्तंभों पर गढ़ी मूर्तियाँ, दीवारों पर उभारी गई विभिन्न झाँकियों व लीलाओं के दृश्य हैं। स्थान स्थान पर दीवारों पर मूल्यवान पत्थर से उकारे गए श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित प्रेम रस मदिरा के विभिन्न पद, रसिया व राधा गोविंद गीत आदि ग्रंथों के दोहे, श्यामा श्याम की रागानुगा भक्ति का मूर्तिमान स्वरुप दर्शाते हैं।
(6) सम्पूर्ण वैदिक दर्शन का ज्ञान कराने वाली जगद्गुरु कृपालु महाराज द्वारा विरचित कृपालु त्रयोदशी एवं ब्रजरस त्रयोदशी को मूल्यवान जड़ाऊ पत्थरों की पच्चीकारी द्वारा गर्भगृह द्वार के दोनों ओर की दीवारों पर उकेरा गया है।
(7) अन्य निर्माण विशेषताओं की बात करें तो प्रेम मंदिर के निर्माण में 30 हजार टन आयातीत इटालियन करारा मार्बल का प्रयोग किया गया है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके निर्माण में ठोस इटालियन मार्बल का प्रयोग किया गया है।
(8) 4 फुट ऊंचे, 190 फुट लम्बे व 128 फुट चौड़े विशाल सिंहासन पर विराजमान है - शुभ्र वर्ण प्रेम मंदिर। इसका 20 फुट ऊंचा भूमितल, 18 फुट ऊँचा प्रथम तल, 115 फुट ऊंचा शिखर है। ध्वजा सहित प्रेम मंदिर की ऊंचाई 125 फुट है। गर्भगृह की दीवारें 8 फुट चौड़ी हैं जिसके कारण यह विशाल मंदिर शिखर, स्वर्ण कलश व ध्वजा का भार सरलता से वहन कर रही है।
(9) प्रेम मंदिर के 54 नक्काशीदार स्तम्भ मानों भुजा उठाकर भक्ति, भक्त व भगवान् की निरंतर जय जयकार करते रहते हैं। इन कला मंडित स्तंभों पर किंकरी और मंजरी सखियों के विग्रह बनाये गए हैं।
(10) मंदिर परिसर पर दूर से ही प्रथम दृष्टि पड़ते ही ध्वजा सहित 125 फुट ऊंचे शिखर के दर्शन होते हैं उसके नीचे 53 फुट ऊंचा गुम्बदाकार मंडप सामरन, उसके दोनों ओर दो बड़े व चार छोटे गुम्बदाकार सामरन हैं तथा भूमि तल व प्रथम तल के दो सामरन मिलकर एक नक्काशीदार उज्ज्वल दिव्य पर्वत श्रृंखला का आभास देते हैं। मंदिर के निर्माण में कहीं भी लोहे या इस्पात का प्रयोग नहीं किया गया है।
मंदिर निर्माण के कारीगर यद्यपि मंदिर निर्माण की शिल्पकला, वास्तुकला, कारीगरी, नक्काशी के मर्मज्ञ रहे हैं किन्तु प्रेम मंदिर निर्माण के समय यही अनुभव हुआ कि श्री राधा रानी की कृपा शक्ति ही स्वयं कार्य करा रही है। कितनी समस्याएं आईं किन्तु जब श्री कृपालु जी महाराज के पास कोई भी समस्या जाती वह प्रत्युत्तर में केवल मुस्कुरा देते। लेकिन उस मुस्कान से ही उन्हें ऐसी शक्ति मिल जाती कि तुरंत समस्याओं का समाधान तो हो ही जाता, साथ ही ऐसा लगता वे स्वयं हमारे मस्तिष्क में बैठकर ड्राइंग बनवा रहे हैं और युक्ति सुझा रहे हैं।
दिव्य प्रेम तत्व को प्रकाशित करने के लिए जिन्होंने 'प्रेम मंदिर' नाम से भव्यातिभव्य दिव्योपहार श्री वृन्दावन धाम की समर्पित किया है ऐसे श्री प्रिया प्रियतम के प्रेम रस रसिक गुरुवर कृपावतार जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु को कोटि कोटि प्रणाम !!
(लेख संदर्भ/स्त्रोत -साधन-साध्य पत्रिका, प्रेम-मंदिर विशेषांक
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।) -
नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने अमीर और गरीब के बीच खाई में कमी लाने की अपील की। साथ ही, उन्होंने कहा कि यह महसूस करना जरूरी है कि दुनिया का ध्यान रखना असल में खुद का ध्यान रखना है।
उन्होंने दिल्ली में बुधवार को लारिएट्स एंड लिडर्स फार चिल्ड्रेन के एक कार्यक्रम में कहा, भविष्य हमारे हाथों में हैं और बच्चे दुनिया के भविष्य हैं , वे ही दुनिया का ध्यान रखेंगे। दुनिया का ध्यान रखना असल में खुद का ध्यान रखना है। 'लारिएट्स एंड लिडर्स फार चिल्ड्रेन बाल अधिकारों की रक्षा के लिए गठित संस्था है जिसका नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी करते हैं । दलाई लामा ने कहा, बच्चे हमारे भविष्य हैं। हमें मानवता और गरीबों के बारे में सोचना होगा जिन्हें मदद की जरूरत है और हमें इस बारे में प्रयास करने होंगे कि गरीब और अमीर के बीच खाई कैसे कम होगी। दलाई के अलावा कार्यक्रम में स्वीडीश प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन, यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीएत्ता फोर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस एडहैनम घेब्रेयसस सहित अन्य भी शामिल हुए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने बच्चों को दुनिया भर में एवं समाज के सभी तबकों में और अधिक जोखिमग्रस्त स्थिति में डाल दिया है। उन्होंने कहा, बच्चे शारीरिक, मानसिक और यौन शोषण के बढ़ते खतरे का सामना कर रहे हैं।
हेनरीएत्ता ने कोविड-19 को बच्चों के अधिकारों के लिये एक संकट करार दिया। हीं, डब्ल्यूएचओ महानिदेशक टेड्रोस ने कहा कि बच्चे सहित किशोर महामारी से सवार्धिक प्रभावित होने वाले समूह में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कई देशों में (बच्चों का) टीकाकरण कार्यक्रम आंशिक या पूर्ण रूप से स्थगित हो गया है। इसे बाल मृत्यु दर का खतरा बढ़ा गया । साथ ही, विश्व भर में बच्चों की खाद्य सुरक्षा और पोषण भी जोखिम में पड़ गया है। -
-कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन
कृपा शब्द बहुत महत्वपूर्ण है और एक ऐसी चीज है ये कृपा जिसकी आस प्रत्येक को अपने जीवन में होती है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि 'कृपाओं' में महत्वपूर्ण कृपायें कौन सी हैं? आइये जानें विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन के द्वारा, तथा पढ़कर कुछ क्षण रुककर यह विचार भी करें कि हम कृपा के साथ न्याय करते हैं या नहीं, अगर नहीं तो निश्चय ही कृपा का मोल समझकर जीवन परिवर्तित करने की आवश्यकता है :::::::
(यहाँ से पढ़ें...)
तीन प्रकार की भगवत्कृपा होती है। एक कृपा, एक विशेष कृपा, एक अद्भुत कृपा, ये तीन कृपायें होती हैं भगवान की। किसी का पुण्य थोड़ा है, उसके ऊपर एक कृपा हुई। किसी का पुण्य विशेष अधिक है तो दो कृपा हो गई और किसी का बहुत पुण्य है तो तीन कृपा होती है। ये तीनों दुर्लभ हैं। बहुत दुर्लभ, हज़ारो में एक ऐसा नहीं, लाखों में एक ऐसा नहीं, करोड़ो में एक ऐसा नहीं, अरबों में एक ऐसा नहीं। अनंत में एक होता है। ये ऐसी कृपा है।
पहली कृपा मानवदेह प्राप्त होना। ये मानवदेह सब देहों में श्रेष्ठ है। देवताओं के देह से भी श्रेष्ठ है।
दूसरी कृपा महापुरुष का मिलना; ये विशेष कृपा। जिसको भगवत्प्राप्ति हो गई हो, जो भगवत्प्राप्ति का सही मार्ग जानता हो, हमको बता सके ऐसा वास्तविक महापुरुष अगर किसी को मिल गया तो ये नंबर दो की कृपा हुई।
तीसरी कृपा, तीसरी चीज जो सबसे इम्पोर्टेन्ट है, जिसको अद्भुत कृपा कहते हैं, भूख कहते हैं, जिज्ञासा, वो पाने की व्याकुलता। जो हमारे ऊपर नहीं हुई या बहुत कम हुई।
बार- बार सोचो, कितनी बड़ी भगवत्कृपा मेरे ऊपर है, अगर मृत्यु के एक सेकण्ड पहले भी आपको यह बोध हो गया कि मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ, कितनी भगवत्कृपायें मेरे ऊपर हुई हैं!! देव- दुर्लभ मानव देह अनन्त जीवों में किसी-किसी भाग्यशाली को ही मिलता है, फिर मेरे जैसा सौभाग्यशाली कौन होगा, जिसको ऐसा गुरु मिला जो केवल कृपा ही करता है। जब उनका अनुग्रह प्राप्त है तो निराशा की क्या बात है? धिक्कार है मेरे जीवन को।
अपनी बुद्धि को उनके श्री चरणों में डाल दो तो निराशा हट जायेगी। और अगर हट गई और मृत्यु हो गई, तो अगले जन्म में आपको आशावाद के अनुसार ही फल मिलेगा। अगर कोई गलती हमसे हुई भी हैं तो भविष्य में अब गलती न करें, ये प्रतिज्ञापूर्वक चिन्तन के द्वारा ठीक कर लें। महापुरुष का पाया हुआ प्यार-दुलार, दर्शन, स्पर्शादि जो मिला है उसको, अगर कोई जीव उसका मूल्य आँके, तो फिर कुछ करना ही नहीं है उसको। वो चिंतन ही पर्याप्त है, अनंत भगवत्प्राप्ति की कौन कहे। और अगर मूल्यांकन न करेगा तो कितनी कृपा भगवान कर दें, कितने ही सामान ला के आपकी गोदी में रख दें और आप उसका मूल्य ही नहीं समझना चाहते तो ये आपकी कमजोरी है।
अगर कोई महापुरुष का महत्व नहीं समझता तो उसको महापुरुष के मिलने से कोई लाभ नहीं मिलेगा। उसको उतने परसेन्ट ही लाभ मिलेगा जितने परसेन्ट वह उसको महापुरुष मानेगा। तो जितना अधिक महत्व समझोगे, उतना लाभ मिलेगा। महापुरुष को देख लिया एक बार, बहुत बड़ी कृपा है। कोई कर्म नहीं, कोई यज्ञ नहीं है, कोई दान नहीं, कोई तपस्या नहीं कि जो महापुरुष को सामने ला के खड़ा कर सके। भगवान को भले ही कोई देख ले, महापुरुष उससे बड़ी पॉवर है।
(प्रवचनकर्ता- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)(स्त्रोत- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली) -
नई दिल्ली। केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड ने देश भर में मां वैष्णो देवी के भक्तों को प्रसाद भेजने के लिए डाक विभाग के साथ समझौता किया है।
इस संबंध में श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रमेश कुमार और जम्मू कश्मीर डाक सेवा मुख्यालय के निदेशक गौरव श्रीवास्तव ने कटरा के आध्यात्मिक विकास केन्द्र में इस समझौते पर हस्ताक्षर किये। आज से प्रसाद के लिए बुकिंग की सुविधा शुरू हो गई है। श्रद्धाल ऑनलाइन या फिर टेलीफोन से प्रसाद के लिए बुकिंग कर सकते हैं। श्रद्धालु घर बैठे वेबसाइट पर या टेलीफोन कर 501 रुपये, 1100 या फिर 2100 रुपये का प्रसाद बुक करा सकते हैं।
प्रसाद पाने के लिए श्रद्धालुओं को श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मां वैष्णोदेवी डॉट ओआरजी या फिर श्राइन बोर्ड के टेलीफोन नंबर 99060-19475 पर ऑर्डर बुक कर सकते हैं। श्राइन बोर्ड ने कहा है कि यदि भक्तों को सात दिन में प्रसाद नहीं मिला तो उन्हें पूरे पैसे वापस कर दिए जाएंगे।
माता वैष्णो देवी के प्रसाद में ड्राई फ्रूट्स, मां वैष्णो देवी का पटका, मौली, रक्षा सूत्र, मां वैष्णो देवी का खजाना, बाबा भैरवनाथ का रक्षा सूत्र, वैष्णो देवी का स्तोत्र संग्रह आदि शामिल रहेगा। -
वैदिक मंत्रोच्चारण हिंदू धर्म के प्राचीन गं्रथ, वेदों के स्तोत्रों की अभिव्यक्ति है। वैदिक मंत्रोच्चारण कम से कम 3 हजार वर्षों से चली आ रही परंपरा, जो संभवत: विश्व की प्राचीनतम सतत गायन परंपरा है।
वेदों का प्रारंभिक संग्रह या संहिता ऋग्वेद है। जिसमें एक हजार स्तोत्र हैं। इन्हें अक्षरात्मक शैली, यानी उच्च स्वर में वाचन, जिसमें अक्षर को ध्वनिनुरुप बोला जाता है। इनमेें सुर के तीन स्तर होते हैं: एक मूलभूत प्रपठन सुर, जिसके साथ ऊपर व नीचे अन्य स्वर होते हैं, जिनका उपयोग ग्रंथों में व्याकरण संबंधी स्वराघात पर बल देने के लिए किया जाता है,।
ऋग्वेद के ये स्तोत्र उत्तरवर्ती संग्रह, सामवेद का आधार हैं, जिसके स्तोत्र (मंत्र) की ऐसी शैली अक्षरात्मक न होकर अधिक अलंकृत, सुरीले और गेय (दो या अधिक स्वरों के लिए एक शब्द) सुरों की छह या उससे अधिक विस्तृत श्रेणी है। स्वरों की साधारण संख्यात्मक प्रणाली ने वाचन में सटीकता स्वरोच्चारण और शारीरिक मुद्राओं पर बल देने की मौखिक परंपरा के साथ इस स्थिर परंपरा तथा समूचे भारत में इसकी समरुपता को बनाए रखा है। वैदिक मंत्रोच्चार आज भी उसी शैली में होता है, जैसा सदियों पहले होता था।
मंत्र अक्षरों के संयोजन से निर्मित और संरचित है जो कि, जब सही ढंग से स्पष्ट उच्चारण होता है , सार्वभौमिक ऊर्जा को व्यक्ति के आध्यात्मिक ऊर्जा में केंद्रित करते हैं । मंत्र का सार मूल शब्द या बीज कहलाता है और इसके द्वारा उत्पन्न शक्ति को मंत्र शक्ति कहा जाता है । प्रत्येक मूल शब्द एक विशेष ग्रह या ग्रह स्वामी से संबंधित है। मंत्र का उच्चारण मंत्र योग या मंत्र जप कहलाता है। मंत्र जप ध्वनि ऊर्जा, सांस और इन्द्रियों में समन्वय स्थापित करता है। मंत्रों के उच्चारण से ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती है, जो एक शक्तिशाली ऊर्जा है, और जीवन में मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर में बदलाव के लिए उपयोगी है।
मंत्रों की शक्ति उसके शब्दों में है। घर में भक्ति और विश्वास के साथ मंत्रों के नियमित जप से उस से सम्बन्धित देवताओं या ग्रह स्वामी की सकारात्मक और रचनात्मक ऊर्जा अपनी ओर आकर्षित होती है और नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति में सहायता करता है। यह अपनी समस्याओं के समाधान हेतु एक दिव्य साधन है। यह आपको सार्वभौमिक कंपन ऊर्जा के साथ समकालीन करता है। मन्त्र अवचेतन मन को सजग करता है, सचेतक चेतना को जागृत करता है और अपने वांछित लक्ष्य या उद्देश्य की ओर आकर्षित करता है। शारीरिक स्तर पर , यह आपकी तंत्रिकाओं को शांत करता है, ग्रंथियों को सक्रिय बनाता है, रक्तचाप सामान्य करता है और शरीर में विभिन्न जीवन प्रणालियों को अनुरूप करता है। मन्त्रों के जप से चित्त में आत्मविश्वास और एकाग्रता की वृद्धि होती है।
आपका जन्म चार्ट या कुंडली आपके अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रकार के ग्रहों को दिखाता है। फलस्वरूप, वे आपके जीवन के प्रासंगिक हिस्सों को अनुकूल या प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं; यह आपका स्वास्थ्य, करिअर, रिश्ते इत्यादि हो सकता है। मंत्रों का उपयोग लाभकारी और हानिकारक दोनों ग्रहों के लिए किया जा सकता है। इन्हें लाभकारी ग्रह की ताकत बढ़ाने और हानिकारक ग्रहों के हानिकारक प्रभाव को कम करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। मंत्रों के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वे केवल सकारात्मक प्रभाव देते हैं। उनका उपयोग स्वास्थ्य, संपत्ति, भाग्य, सफलता में वृद्धि और आलस्य, बीमारियों और परेशानियों से दूर होने के लिए किया जा सकता है। -
तमाम काल्पनिक देवी-देवताओं और अंधविश्वासों के बीच भी हमारे पुराणों में ऐसी कुछ चीजें हैं जो अपनी दृष्टिसम्पन्नता और सरोकारों से चकित करती हैं। शिव और पार्वती के पुत्र गणेश प्रकृति की शक्तियों के ऐसे ही एक विराट रूपक है। गणेश का मस्तक हाथी का है। चूहे उनके वाहन हैं। बैल नंदी उनका गुरू। मोर और सांप परिवार के सदस्य ! पर्वत उनका आवास है। वन उनका क्रीड़ा-स्थल। आकाश उनकी छत। गंगा के स्पर्श से पार्वती द्वारा गढ़ी गई उनकी आकृति में जान आई थी, इसीलिए उन्हें गांगेय कहा गया। गणेश के चार हाथों में से एक हाथ में जल का प्रतीक शंख, दूसरे में सौंदर्य का प्रतीक कमल, तीसरे में संगीत का प्रतीक वीणा और चौथे में शक्ति का प्रतीक परशु या त्रिशूल हैं। उनकी दो पत्नियां - रिद्धि और सिद्धि वस्तुतः देह में हवा के आने और जाने अर्थात प्राण और अपान की प्रतीक हैं जिनके बगैर कोई जीवन संभव नहीं।
गणेश और प्रकृति के एकात्म का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनकी पूजा महंगी पूजन-सामग्रियों से नहीं, प्रकृति में मौजूद इक्कीस पेड़-पौधों की पत्तियों से करने का प्रावधान है। हरी दूब गणेश को प्रिय है। जबतक इक्कीस दूबों की मौली उन्हें अर्पित नहीं की जाय, उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि आम, पीपल और नीम के पत्तों वाली गणेश की मूर्ति घर के मुख्यद्वार पर लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमारे पूर्वजों द्वारा गणेश के इस अद्भुत रूप की कल्पना संभवतः यह बताने के लिए की गई है कि प्रकृति की शक्तियों से सामंजस्य बिठाकर मनुष्य शक्ति, बुद्धि, कला, संगीत, सौंदर्य, भौतिक सुख और आध्यात्मिक ज्ञान सहित कोई भी उपलब्धि हासिल कर सकता है। यही कारण है कि संपति, समृद्धि, सौन्दर्य की देवी लक्ष्मी और ज्ञान, कला, संगीत की देवी सरस्वती की पूजा गणेश के बिना पूरी नहीं मानी जाती है।
होता यह है कि प्रतीकों को समझने की जगह हम प्रतीकों को ही आराध्य बना लेते हैं और वे तमाम चीज़ें विस्मृत हो जाती हैं जिनकी याद दिलाने के लिए वे प्रतीक गढ़े गए थे। गणेश के वास्तविक स्वरुप को भुलाने का असर प्रकृति के साथ हमारे रिश्तों पर पड़ा है। आज प्रकृति अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से रूबरू हैं और इस संकट में हम उसके साथ नहीं, उसके खिलाफ खड़े हैं। गणेश के अद्भुत स्वरुप को पाना है तो उसके लिए मंदिरों और मूर्तियों, मंत्रों और भजन-कीर्तन का कोई अर्थ नहीं। गणेश हम सबके भीतर हैं। प्रकृति, पर्यावरण और जीवन को सम्मान और संरक्षण देकर हम अपने भीतर के गणेश को जगा सकते हैं !
मित्रों को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं !
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हरतालिका अथवा हरितालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं। यह तीज का त्योहार भाद्रपद माह की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते हैं। खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्योहार मनाया जाता है। कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरितालिका का व्रत श्रेष्ठ समझा गया है। यह व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। इसलिए इस व्रत को सबसे कठिन व्रत में माना जाता है।
हरितालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी और गणेश जी की पूजा का महत्व है। महिलाएं बालू से भगवान शिव के लिंग का निर्माण करती हैं और फुलेरा से इसे आकर्षक रूप से सजाकर पूजा-अर्चना करती हैं। पूजा के समय सुहाग का सामान, फल पकवान, मेवा व मिठाई आदि चढ़ाई जाती है। पूजन के बाद रात भर जागरण किया जाता है, इसके बाद दूसरे दिन सुबह गौरी जी से सुहाग लेने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। इस व्रत में सायं के पश्चात चार प्रहर की पूजा करते हुए रातभर भजन-कीर्तन, जागरण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह सूर्योदय के समय व्रत संपन्न होता है। शिव जैसा पति पाने के लिए कुंवारी कन्याएं इस व्रत को विधि-विधान से करती हैं। सौभाग्यवती महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के साथ यह व्रत रखती हैं।
कथा- इस व्रत में कथा का विशेष महत्व है। कथा के बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी।
एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर जंगल पहुंचाया ताकि वे अपना तप जारी रख सके। इस कारण इस व्रत को हरतालिका या हरितालिका कहा गया है, क्योंकि हरत मतलब अगवा करना एवं आलिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता है। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
शुभ मुहूर्त -भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 54 मिनट से सुबह 8:30 मिनट तक।
शाम को हरितालिका तीज पूजा मुहूर्त- शाम 6 बजकर 54 मिनट से रात 9 बजकर 6 मिनट तक।
तृतीया तिथि प्रारंभ- 21 अगस्त की रात रात 2 बजकर 13 मिनट से।
तृतीया तिथि समाप्त- 22 अगस्त रात 11 बजकर 2 मिनट तक।
व्रत नियम - हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता है, अर्थात पूरे दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता। व्रत का नियम है कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता। इसे प्रति वर्ष पूरे नियमों के साथ किया जाता है। हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता है। महिलाएं नए वस्त्र पहनकर, श्रृंगार करती हैं और विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करती हैं। भगवान शिव की पिंडी स्थापित कर जिस घर में ये पूजा आरंभ की जाती है, वहां इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता है।
सुखद दांपत्य जीवन और मनचाहा वर प्राप्ति के लिए यह व्रत विशेष फलदायी है। व्रत करने वाले को मन में शुद्ध विचार रखने चाहिए। यह व्रत भाग्य में वृद्धि करने वाला माना गया है। इस व्रत के प्रभाव से घर में सुख शांति और समृद्धि आती है। नकारात्मक विचारों का नाश होता है।
इस व्रत में व्रती को शयन निषेध है। रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है। यह व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। छत्तीसगढ़ में इस त्योहार का खास महत्व रहा है। शादी-शुदा महिलाएं यह व्रत और पूजा अपने मायके में जाकर करती हैं। इस व्रत के पहले दिन छत्तीसगढ़ में कड़ु भात खाने की परंपरा है यानी करेले की सब्जी जरूर खाई जाती है। कुछ जगहों पर खीरा और भुट्टे का सेवन भी व्रत से पहले शुरू किए जाने का रिवाज है। -
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा नि:सृत प्रवचनों से 5 सार बातें; जो हमारे आध्यात्म-लाभ में सहायक बन सकती हैं -
(1) जब आप अपने को आत्मा मान लेंगे तो शरीर संबंधी आपका सब टेंशन समाप्त हो जायेगा।
(2) भगवान को अर्पित करके कर्म करने में, वह बंधनकारक भी नहीं होता और भगवान का स्मरण भी होता रहता है।
(3) तत्वज्ञान और भगवद्ज्ञान ढाल तलवार की भांति दोनों साथ- साथ चलने चाहिये।
(4) अगर मूर्ति में पूर्ण भगवान की भावना नहीं है और मूर्ति पूजा की, उसको भगवतपूजा न कहकर पत्थर-पूजा कहेंगे।
(5) शरीर को ठीक रखने के लिये प्रकृति की ओर आत्मा को ठीक रखने के लिये आवश्यकता है भगवान की। हम संसार का उपयोग करने के स्थान पर उसका उपभोग करते हैं, किन्तु भगवान को पाने का प्रयत्न नहीं करते।
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
(स्त्रोत- आध्यात्म संदेश पत्रिका, अक्टूबर 2001
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली। ) -
सारा बचपन तुम्हारी कथा को सुनते-सुनते बीता है। नानी की लोरियों के राम यानि तुम अलौकिक थे। जाहिर है कि कल्पना ने तुम्हारे कई चित्र उकेरे, कई तरह से तुम्हें गढ़ा।
तीसरी कक्षा की बात है। आज भी वे दिन बंद आंखों के सामने सजीव हो उठते हैं। घर के आंगन में हरसिंगार के फूल बिखरे रहते थे और मैं तुम्हें “अमर चित्र कथा’’ मे पढ़ती थी। जैसे ही तुम्हारे वन गमन का प्रसंग आता, मन भारी हो जाता। आंखें छलछला उठतीं। बाल मन ने पहली बार पीड़ा का अहसास किया था। “ओह ! सारा एरेंजमेंट वेस्ट हो गया।’’ यह पहली प्रतिक्रिया ज्यों की त्यों याद है। शब्द नहीं बदले। उन चित्रों को देखकर बहुत दुख हुआ था। तुम्हारा राज्याभिषेक धरा रह गया। किन्तु तुम हंसते-हंसते लेश मात्र गुस्से के बिना वन चले गये।
मैंने तरूणाई मे प्रवेश किया। मन आंगन मे सवाल हिलोर भरने लगे। तुम्हें खरी-खोटी सुनाने का मन करता। तुमने सीता के साथ अन्याय किया था। तुम तो युग पुरूष थे। तुमसे ही तो बदलाव की उम्मीद थी। शंबूक के साथ जो तुमने किया उससे मैं और विचलित हुई। वो उम्र ही ऐसी होती है।
फिर भी तुमसे कभी विरक्त नहीं हो सकी। जब-जब भी घर में माता-पिता, वृद्ध जनों से मुंहजोरी करती, फिर तुम्हें पढ़ती तो मन लज्जित हो उठता था। बार-बार तुम्हारा आवेशरहित मुखमंडल सामने आ जाता। लोगों के साझे सहज बोध में सदियों से आखिर तुम्हारी यही तो छवि बसी थी। कृपासिन्धु की छवि। निषादराज गुह को गले लगाते, माता शबरी की जूठन खाते, विमाता को प्रेम से तारते करूणानिधान की छवि अंतस में बसी थी।
एकाएक सब बदलने लगा। तुम्हारा इस्तेमाल वैमनस्य घोलने के लिए चंद स्वार्थी लोगों ने किया। बहुत रक्तपात हुआ। कृपासिन्धु की छवि बदली गई। अब जहां-तहां तुम्हें योद्धा के रूप में उकेरा जाने लगा।
उन्हीं दिनों महज संजोग से इस धरती के लाल उस अनन्त सत्यान्वेषी के सत्य प्रयोगी मार्ग को समझने की जिज्ञासा जाग उठी। वो जिसने जीवन का हर पल तुम्हें समर्पित कर दिया और अंतिम क्षण मे तुम्हें “हे राम’’ कहकर पुकारा। उन्होंने अपने लिए यही कसौटी मानी थी। तुम ही ने तो उन्हें भवसागर पार कराया। हां । सत्य ही तो है। ऐसी अनन्य आस्था रखने वाले को तुम्हीं तो संचालित करते हो। अन्य ज्यादातर मुझ जैसे लोग तो तुम्हें सुन ही नहीं पाते। उन्हें उनका अहं संचालित करता है।
उस महात्मन् के लिए तुम “सत्य’’ थे। दशरथी राम केवल सत्य का लोक प्रतीक। “राम’’ माने “सत्य’’ और कुछ नहीं। उसी सत्य में उनकी आस्था थी। वैसे भी संसार में बाकी तो सब क्षण-क्षण बदलते नाम रूपों का जंजाल भर हैं। उनके मार्ग को जानने की जिज्ञासा ने मन की अधीरता को शांत किया। सोचने की नई रीत सिखाई। कहीं न कहीं यह समझना शुरू किया की हर एक को उसी के नजरिये से देखना चाहिए।
तुमसे असहमत और नाराज आज भी हूं। लेकिन अब तुम्हारे “राजधर्म’’ को खारिज नहीं कर पाती। व्यक्तिगत त्याग का उदाहरण प्रस्तुत किये बिना कोई बदलाव संभव नहीं। तुमने सुविधा नहीं, सत्य का कठिन क्रूर मार्ग चुना। लोगों की प्रतिक्रिया को “द्रोह’’ कहकर आसानी से दंड के सहारे मामले को टाल सकते थे। आज की व्यवस्था में तो आक्षेप लगाना बहुत दूर की बात है। यहां तो सवाल पूछना “द्रोह’’ कहलाता है।
शंबूक के प्रसंग को लेकर तो मेरा जी अब भी तुमसे झगड़ने को चाहता है। मैं जानती हूं कि यह तुम्हारे उदार बड़प्पन और क्षमाशीलता के कारण है। तुम अपने से लड़ने का हक जो देते हो। अब धीरे-धीरे सोच की दिशा बदलने लगी है। वैसे भी तुम्हारी कहानी कई तरह से कही गई है। वाल्मीकि “रामायण” लोकनायक की कथा अधिक लगती है। “अध्यात्म रामायण’’ से प्रेरित तुलसीकृत “मानस’’ में तुम “ब्रह्म’’ और सीता “जगत’’ के रूप में वर्णित किये गये हो। “मानस’’ में उपरोक्त दोनों ही प्रसंग नहीं है। “आनंद रामायण’’ में तो सीता हरण के पूर्व तुम्हारा एक सुंदर संवाद है। तुम सीता से कहते हो कि “रजो’’ रूप में वे अग्नि के पास संरक्षित रहें। “तम’’ रूप मे रावण द्वारा हरण कर ली जाये और “सत्व’’ के रूप में तुम्हारे हृदय में बसी रहें।
जैन परंपरा में “पौमचरियम्’’ और “त्रिषष्टीशलाका पुरूष चरितं’’ में तुम्हारी अलग दिव्य कथा है। सांख्य मत तो तुम्हें “पुरूष’’ और सीता को “प्रकृति’’ का प्रतीक मानता है। तुम्हें निर्गुण निराकार “सत्य’’ के लौकिक प्रतीक के रूप में देखती आई थी। अब भी देखती हूं। लेकिन अब तुम “सत’’ और सीता “चित्त’’ के रूप में दिखाई पड़ते हो। इस सत और चित्त का गठजोड़ ही “आनंद’’ मय होता होगा। सत और चित्त का परस्पर कभी त्याग नहीं हो सकता। वे दो कहां हैं? एक ही हैं। यह तो हुआ चैतन्य का बोध।
इतिहास कई राजाओं की कहानी कहता है। लोक मानस को तो “राम राज्य’’ याद है। कहते हैं कि “राम राज्य’’ मे कभी ताले नहीं लगते थे। बचपन में सोचती थी कि घर खुले रहते होंगे। चोरों का डर नहीं था। यह कितनी अद्भुत बात है। राम! तुम्हारे राज्य में सबके घर हर एक के लिए हमेशा खुले रहते थे। किसी के लिए किसी का भी घर कभी बंद नहीं होता था। वो चाहे कोई भी क्यूं न हो।
दरअसल “राम राज्य’’ में चित्त पर ताला नहीं लगता था। मन खुला हुआ था। हर पंथ, मार्ग, विचार, ख्याल के लिए हमेशा खुला था। तभी तो वह “राम राज्य’’ था। “सत्य’’ का राज्य ऐसा ही तो होगा। जहां विविध, विपरीत विपक्ष को विकार न माना जाये। “सत्य’’ की खोज बंद दिमाग से कहां हो सकती है।
कहते हैं कि रावण बड़ा मायावी था। कोई भी रूप धारण कर सकता था। फिर उसने राम का रूप धारण करके सीता को छलने का प्रयास क्यों नहीं किया? यह तो सही है कि सीता को तब भी छला नहीं जा सकता था। शायद रावण जानता था कि राम का तो रूप भी धारण करने से रावणत्व नष्ट हो जाएगा। वो “सत्’’ की ओर बढ़ जाएगा। सोचती हूं कि “राम’’ यदि कभी रावण का रूप धारण करते तो क्या होता? “सत्य’’ के प्रभाव से “दंभ’’ का दहन हो जाता। “राम’’! तुम्हारी यानि “सत्य’’ की ऐसी ही पावन महिमा है।
मुझे याद है कि तुम पर आधारित धारावाहिक प्रसारित हुआ, पुर्नप्रसारित भी हुआ। तुम पर लोकमानस की ऐसी श्रद्धा है कि सीरियल और गांवों, कस्बों में खेली जाती रामलीला के पात्रों को भी लोगों ने मान दिया। तुम्हारे चरित्र का अभिनय करना भी सम्मानजनक माना जाता है।
क्यूं न हो? तुम हो ही ऐसे। तुमसे विभीषण ने पूछा कि रावण का सामना कैसे करोगे? रथ तक तो है नहीं। तुमने शांत भाव से कह दिया कि तुम जिस रथ पर सवार हो, उसके बाद किसी भौतिक संसाधन की आवश्यकता नहीं। “धर्म’’ तुम्हारा रथ था। “धर्म’’ यानि “सत्य’’। कुछ दशक पहले “रथ यात्रा’’ कहलाता आधुनिक गाड़ी का कारवां तुम्हारी जन्मभूमि का अधिकार पाने के नाम पर निकला। जहां-तहां “सत्य’’ को रौंदता हुआ आगे बढ़ा । वहां धर्म यानि “सत्य’’ नहीं था। सत्य तो केवल प्रेम के कारवां में हो सकता है। विध्वंस मे नहीं।
“सत्य’’ की जन्मभूमि कहां है? मैं सोच रही हूं। तुम्हारा ही प्रसंग बरबस याद हो आया। तुमने सर्वथा अनजान बनकर ऋषि वाल्मीकि से पूछा कि मैं अपनी पत्नी और भाई के साथ कहां वास करूं? उन्होंने क्या खूब उत्तर दिया- “तुम्हारा वास कहां नहीं है राम ?’’
“काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा।।
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें ह्दय बसहु रघुराया।।’’
आगे उन्होंने यह भी जोड़ा कि जाति, पाति, धन, धर्म, बड़ाई को छोड़कर जो अपने हृदय में तुमको धारण करे, वहीं बस जाओ रघुराई।
हां भौतिक स्थान चित्रकूट हो सकता है। अब तुम्हारा मंदिर बनने जा रहा है। लेकिन मैं जानती हूं कि तुम कहां वास करते हो। मेरा मंदिर वहीं होगा। पैदल चलते मजदूरों के पैर के छालों में, असंख्य बेदखल शबरियों की प्रेम कुटिया में, किसानों के पसीने में, सत्यान्वेषियों के बलिदान में, कबीरों के ताने-बाने में, मैं तुम्हें ढूंढ लूंगी। यही मेरे जीवन का लक्ष्य है, मेरी तपस्या, मेरी भक्ति है।(navjivan)
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माखन लाल या माखन चोर कहे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव पर मनाया जाने वाला त्योहार जन्माष्टमी काफी लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन घर में कई खास पकवान और आयोजनों के साथ त्योहार को मनाया जाता है। कृष्ण भक्त और कई श्रद्धालु इस दिन व्रत करते हैं और भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सजाते हैं। वहीं घर के छोटे बच्चों को नंदलाल की वेशभूषा में सजाया जाता है और इस दिन झूला झूलने की भी परंपरा है। इन सब चीजों के साथ श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है और जन्माष्टमी को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी का त्योहार, खासकर मथुरा और वृन्दावन में काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है।
जन्माष्टमी पर घरों में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां भोग के रूप में बनाई जाती हैं। इनमें से एक है माखन मिश्री और श्रीखंड ।
माखन मिश्री रेसेपी
प्यारे कान्हा की पसंदीदा, माखन मिश्री को ज्यादातर जन्माष्टमी के त्योहार में भोग के रूप में बनाते हैं। यह स्वादिष्ट माखन मिश्री, ताजा सफेद मक्खन और मिश्री के साथ तैयार की जाती है। इसे बनाना भी काफी आसान है, आइए यहां आप माखन मिश्री बनाने की रेसेपी जानें।
माखन मिश्री बनाने की विधि
सामग्री- दही या फिर सफेद मक्खन ,मिश्री ,पिस्ता
विधि- सबसे पहले आप 1 किलो दही लें और उसे एक बड़े बर्तन में डाल लें। हालांकि, अगर आपके पास सफेद मक्खन उपलब्ध है, तो आपको दही की आवश्यकता नहीं है। अब आप दही को मथनी या मिक्सर की मदद से ब्लेंड करें। अब इससे निकलने वाले मक्खन को अलग निकाल लें। मक्खन निकल जाने के बाद आप इस एक कांच के कटोरे में लें और इसमें 200 या 250 ग्राम बारीक मिश्री और कटे हुए पिस्ता डालकर मिला लें। मिला लेने के बाद आप कुछ मिश्री और पिस्ता से इसकी गार्निशिंग कर लें। आपकी माखन मिश्री तैयार है। वहीं यदि आप डायबिटीज या हार्ट के रोगी हैं, तो आप कुछ डायबिटीज और हार्ट फ्रेंडली रेसेपीज ट्राई कर सकते हैं।
श्रीखंड रेसेपी
श्रीखंड भी माखन लाल कन्हैया का पसंदीदा है। यह गाढ़े दही और शुगर पाउडर के साथ बना जाता है। इतना ही नहीं, श्रीखंड एक लोकप्रिय भारतीय मिठाई है जिसे आप इस शुभ दिन तैयार कर सकते हैं।
श्रीखंड बनाने की विधि
सामग्री- गाढ़ा दही ,केसर ,इलायची ,सूखे मेवे ,कुछ फल।
श्रीखंड को बनाना काफी आसान है। इसे बनाने के लिए आप सबसे पहले 1 किलो गाढ़ा दही लें। अब आप दही को किसी मलमल या सूती के कपड़े में डालकर कपड़े को बांध लें और लटका दें। इसका सारा पानी निकल जाना चाहिए। यानि कि जिस तरह घर पर पनीर बनाया जाता है, वैसे ही आपको दही के साथ भी करना है। इसके बाद आप कपड़े से दही की बनी पनीर को बाहर निकालें और उसे फेंट लें। आप इसमें आधा कटोरी या उससे ज्यादा कटे हुए सूखे मेवे जैसे कि बादाम, पिस्ता, किशमिश और कुछ कटे हुए फूट्स डालें। अब आप इसमें 2 चम्मच शुगर पाउडर डालें और फिर केसर डालकर मिला लें। केसर श्रीखंड के स्वाद को बढ़ा देता है। इस प्रकार आप घर पर श्रीखंड को बनाकर कान्हा जी को भोग लगा सकते हैं और खुद भी इस खास डेर्जट का आंनद ले सकते हैं। -
चेन्नई। कांचीपुरम में कांची कामकोटि पीठ ने सोने और चांदी के सिक्के तथा कामाक्षी मंदिर से पवित्र मिट्टी को अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन में इस्तेमाल के लिए भेजा है।
कांची कामकोटि पीठ के 70 वें आचार्य विजयेंद्र सरस्वती स्वामी ने बताया कि एकाम्बरनाथ स्वामी, कामाक्षी और भगवान विष्णु के अन्य मंदिरों से जमा की गयी मिट्टी को भूमि पूजन के पहले ही अयोध्या भेज दिया गया।
सदियों पुराने मठ के प्रमुख ने एक बयान में कहा है कि अपने पूर्ववर्ती और गुरु श्री जयेंद्र तथा चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के आशीर्वाद के साथ दो ईंटें भी भेजी गयी हैं।
श्री विजयेंद्र सरस्वती ने कहा, श्री जयेंद्र सरस्वती और कांची मठ का अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर के साथ बहुत करीबी संबंध रहा है। यह ईश्वर की इच्छा है। उन्होंने कहा, आचार्य ने विभिन्न समूहों से बात कर अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण के लिए कई बार प्रयास किए। उनकी इच्छा थी कि जल्द मंदिर बने । विजयेंद्र सरस्वती ने कहा, संयोग से अयोध्या में भूमि पूजन और श्री जयेंद्र का जयंती समारोह पांच अगस्त को ही रहा है। यह श्री राम के प्रति श्री जयेंद्र की भक्ति और समर्पण को दिखाता है। मठ के सूत्रों के मुताबिक कांची पीठ अयोध्या में राम मंदिर के लिए जयेंद्र सरस्वती की भूमिका पर दो भाषाओं (तमिल और अंग्रेजी) में किताब लाने का विचार बना रही है। -
अयोध्या में 05 अगस्त को राम मंदिर का भूमि पूजन है. ये एक बड़ा आयोजन होगा. इसके बाद भव्य राम मंदिर निर्माण का काम शुरू हो जाएगा. लंबे समय से इस मामले में अदालत में केस चला फिर पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुना दिया.
आइए अब हम 10 प्वाइंट्स में जानते हैं उस फैसले के बारे में, जिससे हमें इस पूरे मामले को समझने में मदद मिल सकती है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया. ये मंदिर-मस्जिद विवाद 134 साल पुराना था. 40 दिनों तक चली सुनवाई के बाद शनिवार को इस दशकों पुराने मामले में पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से अपना फ़ैसला दिया. राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं. ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है. विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए. इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा. 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाई जाए.
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उत्तर प्रदेश के अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन प्रधानमंत्री पांच अगस्त को करेंगे। इस कार्यक्रम को लेकर पूरे देश में खुशियों का माहौल है। मंगलवार को रोशनी में नहाया शहर बुधवार रात तक जगमग रहेगा। अयोध्या धाम में 3,51000 दिए जलाए गए हैं। यह जानकारी जिला प्रशासन ने दी है। राम की पैड़ी समेत अयोध्या धाम के 50 स्थानों पर दिए जलाए गए। अयोध्या धाम के सभी मंदिरों में दिये जलाए गए हैं। प्रशासन के अनुसार 1 लाख 25 हजार दीपक सरयू घाट (राम की पैड़ी) पर इसके अलावा 25 हजार भरतकूप, छोटी चौक में 11 हजार, बड़ी चौक में 12 हजार हनुमान गढ़ी में 11000, जन्मभूमि में 101, इसके अन्य कई जगह भी दीपक जलाए गए।
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अयोध्या: अयोध्या में बुधवार को होने वाली भूमि पूजन (Ram Mandir Bhoomi Pujan) के पहले राम मंदिर के एक और पुजारी के कोरोनावायरस से संक्रमित (Ayodhya priest corona positive) होने की खबर आई है. सोमवार को रामलला के सहायक पुजारी प्रेम कुमार तिवारी भी कोरोना पॉजिटिव मिले हैं इसकी पुष्टि सीएमओ डॉ.घनश्याम सिंह ने की है. इससे पहले शुक्रवार को एक सहायक पुजारी प्रदीप दास और राम मंदिर की सुरक्षा में तैनात 14 पुलिस वाले कोरोना पॉज़िटिव हो चुके हैं. बता दें कि बुधवार को अयोध्या में रामजन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के पहले भूमि पूजन हो रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका शिलान्यास करने आ रहे हैं, ऐसे में पुजारियों और 14 सुरक्षाकर्मियों का कोरोना पॉजिटिव मिलना चिंता का विषय है. मंदिर की जिम्मेदारी देख रहे रामजन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट ने सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया था कि इस कार्यक्रम में कुल 175 लोगों को निमंत्रण पत्र भेजा गया है, जिनमें 135 संत हैं.
अयोध्या में पहले ही धार्मिक कार्यक्रम शुरू हो चुका है. सोमवार को यहां भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की गई. इसके बाद भगवान राम और मां सीता के राजवंश के देवी-देवता पूजे जाएंगे. मंगलवार को यहां हनुमानगढ़ी मंदिर में भगवान हनुमान की पूजा भी होनी है.
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अयोध्या. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन करने वाले हैं. इस दौरान पीएम मोदी राम मंदिर के प्रतीक और रामायण पर पोस्टल स्टैम्प भी जारी कर सकते हैं. न्यूज़ एजेंसी PTI ने इसकी जानकारी दी है. इस अवसर पर अभी अयोध्या में तैयारी चल रही है. राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने रामभक्तों से अपील की है कि वे 5 अगस्त को अयोध्या पहुंचने के लिए आतुर न हों. भक्तों को आश्वस्त किया गया है कि उन्हें भविष्य में उचित समय पर 'राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण यज्ञ' में भाग लेने का अवसर मिलेगा.
'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक वाईपी सिंह ने बताया, 'अगर चीजें योजना के अनुसार रहीं, तो 5 अगस्त को डाक टिकट भी लॉन्च किए जाएंगे. इनमें से एक टिकट राम मंदिर के एक प्रतीकात्मक मॉडल पर और दूसरा अन्य देशों में राम के महत्व को दर्शाने वाले दृश्य पर होने की संभावना है .'
सिंह ने कहा कि अयोध्या शोध संस्थान 'दुनिया भर में राम की सांस्कृतिक उपस्थिति' को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न देशों से राम लीला के प्रतीकों के बड़े पोस्टर और कट-आउट तैयार कर रहा है. इन्हें राम मंदिर की ओर जाने वाली रोड पर लगाया जाएगा. उन्होंने कहा कि अयोध्या में साकेत डिग्री कॉलेज में जहां उनका हेलिकॉप्टर उतरेगा, वहां से राम मंदिर तक यानी 4.5 किलोमीटर के रास्ते पर 25 जगहों पर राम चरित्र मानस का अखंड पाठ कराने की तैयारी चल रही है.
दुल्हन की तरह सजी अयोध्या
इसके साथ ही 5 अगस्त के लिए शहर दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. इस बीच राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने लोगों से महामारी की स्थिति को देखते हुए भूमि पूजन के लिए अयोध्या ना आने को कहा है. ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि 'राम मंदिर आंदोलन 1984 में शुरू हुआ था और तब से करोड़ों रामभक्त ने समर्थन दिया है. ऐसे में इस अवसर पर मौजूद रहना उनकी इच्छा होगी हालांकि महामारी की स्थिति को देखते हुए, यह संभव नहीं है.'
उन्होंने कहा 'राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट सभी रामभक्तों से अपील करता है कि वे अयोध्या पहुँचने के लिए उत्सुक न हों और इसके बजाय सभी को दूरदर्शन पर लाइव टेलीकास्ट देखना चाहिए.' उन्होंने इस अवसर पर सभी से शाम को अपने घरों में दीपक जलाने का अनुरोध किया (news18)
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया के बीच रामलला की दर्शन अवधि में बदलाव किया गया है और दर्शन के समय को एक घंटा के लिए बढ़ा दिया गया है। इस बीच अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए भी हलचल तेज हो गई है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड बैठक करके जल्द ही ट्रस्ट का गठन करेगा।
सोमवार को अयोध्या में प्रथम पाली में रामलला के दर्शन का समय एक घंटा बढ़ाया गया है। अब प्रथम पाली में रामलला के दर्शन सुबह 7 बजे से 12 बजे तक हो सकेंगे। पहले प्रथम पाली में 7 बजे से 11 बजे तक दर्शन होते थे। वहीं विश्राम के बाद दूसरी पाली में दो बजे से छह बजे तक दर्शन होते हैं। राम मंदिर निर्माण की हलचलों की बीच यहां श्रद्धालुओं की आमद भी बढ़ गई है, जिसके कारण अयोध्या में भक्तों भीड़ देखी जा रही है।
राज्य में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण शनिवार और रविवार को लॉकडाउन होने के कारण उन दिनों केवल स्थानीय लोग ही राम लला का दर्शन करते हैं। यहां पर बाहर से आने वालों के लिए सिर्फ पांच दिन ही दर्शन सुलभ हो पाता है। इसी कारण पांच दिन काफी भीड़ होती है। पांच दिन तक बढ़ती भीड़ के कारण रामलला की दर्शन अवधि में बदलाव किया गया है। दर्शन के लिए बढ़ाया गया यह समय अग्रिम आदेश तक लागू रहेगा।
वहीं राम मंदिर निर्माण का काम तेज होने के बीच अयोध्या में मस्जिद के निर्माण की हलचल बढ़ गई है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड बैठक करके जल्द ट्रस्ट का गठन करेगा।सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारूकी ने बताया कि अगले 15 दिनों के अन्दर रौनाही में मिली जमीन पर मस्जिद निर्माण को लेकर काम शुरू कर दिया जाएगा। इसके लिए सबसे पहले एक ट्रस्ट का ऐलान होगा। यह ट्रस्ट रौनाही में बनने वाली मस्जिद, इस्लामिक एजुकेशनल संस्था और लाइब्रेरी का निर्माण कराएगी। निर्माण संबंधी पूरी जिम्मेदारी इसी ट्रस्ट की होगी।
उन्होंने बताया कि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड जल्द ही लखनऊ में बैठक करने के बाद ट्रस्ट का औपचारिक गठन करेगा। ट्रस्ट यह बैठक वीडियो कन्फ्रेंसिंग से करेगा। सभी सदस्य इसमें वीडियो कन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल होंगे। माना जा रहा है कि बोर्ड की इस बैठक में 15 सदस्य शमिल होंगे। इस बैठक में ट्रस्ट का गठन होगा और इसके गठन के बाद निर्माण की रूपरेखा तय होगी। इसमें इस्लामिक एजुकेशनल संस्थान के साथ ही साथ लाइब्रेरी का भी निर्माण होगा।
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण होने जा रहा है। वहीं कोर्ट के आदेश के अनुसार सरकार ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन आवंटित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुरूप शासन की ओर से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या जनपद की परिधि में स्थित धन्नीपुर ग्राम सभा में 5 एकड़ जमीन मस्जिद निर्माण के लिए दी गई है।(IANS)
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बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने शनिवार को लोगों से एक दिन में पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ करने की अपील की. उनका मानना है कि इससे दुनिया को कोरोना वायरस महामारी से मुक्ति मिल जाएगी.
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए भूमि-पूजन समारोह 5 अगस्त को होना है. भोपाल की सांसद ने कहा कि 25 जुलाई से 5 अगस्त तक अपने घर में दिन में पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ करें.
अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक़, उनका कहना है कि "इसके बाद 5 अगस्त को दीपक जलाकर और घर में भगवान राम की 'आरती' करके इस अनुष्ठान का समापन करें."
उन्होंने ट्वीटर पर एक वीडियो भी शेयर किया. जिसमें उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार भोपाल में 4 अगस्त तक लॉकडाउन लगाकर कोरोना वायरस को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, "हालांकि लॉकडाउन 4 अगस्त को ख़त्म हो जाएगा. ये अनुष्ठान (हनुमान चालीसा का पाठ) 5 अगस्त को तब ख़त्म होगा, जब अयोध्या में राम जन्म भूमि के लिए भूमि पूजन किया जाएगा. हम उस दिन को दिवाली की तरह मनाएंगे."
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महाराष्ट्र के सांगली जिले के भोसे गांव का 400 साल पुराना बरगद का पेड़ आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सुर्खियों में है. निर्माणाधीन हाइवे का सर्विस रोड उसके पास से गुजरता है. इसलिए यह पेड़ काटकर रोड बनाई जा रही थी. मगर पर्यावरणवादी कार्यकर्ताओं ने इसका पुरजोर विरोध कियाविरोध बढ़ता देख पेड़ के बारे में जब राज्य के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे को अवगत कराया गया, तो उन्होंने तुरंत एक्शन लेकर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से बात की और इस पेड़ को बचाने की मांग की. आदित्य ठाकरे से बात करने के बाद नितिन गडकरी ने इस पेड़ को बचाने के लिए हाइवे के नक्शे में ही बदलाव करके ये प्रोजेक्ट पूरा करने का आदेश दिया हैनिर्माणाधीन रत्नागिरी- नागपुर हाइवे नंबर 166 सांगली जिले के भोसे गांव के पास से गुजर रहा है. सांगली के पर्यावरण वादी कार्यकर्ताओं ने पेड़ काटने का विरोध किया था. सोशल मीडिया, न्यूज मीडिया में यह विरोध इतना फैल गया कि राज्य के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने इसमें दखल दिया. उन्होंने केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से बात करके इस पुराने पेड़ को बचाने की गुजारिश की.
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वाराणसी. दशकों के इंतजार के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण शुरू करने की तारीख तय हो गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन करेंगे. लेकिन, अब भूमि पूजन की तारीख और मुहूर्त को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भूमि पूजन के लिए तय वक्त को अशुभ घड़ी बताया है. उनका कहना है कि 5 अगस्त को दक्षिणायन भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि है. शास्त्रों में भाद्रपद मास में गृह, मंदिरारंभ कार्य निषिद्ध है. उन्होंने इसके लिए विष्णु धर्म शास्त्र और नैवज्ञ बल्लभ ग्रंथ का हवाला दिया. हालांकि, काशी विद्वत परिषद ने शंकराचार्य के तर्कों को निराधार बताते हुए कहा कि ब्रह्मांड नायक राम के खुद के मंदिर पर कैसे सवाल उठाया जा सकता है.
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि हम तो राम भक्त हैं, राम मंदिर कोई भी बनाए हमें प्रसन्नता होगी, लेकिन उसके लिए उचित तिथि और शुभ मुहूर्त होना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर मंदिर जनता के पैसों से बन रहा है तो उनकी भी राय लेनी चाहिए.
तीन दिन चलेगा भूमि पूजन का कार्यक्रम
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमल नयन दास ने बताया कि भगवान राम के मंदिर का भूमि पूजन का कार्यक्रम 3 दिन तक चलेगा. श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन का कार्यक्रम 3 अगस्त को शुरू हो जाएगा.
भूमि पूजन का कार्यक्रम
3 अगस्त को प्रथम दिन गणेश पूजन
4 अगस्त को रामर्चन
5 अगस्त को 12:15 बजे प्रधानमंत्री राम मंदिर की आधारशिला रखेंगे. इस दौरान काशी, प्रयागराज और अयोध्या के वैदिक विद्वान और आचार्य पंडितों के द्वारा रामलला के मंदिर का भूमि पूजन कराया जाएगा.
गौरतलब है कि बीते दिनों 9 नवंबर को अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद ट्रस्ट का गठन हुआ था और ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण के लिए राम जन्म भूमि के परिसर में तैयारियां तेज कर दी थीं. उसी कड़ी में 25 मार्च को रामलला को अस्थाई मंदिर में शिफ्ट किया गया था. विराजमान रामलला को शिफ्ट करने के बाद जमीन के समतलीकरण का कार्य पूरा हो गया है. भगवान के गर्भ ग्रह 2.77 एकड़ के अंदर ही रहेगा, जिसमें पूरे वैदिक रीति-रिवाजों के साथ काशी के विद्वान और अयोध्या के पुरोहित भूमि पूजन प्रधानमंत्री से कराएंगे.
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर खुदाई के दौरान मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए दायर दो जनहित याचिकाएं सोमवार को खारिज कर दीं.
जस्टिस अरुण मिश्रा, बीआर गवई और कृष्ण मुरारी की पीठ ने इन याचिकाओं को गंभीरता से विचार करने योग्य नहीं पाया और इसे अयोध्या भूमि विवाद मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने से रोकने की कोशिश के रूप में देखा.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाते हुए उन्हें एक महीने के भीतर यह राशि जमा करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने कहा कि पांच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुना चुकी है और यह इन जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस निर्णय से आगे निकलने का प्रयास है.
याचिकाकर्ताओं की ओर पेश वकील ने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास ने भी स्वीकार किया है कि इस क्षेत्र में ऐसी अनेक कलाकृतियां हैं, जिन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है.
पीठ ने याचिकाकर्ताओं से जानना चाहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दायर की.
पीठ ने कहा, ‘आपको इस तरह की तुच्छ याचिका दायर करना बंद करना चाहिए. इस तरह की याचिका से आपका तात्पर्य क्या है? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि कानून का शासन नहीं है और इस न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का कोई पालन नहीं करेगा.’
केंद्र की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्यायालय को याचिकाकर्ता पर अर्थदंड लगाने के बारे में विचार करना चाहिए.
पीठ ने कहा कि प्रत्येक याचिकाकर्ता पर एक-एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाया जाता है जिसका भुगतान एक महीने के भीतर किया जाना चाहिए.
ये याचिकाएं सतीश चिंधूजी शंभार्कर और डॉ. आम्बेडकर फाउंडेशन ने दायर की थीं. इनमें इलाहाबाद उच्च न्यायालाय में सुनवाई के दौरान अदालत की निगरानी में हुई खुदाई के समय मिलीं कलाकृतियों को संरक्षित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
इन याचिकाओं में नए राम मंदिर के लिए नींव की खुदाई के दौरान मिलने वाली कलाकृतियों को भी संरक्षित करने तथा यह काम पुरातत्व सर्वेक्षण की निगरानी में कराने का अनुरोध किया गया था.
लाइव लॉ के मुताबिक याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य पर भी ध्यान आकर्षित किया कि बिना किसी वैज्ञानिक शोध या विश्लेषण के बरामद कलाकृतियों को हिंदू संस्कृति और धर्म के अवशेषों के रूप में पेश किया जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा, ‘ये कलाकृतियां प्राचीन भारतीय संस्कृतियों के अवशेष हैं, इसलिए इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए और इस पर वैज्ञानिक एवं पुरातात्विक शोध किया जाना चाहिए.’
इसके अलावा यह आरोप लगाया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक की देखरेख में खुदाई और समतल करने की गतिविधियां नहीं की जा रही हैं, जो कि प्राचीन स्थलों और स्मारकों को सुरक्षित और संरक्षित करने वाला विभाग है.
याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि खुदाई और समतल करने के दौरान स्थानीय अधिकारी और सक्षम एएसआई अधिकारी भी साइट पर मौजूद नहीं रहते हैं, इसलिए पता लगाई गईं कलाकृतियों और मूर्तियों को बरामद नहीं किया जा रहा है.
अपनी दलीलों पुख्ता करने के लिए उन्होंने कहा कि हैदराबाद के दलित अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष ने दावा किया था कि इन कलाकृतियों का प्राचीन बौद्ध संस्कृति और साहित्य से गहरा संबंध है. उन्होंने कहा कि इसे लेकर सम्यक विश्व संघ ने एएसआई के डीजी को पत्र लिखकर कहा था कि इन्हें वे अपने कस्टडी में लें और इसको संरक्षित करें.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने इस मामले को लेकर एएसआई के डीजी और अन्य स्थानीय विभागों को पत्र लिखकर गुजारिश की थी लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया.
निर्माण प्रक्रिया को रोकने के प्रयास के किसी भी विचार से इनकार करते हुए याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे राम मंदिर बनाने के लिए की जा रही खुदाई और उत्खनन का वीडियो बनाएं.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ नवंबर को अपने ऐतिहासिक फैसले में अयोध्या में राम जन्म भूमि स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक न्यास गठित करने का निर्णय दिया था. न्यायालय ने इसके साथ ही मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश भी सरकार को दिया था
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सावन की शिवरात्रि का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व होता है. इस दिन भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में खुशहाली आती है. साथ ही व्रत करने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से लाभ मिलता है. हालांकि शिवरात्रि पर कुछ लोग जाने-अंजाने में बड़ी भूल कर बैठते हैं. शिव पुराण में भोलेनाथ की पूजा से संबंधित वर्णन मिलता है.
आइए जानते हैं मंदिर में शिव की पूजा करते वक्त हमें कौन सी गलतियां नहीं करनी चाहिए.
1. तुलसी को भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है. इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं की जाती है. तुलसी को शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए.
2. भगवान शिव को जल चढ़ाते वक्त खास बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है. हमेशा याद रखें कि शिवलिंग पर जल तांबे के लोटे से चढ़ाया जाता है, जबकि पीतल के लोटे से दूध चढ़ाया जाता है.
3. तिल या तिल से बनी कोई वस्तु भी भगवान शिव को अर्पित नहीं करनी चाहिए. इसे भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है, इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित करना चाहिए.
4. हल्दी का संबंध भगवान विष्णु और सौभाग्य से है, इसलिए यह भगवान शिव को नहीं चढ़ता है. अगर ऐसा आप करती हैं तो इससे आपका चंद्रमा कमजोर होने लगता है और चंद्रमा कमजोर होने से आपका मन चंचल हो जाएगा आप किसी एक चीज में मन लगाकर काम नहीं कर पाएंगे.
5. उबले हुए दूध से शिवलिंग का अभिषेक ना करें. शिवलिंग का अभिषेक सदैव ठंडे जल और कच्चे दूध से करना चाहिए.
6. भगवान शिव को नारियल तो चढ़ा सकते हैं लेकिन नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए. इससे धन की हानि होती है.
7. केतकी का फूल भी भगवान शिव को कभी भी नहीं चढ़ाना चाहिए.
8. भगवान शिव को अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है. टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है, इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ता.
9. भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था. शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान विष्णु का भक्त था. इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है, शिव की नहीं.
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माता सीता जिनके बगैर भगवान राम भी अधूरे हैं. यही वजह कि भगवान से पहले उनका नाम आता है. सीता- राम. इस नाम लेने से ही जीवन के कष्ट मिट जाते हैं. ऐसे लोगों में धारणा है. सीता नवमी का दिन माता सीता को समर्पित है. इस दिन को जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है.
नवमी का आरंभ 1 मई से हो चुका है. 2 मई को नवमी 6 बजकर 37 मिनट तक रहेगी. इसलिए सुबह उठकर पूजा करने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है. इस दिन भगवान राम की भी पूजा का विधान है. तभी यह पूजा पूर्ण मानी जाती है. माता सीता को लक्ष्मी का अवतार भी माना गया है. सीता जी के चरित्र से महिलाएं प्रेरणा लेती हैं. उन्होंने पतिव्रता का आर्दश उदाहरण प्रस्तुत किया.घर में ऐसे करें पूजाइस दिन घर में ही पूजा करें. देश में लॉकडाउन की स्थिति है. ऐसे में मुहूर्त समाप्त होने के बाद भी घर में कीर्तन और भजन किए जा सकते हैं. घर की महिलाएं एकत्र होकर इस दिन सीता माता का गुणगान और उनकी कथाओं का वाचन और श्रवण कर सकती हैं.जनक की पुत्री थी माता सीतामाता सीता के पिता का नाम राजा जनक था. जो मिथिला के राजा थे. एक बार जब मिथिला में सूखा पड़ा तो ऋषि मुनियों ने यज्ञ करवाने की सलाह राजा जनक को दी. इसके बाद जब राजा जनक ने हल चलाया. हल चलाते समय उनका हल एक सख्त चीज से टकरा गया. रूकर उन्होंने देखा कि एक कठोर संदूक में एक सुंदर सी कन्या खेल रही थीं. राजा कन्या को अपने राज महल में ले आए. जनक के कोई संतान नहीं थी. उन्होंने अपनी पुत्री के रूप में सीता माता का लालन पालन किया. बाद में जिनका विवाह भगवान राम से हुआ. -
ग्रहों की स्थिति-सूर्य और बुध मेष राशि में बने हुए हैं। यह जनमानस के लिए अच्छी बात है। शुक्र वृषभ राशि में हैं। स्वग्रही हैं। यह भी अच्छी बात है। मिथुन राशि में जो ग्रहण योग बना हुआ है चंद्रमा और राहु का वो आज भर रहेगा। यह भयावह स्थिति है। बहुत खराब स्थिति है। यह कल से शुरू हुआ है और आज रात तक रहेगा। पिछले महीने 29 मार्च से लेकर दो अप्रैल तक की स्थिति को खराब थी। अभी 28 अप्रैल से लेकर 29 अप्रैल की रात तक का समय जनमानस के लिए नहीं ठीक है। केतु धनु राशि में ठीक हैं। शनि,मंगल और गुरु अभी नहीं ठीक हैं मकर राशि में।
राशिफल-मेष-तुलनात्मक रूप से स्थिति पहले से बेहतर है। लेकिन अपने और अपनों के स्वास्थ्य को लेकर खराब स्थिति है। आप अपने मित्रों, भाई-बंधु और व्यवसायिक दृष्टिकोण से कुछ रिस्क लेने लायक नहीं है। स्वास्थ्य, व्यापार और प्रेम तीनों की चिंता करें। प्रेम फिर भी तुलनात्मक रूप से ठीक है लेकिन बाकी स्थिति ठीक नहीं चल रही है। काली वस्तु का दान करें और राहु मंत्र का जाप करें।वृषभ-स्थिति अपनों के लिए सही नहीं है। भोज्य पदार्थ का बहुत सावधानी से सेवन करिएगा। अपनों के स्वास्थ्य पर ध्यान रखें। निवेश अभी न करें। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यापार तीनों मध्यम दिख रहा है। हरी वस्तु पास रखें। राहु मंत्र का जाप करें।मिथुन-मानसिक और शारीरिक सिथति ठीक नहीं दिख रही है। अपनों से निकट रहिए। किसी समझदार व्यक्ति के सम्पर्क में रहिए। कोई रिस्क न लें। चाहे स्वास्थ्य में। सरकारी, व्यापारिक तंत्र और प्रेम की स्थिति। हर दृष्टि से यह समय मध्यम है। हरी वस्तु पास रखें। राहु मंत्र का जाप करें।कर्क-बिल्कुल खराब स्थिति है। लग्नेश इंफेक्टेड हैं और द्वादश भाव में बैठे हैं। पार्टनरशिप में समस्या, स्वास्थ्य में समस्या, प्रेम की स्थिति पहले से खराब चल रही है। मंगल और शनि एक साथ बैठे हैं। व्यापारिक तौर पर भी मंगल दशमेश है उसकी भी स्थिति खराब है। कुल मिलाकर बहुत सावधानीपूर्वक चलना है। हनुमान चालीसा का पाठ करें। भगवान शिव को घर पर ही जल दें।सिंह-शासन-सत्ता पक्ष से कोई चेतावनी मिल सकती है। कोई रिस्क न लें। अपनी तरफ से कोई रिस्क कदापि न लें। सूर्यदेव को जल दें। स्वास्थ्य पर ध्यान दें। संतान पक्ष पर बहुत ध्यान दें। प्रेम में तू-तू, मैं-मैं की आशंका है।कन्या-शासन-सत्ता पक्ष से बिल्कुल बहुत आराम से चलें। कोई रिस्क न लें। सीने में विकार की आशंका है। पैतृक सम्पत्ति में समस्या हो सकती है। बस आज का दिन आराम से गुजार लीजिए। बाकी कोई समस्या नहीं है। स्वास्थ्य,प्रेम,व्यवसाय सब पर ध्यान दें। गणेश जी की वंदना करें।तुला-मन धार्मिक बना रहेगा। एक नकारात्मक उर्जा का संचार होगा। मान-सम्मान का ध्यान रखिए। स्वास्थ्य पर ध्यान रखें। प्रेम की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। व्यापारिक स्थिति की चिंता न करें। आगे चलकर ठीक हो जाएगा। राहु मंत्र का जाप करें।वृश्चिक-अत्यंत खराब समय है। कोई रिस्क न लें। स्वास्थ्य,प्रेम,व्यवसाय किसी चीज का रिस्क न लें। बजरंग बली को याद करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। काली वस्तु का दान करें। ईश्वर सब अच्छा करेंगे।धनु-जीवनसाथी के स्वास्थ्य पर ध्यान दें। अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें। खराब स्थिति है। व्यापारिक रूप से कोई रिस्क न लें। सब मध्यम है। आज के दिन बस काट लें। केसर का तिलक लगाएं या कोई भी पीली वस्तु पास रखें।मकर-अज्ञात भय सताएगा। उदर रोग से परेशान रहेंगे। किसी भी तरह का कोई रिस्क न लें आज के दिन। स्वास्थ्य, प्रेम,व्यापार तीनों मध्यम है।कुंभ-किसी भी तरह का कोई निर्णय आज के दिन न लें। मन परेशान रहेगा। चिड़चिड़ापन बना रहेगा। प्रेम में तू-तू, मैं-मैं हो सकता है। संतान पक्ष से कुछ खराब समाचार मिल सकता है। बस आज के दिन पार कर लीजिए। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यवसाय तीनों मध्यम है।मीन-घरेलू सुख बाधित है। भूमि,भवन,वाहन की खरीदारी से सम्बन्धित कुछ परेशानी आ सकती है। स्वास्थ्य, प्रेम, व्यवसाय तीनों मध्यम है। काली वस्तु का दान करें। ओम नम: शिवाय का जाप करें। अच्छा होगा। -
रुद्रप्रयाग। विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान और पूजा अर्चना के बाद आज सुबह 6:10 खोल दिए गए। कपाट खुलने के मौके पर यहां तीर्थयात्री और स्थानीय लोगों की कमी साफ देखी गई। कोराना संकट के चलते यह पहला मौका होगा जब कपाट खुलने पर बाबा के दरबार में भक्तों का टोटा नहीं था।
केदारनाथ धाम के मुख्य पुजारी शिव शंकर लिंग ने कपाट खुलने की परम्परा का निर्वहन किया। जबकि उनके साथ देवस्थानम बोर्ड के प्रतिनिधि के तौर पर बीडी सिंह समेत पंचगाई से संबंधित 20 कर्मचारी कपाट खुलने पर यहां पहुंचे। इसके अलावा पुलिस और प्रशासन के करीब 15 लोग यहां मौजूद रहे। इस बार मंदिर को फूलों के बजाय बिजली की लड़ियों से सजाया गया है।सोशल डिस्टेंसिंग रहे और भीड़ न हो इसके लिए प्रशासन ने किसी को भी केदारनाथ जाने की अनुमति नहीं दी है। इसलिए कपाट खुलने के मौके पर काफी कम संख्या में लोग मौजूद नहीं रहे। मंगलवार को जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया था कि कोरोना महामारी के चलते केदारनाथ के कपाट खुलने की परम्परा का सादगी से निर्वहन किया जाएगा, किसी भी दर्शनार्थी को केदारनाथ जाने की अनुमति नहीं दी गई है।इतिहास में पहली बार मंदिर परिसर रहा खालीकेदारनाथ यात्रा के इतिहास में यह पहला मौका है जब मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर परिसर पूरी तरह खाली रहा। इस बार हजारों भक्तों की बम-बम भोले के जयघोषों की गूंजों की कमी खली। ऐसा पूर्व में कभी नहीं देखा गया कि जब बाबा केदार के कपाट खुल रहे हों और भक्तों की किसी तरह कमी देखी गई हो।विश्व के साथ ही देश में कोरोना महामारी से माहौल भयभीत है। देश लॉकडाउन में है, ऐसे में सभी धार्मिक परम्पराओं का निर्वहन काफी सहज तरीके से किया जा रहा है ताकि लॉकडाउन के पालन के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे। भीड़ भाड़ न हो, इसको देखते हुए सरकार और प्रशासन ने केदारनाथ में सामान्य तीर्थयात्रियों की आवाजाही पर रोक लगा दी गई है।केदारनाथ धाम में चारों ओर बर्फ ही बर्फकेदारनाथ धाम में इस साल अधिक बर्फ गिरने की वजह से मंदिर के चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई दी। यहां पहुंचे लोगों ने मंदिर के आसपास कुछ बर्फ साफ भी की, किंतु परिसर में करीब 4 फीट बर्फ के बीच आने जाने के लिए रास्ता बनाया गया है। बीते सालों की तुलना में इस बार केदारनाथ में काफी बर्फ दिखाई देगी। एक ओर यहां लगातार बर्फ गिरती रही, वहीं कोरोना संकट के चलते केदारनाथ यात्रा पर सरकार और प्रशासन द्वारा ज्यादा फोकस नहीं किया गया जिससे समय पर व्यवस्थाएं बहाल नहीं हुई।26 को खुले थे गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाटविश्व प्रसिद्ध गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट रविवार को अक्षय तृतिया के मौके पर वैदिक मंत्रोच्चारण व पूजा-अर्चना के साथ श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए गए। गंगोत्री धाम के कपाट 12:35 व यमुनोत्री के कपाट ठीक दोपहर 12:41 पर खोले गए। दोनो धामों के कपाट खुलने के बाद आगामी छह माह तक श्रद्धालु धामों में मां गंगा व यमुना के दर्शनों के भागी बन सकेंगे। हालांकि लॉकडाउन के कारण कपाट खोलते वक्त श्रद्धालु नहीं पहुंच सके।15 मई को खुलेंगे बदरीनाथ के कपाटबदरीनाथ धाम के कपाट इस साल 15 मई को खोले जाएंगे। मुख्यमंत्री आवास पर सरकार और राजपरिवार के प्रतिनिधियों के बीच बैठक के बाद यह फैसला लिया गया था। बैठक में बदरीनाथ के रावल के केरल से आने के बाद 14 दिन तक क्वारंटाइन रहने की स्थिति को लेकर चर्चा हुई थी। इस पर तय किया गया कि कपाट खुलने की तिथि आगे बढ़ाई जाए। इसके बाद टिहरी राजपरिवार प्रमुख मनु जयेंद्र शाह ने फोन पर बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तारीख 30 अप्रैल से आगे बढ़ा कर 15 मई करने की घोषणा की। पांच मई को नरेंद्रनगर राजमहल से तेल निकालने की गाडू घड़ा पंरपरा का निर्वहन किया जाएगा। -
मेष राशि –
सत्तापक्ष से किसी परिवर्तन की सूचना मिलेगी ….नौकरी के प्रयास में सफलता मिलने मे विलंब ….किसी वरिष्ठ व्यक्ति से सहयोग प्राप्त होगा…स्कीन एलर्जी संबंधित कष्ट….शुक्र से उपाय –ऊॅ शुं शुक्राय नमः का जाप करें…चावल, दूध, दही का दान करें…वृद्ध महिला की सहायता करें….वृषभ राशि –पारिवारिक सदस्यो से विवाद ….आर्थिक स्थिति में तनाव होगी….रक्त विकार संभव….शनि के उपाय –‘‘ऊॅ शं शनैश्चराय नमः’’ की एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें…..भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें….उड़द या तिल दान करें….मिथुन राशि –कार्य में तेजी दिखाई देगी….सत्तापक्ष से लाभ जिसमें विषेषकर…..अनाज संबंधी कार्यो में लाभ की संभावना….आज लाभ की स्थिति को बनाये रखने के लिए…..ऊॅ गं गणेशाय नमः का एक माला जाप करें….पौधे का दान करें…..इलायची खायें एवं खिलायें…..कर्क राशि –शेयर या लाटरी में अचानक हानि की संभावना…प्रतिद्वंतिदयों से विवाद या हानि की संभावना….मामा या ममेरे भाईयों का साथ दिन को बेहतर बना सकता है….छुट्टियों का आनन्द लेंगे…राहु से संबंधित कष्टों से बचाव के लिए –ऊॅ रां राहवे नमः का एक माला जाप कर दिन की शुरूआत करें..मूली का दान करें..सूक्ष्म जीवों को आहार दें..सिंह राशि –नई विद्या पर कार्य की शुरूआत या…..नये योजना से कार्य करने से लाभ…नये लोगों से व्यवहारिक दूरी बनाये रखना उचित होगा….असंभावित हानि से बचने के लिए के निम्न उपाय करने चाहिए –ऊॅ कें केतवें नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें…सूक्ष्म जीवों की सेवा करें…गाय या कुत्ते को आहार दें…कन्या राशि –नवीन कार्य की अभी शुरुआत ना करें …..भागीदारी से दूरी …..पेट रोग से कष्ट….मंगल जनित दोषों को दूर करने के लिए –ऊॅ अं अंगारकाय नमः का एक माला जाप करें..हनुमानजी की उपासना करें..मसूर की दाल, गुड दान करें…तुला राशि –परिवारिक विवाद…जिम्मेदारी में वृद्धि किंतु लाभ में कमी से तनाव….व्यसन से अपयश…राहु कृत दोषों की निवृत्ति के लिए –ऊॅ रां राहवे नमः का जाप कर दिन की शुरूआत करें…काली चीजों का दान करें….वृश्चिक राशि –नौकरी में स्थानतारण ….अपनो से धोखा…उदर विकार…सूर्य के निम्न उपाय आजमायें-ऊ धृणि सूर्याय नमः का जाप कर, अध्र्य देकर दिन की शुरूआत करें,लाल पुष्प, गुड, गेहू का दान करें,आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करें…धनु राशि –आत्मविष्वास से कार्य में लाभ…घरेलू सुख में वृद्धि….फूड पाइजनिंग….शनि से उत्पन्न कष्टों की निवृत्ति के लिए –‘‘ऊॅ शं शनिश्चराय नमः’’ का जाप कर दिन की शुरूआत करें,भगवान आशुतोष का रूद्धाभिषेक करें,काले वस्त्र का दान करें…मकर राशि –जायदाद संबंधी कार्य मे बाधा …धार्मिक कार्य के योग….जीवनसाथी को स्वास्थगत कष्ट…मंगल के दोषों की निवृत्ति के लिए –ऊॅ अं अंगारकाय नमः का एक माला जाप करें..हनुमानजी की उपासना करें..मसूर की दाल, गुड दान करें…कुंभ राशि –व्यवसायिक अपयश की संभावना….प्रेमसंबंधों में प्रगाढ़ता….मातृपक्ष से लाभ…चंद्रमा के निम्न उपाय करें –ऊॅ श्रां श्रीं श्रीं एः चंद्रमसे नमः का जाप करें…दूध, चावल, का दान करें…मीन राशि –परिवार में मांगलिक सूचना ….आकस्मिक हानि या चोरी…दोस्तों तथा परिचितों का साथ….गुरू के लिए निम्न उपाय करें-ऊॅ गुं गुरूवे नमः का जाप करें…कुल पुरोहित, ब्राह्ण्य को यथासंभव दान दें,